Monday, 25 December 2017

यही उम्र है, ,,सपनों को सजाने की.....

आपको नहीं लगता कि हम कुछ ज्यादा ही बदले बदले जा रहे हैं । हमारे सोचने- समझने हर काम को करने,  जीने का तरीका बदलता जा रहा हैं । हमारी पीढ़ी की किशोर और  नवयुवा पीढ़ी तनावपूर्ण जीवन जी रही हैं ।
यह उम्र होती है कुछ नया करने की अपने व अपनों के जीवन को खुश मिजाज बनाने की लेकिन पता नहीं हम क्यों प्रकृति के विपरीत जा रहे हैं। इस उम्र में कोई शिक्षा प्राप्ति की दौड़ में घोड़े की तरह दौड़े जा रहा हैं। तनाव और ललाट पर  सिलवटे लेकर और उम्र के सुनहरे पलों को खो रहा  हैं । क्यों ? क्यों ना हम अपना करियर अपनी पसंद के अनुसार चुने जिस काम को करने से दिल मना कर दे, उस काम को ना करें लेकिन दिल को जरूर पूछे कि तो फिर करना क्या हैं ।दिल की आवाज सुन कर तो देखें; सुनकर कितना मजा आता है ।

एक और बात आज का युवा आत्महत्या जैसे कदम उठा रहा
हैं कारण अधूरी 💔"लव स्टोरी''💔 ।  

  क्यों बेताब हो, उसे देखने को जिसकी नजरे हैं कहीं और भीड़ में से उसे देखो जो बेताब आपकी नजरो का।।

 क्यों रावण बनने की कोशिश कर रहे हो।।
 लैला हो तो भीड़ में से किसी मंजनू को खोजों ना।
 रांझा हो तो किसी हीर  को ढूंढो ना।
 लैला होकर रांझा की, मंजनू होकर हीर की चाह क्यों रखते हो।।
 यारो यह उम्र होती है,   कुछ नया करने की  और अपने सपनों को साकार करने की, लेकिन हम तो चेहरे  को सलवटो से भरने में बिता देते हैं ।
यही उम्र होती है जब हम घर से बाहर निकल,  कुछ अच्छा करने की चाह में दुनिया को जानने की कोशिश करते हैं।

 खुशियां तलाशने की कोशिश करते लेकिन सिगरेट , शराब में,,,,, , क्यों ?
खुशियां मिलती है अपनों के प्यार में , दोस्तों के साथ में और किसी अजनबी की याद में।।
 हम क्यों नहीं समझते कि खुशियां नहीं मिलती जो दूसरों के पास हैं , उसे हासिल करके।  अपने मन को मारकर।

 क्यों ना हम कभी अपने से बात करके,  अपने दिल की आवाज सुनकर  खुशी हासिल कर ले ।
क्यों चाहते हैं? उनको हम सफर बनाना।
 जिसका दिल है किसी और का दीवाना।
 अपनी नव जवानी में खुद ढूंढ लाओ ना किसी ऐसे अफसाने को जो ना सलवटे आने दे , ना जवानी जाने दे ।।

दिल से जवाब मांगो ना कि कोई तो ऐसा काम बता जिससे चेहरे पर तनाव लाए बगैर पेट में तनाव लाया जाए । बता दें सिर्फ एक काम।।
 फिर उस काम को कर के देखो तो कितना मज़ा आता है जीने में।।

इसी उम्र वालों के लिए बिन माँगी सलाह ••••••••
Girl friend 👫 & Girlfriend💑 ____
इन दोनों शब्दों में बहुत फर्क होता हैं जिसे हम अक्सर नजरअंदाज करते हैं ।
Girl friend - वह दोस्त , जो महिला है।
Girlfriend - वह महिला , जो आपकी प्रेमिका है।
 बस इसी गलतफहमी के कारण कई लोगों के दिल टूट जाते हैं । आपसे विपरीत लिंगी ने ज्यों ही दोस्ती की , आपने मन ही मन Girl friend  दो शब्दों के मध्य का रिक्त स्थान हटा नया शब्द या कहें कि नया रिश्ता बना दिया । फिर टैटू बनाने के बाद पता चलता हैं कि वो गैप सिर्फ हमारी ओर से मिटा था दूसरी ओर सिर्फ Girl friend ही है। फिर गम झेल सके तो नई खोज या गमों को भूलाने का प्रयास कभी शराब(शराब का सेवन सेहत को नुकसान पहुँचाता हैं ),  कभी सिगरेट🚬(धुम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है)। उससे भी ज्यादा तो ब्लेड लेकर, ,,,,,या रस्सी, ,,,,,या कोई ओर तरीका, ,,,,,,,,,,,,यह सही नहीं हैं मेरे भाई / बहन / ,,,,,, सामने वाली के भी कोई ख्वाब होंगे,  उनका भी ख्याल रखो । दुनिया की हर पसंदीदा चीजें हमारे ही लिए नहीं हैं,  कोई ना  कोशिश जारी रखो; नहीं तो खोज तो करनी ही है जिन्दगी को नीरस मत होने दो।
महोतरमाओं आप भी  Girl की जगह Boy रखकर देख लो ।।
मैंने लड़कों का जिक्र इसलिए किया क्योंकि ये थोड़े ज्यादा ही  ,गलतफहमी में रहते हैं ।

तो चलो इस उम्र को खुशनुमा बनाएँ; ; हाँ मै भी।
जिनके यह उम्र बित गई वो भी जिस उम्र में है उसी का मजा उठाएँ क्योंकि हर उम्र का अपना मजा होता हैं ।

कभी समय मिले तो कोशिश करना कि जिनका सुनहरा बचपन मजबूरी की मजदूरी में खो रहा हैं । उन्हें भी थोड़ी सा इस उम्र का आनन्द दे , क्योंकि एक इंसान ही है जो खुशियों को फैला सकता हैं ।
 तो क्यों ना कभी इस हुनर का भी प्रयोग करके देखें ।
वाकई इस हुनर से संतोष,  खुशी नामक धन को बटोरा जा सकता है ।।
 इसी आशा,  इसी विचार,  इसी कोशिश के साथ चलता हूँ , फिर मिलने के लिए ..in next post. .

यूँ तो आप मुझसे किसी भी अच्छे विचार के साथ मिल सकते हो,,,,

                      ।।जय युवा शक्ति ।।
            ।।जय हर उम्र के अच्छे ज़ज्बातो की।।
                                                           * छगन चहेता

Monday, 18 December 2017

सफ़र -महिला की मजबूती :: आदमी(PK) की मजबूरी

आज मैं अपने होमटाउन से लोकल बस में सवार होके नजदीकी की जगह पर जा रहा था।  छोटा ही था पर सफर, सफर होता है। मुंबई की लोकल ट्रेन और पश्चिमी राजस्थान की लोकल बस की सवारी का मजा ही कुछ और होता है । अपनी पहचान के अनुरूप आज भी बस में क्षमता से ज्यादा सवारी,  सवार थी । जो कि गैरकानूनी हैं, पर कानून का क्या?    कानून तो सिर्फ प्रतियोगी परीक्षार्थीयों की परेशानियां और वकीलों की चालाकी को बढ़ाने के लिए ही तो बनते हैं। उसका आम आदमी से क्या लेना-देना ।

 मैं अकेला था मतलब कोई दोस्त वगैरह मेरे साथ नहीं थे,  इतनी भीड़ में पैर रखने की जगह नहीं थी तो  Mobile चलाने की सोच भी नहीं सकते । तो खड़े-खड़े बस के  आन्तरिक कार्यक्रम को देखने के अलावा कोई चारा नहीं था ; मेरे पास , तो आन्तरिक परिदृश्य इस प्रकार से हैं -
  मैं जैसे तैसे कर भीड़ को हटाता हुआ बस में दाखिल हुआ । सब लोग अपनी अपनी गप्पों में मगन थे,  कोई सुख दुःख बाँट रहा था । इतने में एक गंध मेरे नाक से टक्कराई जो शायद एल्कोहल की थी । फिर मेरी नजरों ने ढुँढ़ लिया कि शराब का सेवन किस महाशय ने किया हैं । मुझे गंध से तकलीफ जरूर हो रही थी पर कर ही क्या सकता था। तभी बस रूकती हैं कुछ लोग चढ़ते हैं कुछ उतरते हैं । जिससे एक सीट रिक्त होती है जिस पर वह ऐल्कोहोलीक महाशय(PK) बैठ गये । तभी एक फकीर  का प्रवेश होता हैं । वह सीट देने की अपील करता हैं तो वह pk महाशय अपनी सीट पर थोड़ी जगह कर , फकीर को बैठने को कहता है । तभी उस सीट से संलग्न सीट पर बैठी औरत दोनों में से किसी एक को उठने को कहती हैं क्योंकि वह सिर्फ दो लोगों की सीट थी तो हो सकता है तीन बैठे और कोई हालात का गलत फायदा उठा उस महिला को परेशान करें । फिर भी दोनों बैठने लगते हैं तभी महिला अपनी आवाज में कठोरता लाती हैं जिसकी शायद किसी को उम्मीद भी नहीं होगी ।
उस महिला की मजबूती देख कर मुझे जायरा के साथ हुई घटना की याद आती है । इस भीड़ वाली लोकल बस में महिला अपनी सुरक्षा के लिए इतनी सक्षम है तो जायरा के साथ  उस व्यक्ति ने छेड़छाड़ की कोशिश की तो उसने विरोध क्यों नहीं किया ? वहाँ तो सुरक्षा भी होती है । उनकी माँ भी साथ थी,  उन्होंने  भी विरोध क्यों नहीं किया ? सोशल साइट पर भी घटना का जिक्र करते हुए  रो  रही थी।
 किसी सुनसान जगह पर  आदमी ऐसा करें तो हो सकता है कि महिला की आवाज को पुरुष दबा भी दे लेकिन सार्वजनिक जगह पर तो ज्यादती का विरोध करना ही चाहिए ।   यदि इतनी सक्षम महिला भी,  इतनी सुरक्षित स्थान पर ज्यादती का विरोध नहीं कर पाती है तो आम महिलाओं का मनोबल गिरता हैं ।

मेरे हिसाब से जायरा को भी उस बस वाली औरत की तरह कड़क व्यवहार से उस व्यक्ति का विरोध  ऑन द स्पॉट करना चाहिए  ताकि सभी के  सामने उदाहरण पेश होता कि महिला चुपचाप ज्यादती सहन करने वाली नहीं हैं । उनमें भी आवाज उठाने की क्षमता हैं ।
 तो बस यह एक उदाहरण था कि महिलाएँ खुद हीअपनी सुरक्षा कर सकती है और उन्हें अपनी सुरक्षा खुद करनी ही होगी । भले ही जायरा उस घटना का विरोध ना कर सकी पर महिलाएँ सबल हो रही हैं तो तथाकथित मर्दो खुद पर संयम करना सीख लो ।
इस घटना के जिक्र का एक और कारण की जायरा से हुईं घटना से किसी महिला का मनोबल गिरा हैं तो फिर से बढ़ जाएँ  और कहावत है ना कि "तरबूज को देख, तरबूज रंग बदलता हैं " तो हो सकता है कि उस महिला की मजबूती देख किसी और महिला में भी हिम्मत आ जाए गलत को रोकने की।।

चलो वापस बस के अन्दर,,,,,
  महिला की प्रतिक्रिया सुन फकीर सीट छोड़ देता हैं,  कुछ भगवान के नाम पर, ,,बोले तो शाप / बद्दुआ जैसा कुछ, ,,, फिर शराबी और फकीर के मध्य नोंक - झोंक शुरू हो जाती हैं । तभी पता नहीं एक महाशय और टपकते हैं बीच में,  pk से मारपीट करने लगते हैं । क्यों?  कारण कि शराबी ने गाली दी , शराबी ने दी या नहीं स्पष्ट नहीं था । लेकिन क्या मारपीट के लिए यह कारण जायज था क्योंकि मारपीट के समय मेरे आस पास के ना जाने कितने ही लोगों ने गाली दी होगी उस pk को , फकीर ने भी बद्दुआ दी वो भी तो गाली ही तो हैं क्योंकि गाली का मतलब होता हैं अप्रिय शब्द । यह कहाँ का न्याय,  फकीर व उन लोगों की गाली कोई ना , pk की गाली,  गाली । कुछ ने तो महिला से अभ्द्रता का भी आरोप लगाया । मारपीट में शराबी के गाल से खुन भी निकल आया और अगले बस स्टाप पर पुलिस के पास ले जाने का कहकर उसको बस से पहले ही उतार दिया,  उसके गंतव्य से पहले ।
      सही मानो तो उस बिचारे को सिर्फ इसी लिए मारा क्योंकि उसने शराब पी रखी थी जिसका पता सिर्फ उसके मुँह की गंध से चलता हैं अन्यथा नहीं । तो क्या शराब पीना गुनाह हैं,  व्यक्तिगत या धार्मिक कारणों से हो सकता है पर कानून तौर पर नहीं  और हमारा देश कानूनों पर चलाता हैं किसी धर्म या व्यक्ति के नियमों पर नहीं ।
  वैसे राजस्थान की बात करें तो यहाँ कि बोली में गाली आम हैं ।
फिर उसको क्यों मारा , आसमान में उड़ने वाले हवाई जहाजों में तो शराब बड़े अदब के साथ पीया जाता है । हमारे देश में महँगा -महँगा शराब पीने की होड़ मची हैं । इसे VIP टैग माना जाता है तो क्या PK को इसलिए मारा की वह देशी दारू पीकर लाचार था वह मानसिक शक्ति के साथ शारीरिक शक्ति कमजोर कर बैठा था।
नहीं उसको सिर्फ इसीलिए मारा क्योंकि वह व्यक्ति अपने शारीरिक बल को प्रदर्शित करना चाहता था । निजी जिन्दगी का गुस्सा किसी निर्बल पर उतार दिया । अपनी तथाकथित अच्छाई दिखाने की कोशिश में मानसिक नपूसंकता दिखा दी। वह अकेला नहीं था ऐसे किस्से रोज दिखते है जिसमें इंसान का पशुता गुण प्रदर्शित होता हैं ।
 क्यों हम सरकार को कोसते हैं ? हम भी तो हमेशा कमजोर,  मजबूर का फायदा उठाते हैं ना । बड़े - बड़े माॅल में हम MRP से ही सामान लेते हैं कभी भाव ताव नहीं करते क्योंकि हम जानते हैं कि इनको हमारी गर्ज नहीं हैं पर कभी ठेले पर सब्जी लेते हैं तो हम पुरजोर कोशिश करते हैं कि ये हमें कम भाव पर ही सामान दे क्योंकि कि हमारा नेचर ही ऐसा हो गया हैं कमजोर की मजबूरी का फायदा उठाओ ।

  मेरा मकसद कहीं शराब के सेवन को बढ़ावा देना नहीं हैं । मैं खुद शराब के सेवन व निर्माण का घौर विरोधी हुँ । हमें कोशिश करनी चाहिए कि शराबबन्दी हो , सरकार पर दबाव देना होगा कि शराबबन्दी करें ।
  मेरा मकसद,  इस घटनाक्रम के जिक्र के पीछे यही था कि वास्तव में इन्सान पशु , शौतान बनता जा रहा हैं ।
अपनी इंसानियत , संयम,  समझ खो रहा हैं । इंसान सब कुछ अपने हिसाब से चाहता हैं,  हर कोई दुनिया के नियमों को खुद के मुताबिक बनाना चाहता हैं,  इंसान समझने की कोशिश ही नही करता कि दुनिया तर्कसंगत बातों पर ही चलती है ।
 इंसान हिंसक होकर बार - बार पशुता प्रदर्शित कर रहा हैं लेकिन हमारे बुध्दिजीवियों का ध्यान सिर्फ राजनीति पर हैं ।
जिन्हें समाज को सुधारने का काम सौंपा था वह गुरुजी,  ट्युशन नामक रोग के रोगी हो गये । शिक्षण संस्थान सिर्फ मशीनें बनाने की होड़ में हैं ।  माता - पिता हमेशा बच्चों को सुख- सुविधा देने की कोशिश में संस्कार देने भूल रहे हैं ।
धार्मिक कहानीयाँ सुनाने वाले; दादा - दादी,  नाना - नानी वृद्धाश्रम में बैठे हैं तो संस्कार कहाँ से आयेगा । विद्यालय में दौड़कर नहीं; सहयोगी को गिराकर जीतना सिखाया जाता है ।
 अगर आप भी चाहते हैं कि PK जैसा किसी के साथ ना हो तो कोशिश कीजिए कि हमारा शिक्षा तंत्र सुधरे; इनका मकसद सिर्फ जानवरों की तरह पेट भरने की कुशलता सीखाना ना हो बल्कि इंसान ;वह इंसान जो समाज को बेहतरीन बनाने का प्रयास करें । अरे! बेहतरीन जाए भाड़ में कम से कम समाज को खराब ना करें । बाकी समाज को बेहतरीन बनाने वालों की कमी नहीं हैं । कुछ लोग अभी भी हैं जो निःस्वार्थ भाव से समाज में अच्छाइयों को फैला रहे हैं जैसे मैंने किसी न्यूज में पढ़ा 'वाॅर अगेंस्ट रेलवे राउडी' यह एक समूह है जो लोकल ट्रेनों में लड़कीयों से छेड़छाड़ करने वाले लड़कों का विडियो बनाकर,  सबूत के रूप में महिलाओं; पुलिस की मदद करती हैं ।।जय मानवता ।।


मैंने आज एक बन्दर को गौर देखा तो मुझे किसी भी कोण से नहीं लगा कि वे इंसानों के पूर्वज थे।
पर आज जब इंसान को देखता तो वाकई में यकीन आता हैं कि इंसान पहले बंदर ही था जिसके लक्षण अभी भी दिखाई देते हैं, व्यवहार में ।।

चलो! इंसानियत जिन्दा रखिए,  मैं भी कोशिश करूँगा ।।
शायद हमारी कोशिश रंग जरूर लाएगी, ,,इसी आशा के साथ, ,,आज की बात पर विराम ।।
फिर मिलेंगे किसी और रचना के साथ;  इंसानियत के साथ तो हम से कभी भी मिल सकते हो।।। मैं हमेशा इसी कोशिश में रहता हूँ ।।
             
                                         * छगन चहेता

Wednesday, 13 December 2017

लड़कपन,,,,,,,,,,,,,, क्या यही हैं?

 जाने क्यों ऐसी चीजें मुझे ही दिखाई देती?
मैंने एक वाकया देखा,  मैं सड़क मार्ग से कहीं जा रहा था साथ में कुछ और लोग भी थे मिलने वाले  ।  रोड पर जा रही आर्मी वाहन में बैठे सिपाही को किनारे खड़ी तकरीबन 10-12 साल की लड़की ने  हाथ हिलाकर अभिवादन किया तो हम में से किसी ने टिप्पणी की "इनसे से कुछ नहीं मिलेगा " फिर सबकी  अश्लील हंसी से साबित हो गया कि "कुछ" का मतलब किससे था। मन तो किया कि कुछ सुना दूं फिर संयम रखकर चुप रहा कुछ मजबूरी थी खास ।
यह ही  नहीं ऐसे कई दृश्य देखने को मिलते हैं आम जिंदगी में जिससेे साबित होता है कि अधिकतर पुरुषों की सोच नारी के प्रति की घिनौनी ही होती है। हो सकता है वह बालिका देश भक्ति के नाते उनको अभिवादन कर रही हो क्योंकि ग्रामीण परिवेश के मासूमों के लिए Armey वाले किसी सेलिब्रिटी के समान होते हैं।
 मुझे समझ नहीं आ रहा है कि पुरुष ऐसे क्यों होते है?
 क्या उनके अंदर नारी के प्रति शारीरिक संबंध के अलावा कोई भावनात्मक संबंध नहीं होता हैं?
वे नारी के भावनाओं का सम्मान क्यों नहीं करते ?
10-12 साल की लड़की के प्रति ऐसी दृष्टि है तो युवा के प्रति कैसी होगी?
 क्या किसी लड़की/औरत को हक नहीं कि वह अपने खून के रिश्तेदारों के अलावा किसी विपरीत लिंगी से बात करें / मिले या किसी भी प्रकार का रिश्ता रखें?
हम बात-बात पर उनके रिश्ते का मतलब निकालते हैं क्या यह सही है?
और आप होते कौन हो किसी की जिंदगी में दखलअंदाजी करने वाले?
नहीं, नहीं आप साबित क्या करना चाहते हैं?
क्या हर  लड़की के बारे में ऐसा  ही सोचते हो ?
 क्या कभी हमारी सोच नारी के शरीर से ऊपर उठकर,  उनकेे इंसान रुपी व्यक्तित्व पर जाएगी?
 नारी के इंसान होने की बात, पुरुष क्या कभी स्वीकार करेगा?
नहीं,
 तो एक दिन खुद को इंसान के रूप में स्वीकार करते शर्म आएगी।
 क्या कभी ऐसा दिन आएगा कि सर्वप्रथम लड़की की आजादी, उनकी  स्वेच्छा को समान दिया जाएगा?
क्या हमें इंसान होकर शोभा देता है कि हम राह चलती लड़की/नारी पर अश्लील टिप्पणी करें ?
जाने क्यों आजकल लड़कपन के सुनहरे समय में लड़के अन-अपेक्षित इच्छाएँ पालने लगे जब उम्र है बस सपने बुनने की ?
लेना न देना किसी की दोस्ती/रिश्ते का मतलब निकाले ।
हम कैसे सोच लेते हैं कि लड़की सिर्फ एक मतलब से ही किसी से दोस्ती करती / मिलती है?
 यदि ऐसा सोचते हो  तो आपको अपनी मां को मां और अपनी बहन को बहन कहने का कोई हक नहीं।  उनको भी आपको बेटा/भाई कहने से शर्म आनी चाहिए क्योंकि वह भी सबसे पहले एक स्त्री है।
 हालांकि नारी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं /क्या टिप्पणी करते हैं । उनको पता है कि "कुछ लोगों का काम है कहना कुछ लोग तो कहेंगे"।   उस व्यक्ति ने, उस बालिका पर टिप्पणी की, उससे बालिका को क्या फर्क पड़ा लेकिन मेरी नजर में टिप्पणी करने वाले की इज्जत का फालूदा हो गया ना ।
यह सुनकर किसी महाशय ने  मुझसे कहा कि तो क्या हम ब्रहमचारी हो जाए ? यह तो पुरुष की स्वाभाविक मानसिकता है कि लड़की को देखने पर उनकी भावनाएं उत्तेजित हो जाती है । उनके ख्याली घोड़े दौड़ने लगते हैं। सही भी है, यह प्राकृतिक हैं, ऐसा हर सजीव में होता है। लड़के और लड़कीयों दोनों के जीवन में एक ऐसा समय आता हैं जब उनको किसी हमसफर के ख्वाब आते हैं,  वो विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षित होते हैं । इसमें कोई दौराय नहीं हैं , ये अलग बात है कि ना जाने क्युँ आज कल समलैंगिकता का प्रचलन बढ़ रहा हैं, समान लिंगी विवाह जैसे पवित्र बंधन में बंधकर प्रकृति के विपरीत जा रहे हैं। खैर अपने मुद्दे पर लौटते है,,,,,    
सच यह हैं कि हम कुछ ज्यादा ही भावनाओं में बह जाते हैं और संयम नामक शब्द का प्रयोग जीवन में कहीं करते ही नहीं । आप , जो यह तथाकथित हिरो बनकर, लड़कीयों पर फिल्मी टिप्पणी करते हो ना यह छिछोरापंथी कहलाती हैं। कानून के लिए अपराध ।
Flirting (मतलब छेडखानी से नहीं है,  इम्प्रेस जैसा कुछ) दो प्रकार की होतीं हैं good & bad  और मेरे हिसाब से हम अच्छे -बुरे में भेद जानते ही हैं, तो जो आप कर रहे हो ना , ये bad flirting कहलाती हैं । इसलिए आपको टोका क्योंकि कम से कम इंसान नामक प्राणियों को यह शोभा नहीं देता । बाकी
मैं यह नहीं कहता कि किसी लड़की को मत देखो, ख्याली  घोड़ों को मत दौड़ाओ लेकिन उनकी लगाम अपने हाथ में रखो।
 जहां तक मेरा मानना है स्वभाविकता  और अश्लीलता में फर्क होता है । हमें हमारी युवा मन को दबाना नहीं चाहिए लेकिन अपनी स्वभाविकता नहीं खोनी चाहिए । मैं आपसे ब्रहमचारी होने की अपील नहीं कर रहा हूँ। स्वभाविकता में आने की बात कर रहा हूँ और अश्लीलता को दूर रखने की बात कर रहा हूँ ।
प्रेम कहानी तो सीता - राम,  राधा - कृष्ण,  संयोगीता - पृथ्वीराज चौहान की भी थी क्या निराली प्रेमकथाएँ हैं । लैला मँजनू , ढौला मारू, ,,,,,,,
जो आप अपनी छिछोरापंथी को प्रेम कहानी कहते हो ना
 तो किसी दिन महफिल में किसी ने चाहा आपकी प्रेम कहानी सुनना तो क्या सुनाओगे कि हम जवानी में नुक्कड़ पे लड़कीयों को छेड़ते थे, या किस किस से चप्पल खाये । ये सुनाओगे, ,,,,,

मुझे नहीं लगता कि ये लड़कपन हैं, ,,लड़कपन को सुनहरा बनाओ, ,,,अपने व्यक्तित्व को कृष्ण सा बनाओ राधा मिल ही जाएगी । अपने व्यक्तित्व को रूक्मणी सा बनाओ कृष्ण मिल ही जाएगा ।। सच में यही लड़कपन होता हैं, ,,,,,,

रावण बनकर सीता को पाने की कोशिश मत करो , राम बनो; सीता मिल जाएगी ।
हमारी मोहब्बत में अफसाने होने चाहिए,  मुकदमे नहीं....
बस खोजते रहो अपने सपनों का हमसफर पर सराफत मत खोना, याद रखना हमारी आशिकी किसी भी कोण से अभ्द्रता, अश्लीलता में नहीं बदलना चाहिए ।
कहते हैं न कि खुदा ने बनाया होगा हर किसी के लिए किसी न किसी को,,,,,,,,तो अपनी खोज जारी रखो, ,,,,उसने आपकी मोहब्बत को ठुकराया तो किसी और का इन्तजार कीजिए, ,,,क्योंकि सब्र का फल मिठा होता हैं,  हो सकता है बहुत खुबसूरत भी हो दिल से और चेहरे से भी, ,,,,,,,अरे! चिंता क्यों करते हो, ,उम्मीद पर दुनिया कायम हैं ।।।

नहीं तो आगे की,,,,,,,,
कभी किसी के बारे में बुरा सोचने से पहले एक बार यह सोच लेना कि जिस प्रकार आपके कोई माँ, बहन, बेटी है वैसे ही वह भी किसी की माँ,  बहन, बेटी होगी और एक बात बिल्कुल सत्य हैं कि प्रकृति बदला कभी नहीं छोड़ती।
 आप जैसे किसी के साथ बुरा कर रहे हैं । वैसा, खुदा न खास्ता आपके किसी परिजन के साथ हो जाए तो,,,,,,,,,, सोच कर चोटी से एड़ी तक हिल गए ना, तो सोचो जिनके साथ बुरा कर रहे हो । वह भी तो किसी की प्रिय होगी ना ।
सो प्लीज लड़कियों को इंसान समझे ।
नहीं समझोगे तो एक दिन खुद को पुरुष कहने के लायक  समझ , नहीं पाओगे।
 राह चलती लड़कियों का सम्मान नहीं करोंगे , उन पर लैंगिक /अश्लील टिप्पणियाँ करोगे तो,,,,, याद रखना कि आप अपनी बुरी सोच को फैला रहे हो और कहते हैं ना कि अमुमन ऐसा ही होता है कि जो गड्डा खोदता है , वही उसमें गिरता है।

 याद रखना अपनी बुरी सोच फैलेगी तो आपकी लिए ही बुरा होगा क्योंकि आपके परिवार की लड़कियाँ / औरतें सबकी सगी नहीं है। वह भी तो घर से बाहर निकलती है।
 सो प्लीज,,,, प्लीज,,,, अपने परिवार की ही लड़कियों/ औरतों के लिए ही सही महिलाओं के प्रति अपना दृष्टिकोण सकारात्मक रखिए।
और रही बात कि यह सब मैं क्यों कर रहा हूँ ?
सही है कोई ठेका तो  नहीं ले रखा देश सुधारने का , इससे अच्छा कोई और काम करूँ,  मेरी लाईफ सुधरेगी
( ऐसा सब सोचते तो,,,,,,,, महात्मा गाँधी ,भगत सिंह हो जाता देश आजाद, ,,अरे सोचो तो सोचो किसी को कहकर अपनी नंपुसकता प्रदर्शित तो मत करो)
लेकिन जब अपने आप को भारतीय कहता हूँ और मेरे ही देश में ऐसी घटनाएं होती हे तो मुझे टीस देती है। कल को किसी के साथ खुदा ना खस्ता ऐसी घटना हो जाए तो आप सब देश की व्यवस्था को दोष ठहराओगे,कोई नई बात नहीं हैं सदीयो से यही परम्परा हैं कि हर बुरी घटना का ठिकरा सरकार के ही सर फूटेगा।
     आप सरकार के सामने हिंसक होकर अपराध पर अन्कुश लगाने की रट लगाओगे और न जाने रेलवे स्टेशन , बस स्टैंड किस - किस पर भीड़ का गुस्सा फुटेगा। तो इससे अच्छा है कि पहले से ही अपराधी को नहीं, अपराधी सोच को ही खत्म किया जाए । कहावत तो सुनी होगी -"रोग के उपचार से रोकथाम बेहतर हैं ।

शायद मैं सही हूँ, ,,,

अपने आप में सब सही होते हैं यह मिथ्या हैं ।।।
but______ मेरा मकसद सही हैं,,,,,

, ,,,बस राह पर अकेला हूँ इसलिए गलत लग रहा हूँ ।
सही में गलत नहीं थोड़ा सा अलग हूँ, ,,,,,,,

 अगर आप चलो हाथ मिलाकर साथ, तो शायद दुनिया को भी सही लगे, ,,

चलोगे ना?

बस यूँ ही,सोचा  कोई मिल जाए तो राह थोड़ी जल्दी कटेगी बाकी संघर्ष तो उतना ही करना पड़ेगा ।

उम्मीद मुझे खुद की कोशिशें से है कि भले ही कोई साथ दे न दे पर , नारी को समाज में जायज हक दिलाने की मेरी कोशिश  सफल जरूर होगी । कहते हैं न कि उम्मीदों पर दुनिया कायम हैं, ,,,,,,किसीके क्या, बहुतो के साथ की उम्मीद भी हैं,मुझे ,,,,,,

,,,नहीं, तो अकेले चल ही रहे हैं ,  दुनिया की परवाह की ही नही कभी।


दुनिया की परवाह तब तक नहीं करते जब तक सही हैं ।

कोई ना, साथ न चल सको तो बस राहो के किनारों से ही हुटिंग कर देना ताकि पार कर दूँ इस पड़ाव को तो फिर ना चलना पड़े किसी और को इन मुश्किल राहो पर।।

आत्मविश्वास है मेरा दोस्तों कि मेरी कोशिश सफल हो गई  , तो यह मेरी उजड़ पगडंडी एक दिन विशाल रास्ता बनेगी जिस पर चलने वालों की भीड़ होगी और ना जाने कितने लोगों की चलने की ख्वाहिश होगी ।



"दुनिया की सोच बदल ना सकुँगा तो क्या यह मलाल तो नहीं रहेगा कि कोशिश करता तो शायद दुनिया बदल देता ।"

मैं अपनी राह पर अकेला हूँ क्योंकि यह सच की राह है जो कठिन हैं बहुत ही कठिन, ,,,
(I am alone on my way because it is the path of truth which is difficult, very difficult.)



                                          *छगन चहेता


Thursday, 7 December 2017

छगन चहेता कि कविता "अपने बारे में, ,,,,,,,

  भले कर लूं मजाक हर किसी का
पर किसी का मजाक उड़ाना नहीं आता
 दिल लगा लूं
पर किसी के दिल से खेलना नहीं आता
 चाहो जितना झुका लो मुझे
 पर किसी की गुलामी करनी नहीं आती
 बेशक हर मौके का फायदा उठाता हूं
मगर किसी की मजबूरी का फायदा उठाना नहीं आता
 किसी की तकलीफ सहन नहीं होती मुझसे
सुन तकलीफ दिल में दर्द सा होता है
 हर गम को भुला मुस्कुराने की वजह दे देता हूं
यही आदत है मेरी या कहो मजबूरी है मेरी
 हर किसी की फिक्र करता हूं
पर किसी के दिल में दखल अंदाज नहीं करता
 किसी की भाषा को समझूं न समझूं
 हर एक दिल का जज्बा समझता हूं
हर किसी के लिए दुआ मांगू ना मांगू
पर किसी की बद्दुआ के लिए यह हाथ उठ नहीं सकता
 हर किसी का सम्मान करूं ना करूं
 पर किसी का अपमान कर नहीं सकता
 भूल जाता हूं हर जख्म
पर किसी का दिया खुशनुमा एक लम्हा भी भूल नहीं पाता
भूल जाए हर कोई मुझे गम नहीं
 पर मैं किसी को भी भूल नहीं सकता
 हर किसी से इश्क कर तो नहीं सकता
 पर किसी से नफरत करनी नहीं आती
 किसी की नजर में अच्छा इंसान बनुं न बनुं
पर अपना ईमान खो नहीं सकता
कोई मुझे अपना समझे ना समझे
 पर मैं किसी को पराया समझ नहीं सकता
  यही है शख्शियत मेरी
 यही है खासियत मेरी
 जिंदा दिली कहो या  पागलपन का दौरा मेरा
    .                               * छगन चहेता
Special thanks to my sister. ...जिन्होंने मेरे व्यक्तित्व को सराहा जिससे इस कविता का सृजन हुआ ।। Thanks my  sister POONAM CHOUHAN

Tuesday, 5 December 2017

छोटे कपड़े या हमारी सोच, ,,,,,,,,?

हमारे देश के एक राजनेता ने कुछ समय पहले एक घटना के संदर्भ में कहा था कि लड़कियाँ छोटे कपड़े पहनती हैं इसलिए उनके साथ दुष्कर्म होता हैं । एक और मामला था रेप & मर्डर, उसमें गैटमैन ने एक महिला के साथ रेप कर उसका मर्डर कर दिया था। उस आरोपी के वकील ने बचाव के लिए दलील दी कि महिला नाईट गाउन में थी ,जिसे देख आरोपी उत्तेजित हो गया जो की नेचुरल हैं । इसी कारण उसने उत्तेजनावश रेप कर दिया एवं डर के मारे हत्या कर दी।
  ऐसे मामले सीधा - सीधा संकेत करना चाहते हैं कि महिलाओं के साथ होने वाले दुष्कर्मों का कारण उनके कपड़े ही है ,पुरुष का कोई दोष नहीं हैं । वे बिचारे अपनी इन्द्रीयों के लाचार हैं । But. ....
हमारे देश में हजारों ऐसे मामले होते हैं । जिसमें पाँच साल से भी कम उम्र की मासूमो के साथ दुष्कर्म होता हैं । वहाँ भी आप अल्पवस्त्रों की दलीले दोगें क्या? विदेशों में तो ऐसा नहीं होता,  वहाँ तो अति अल्पवस्त्र पहने जाते है ना। फिर भी,,,आप यह दावा कर सकते हैं कि भारतीय परिधान पहने नारी के साथ कभी बलात्कार नहीं होता ?
  मुझे तो यही लगता हैं कि कपड़ों से ज्यादा छोटी हमारी यानी पुरुष की सोच हो गई है । "हमारी भारतीय संस्कृति परिधान आधारित नहीं हैं,  ये सोच आधारित हैं ।" वैसे भी हमारा ये मारवाड़ी परिधान भी पुर्णरूपेण देशी नहीं हैं,  ये मुगलो से प्रेरित हैं   । वैसे भी मनुष्यों को कपड़ों की आवश्यकता शर्म से बचाव के लिए नहीं; सर्दी , गर्मी, वर्षा आदि से बचाव के लिए हुईं हैं ।
       हम किसी के स्कर्ट की लम्बाई से उसका चरित्र नहीं माप सकते हैं । यदि हम ऐसा करते हैं तो यह हमारी सोच का ओछापन हैं ।
    यदि आपने सुना हो तो लक्ष्मण को सुवर्णंपंखा ने विवाह का प्रस्ताव दिया था तथा लक्ष्मण को रिझाने की सर्वसंभव कोशिशें की थीं । कहा जाता हैं कि सुवर्णंपंखा बेहद खुबसुरत  व मनमोहक स्त्री थीं । फिर भी लक्ष्मण ने प्रस्ताव ठुकरा दिया । उनका तो मन नहीं डोला । वह भी तो मर्द थे  (सच में हमसे कहीं ज्यादा ।)।
   हमें महिलाओं पर दोष देने की बजाय स्वयं की सोच को, संस्कृति को, चरित्र को पवित्र रखना होगा ।[इस मुद्दे पर बनी #हिन्दी_फिल्म_पिंक बहुत ही खुबसुरत हैं ।]
  मेरी अपने काॅलेज के दोस्तों के साथ इस मुद्दे पर बहस हुईं थी जिसमें अधिकतर का मानना हैं कि लड़कियाँ, लड़कों को आकर्षित करने के लिए ऐसे वस्त्र पहनती हैं । लेकिन सुना हैं सबसे सुन्दर व आकर्षक दिखने का प्रयास शादी-विवाहो में किया जाता हैं । वहाँ तो ज्यादातर परम्परागत परिधान में ही स्त्रियाँ आती हैं । बेशक ज्यादा सुन्दर भी लगती हैं ।
      कपड़े दिखने - दिखाने के हिसाब से नहीं । अपनी सहुलियत व आरामदायकता के अनुसार पहने जाते है । हमारी यही समस्या हैं कि हम एक तरफा फैसला लेते हैं यानी जैसा हमें अच्छा लगता हैं वैसी धारणा बना लेते हैं ।
  यदि वे आकर्षण के लिए भी ऐसे वस्त्र पहनती हैं तो इसमें बुराई क्या हैं?  प्रकृति का नियम हैं ( physics, chemistry का); विपरीत - विपरीत हमेशा एक - दूसरे को आकर्षित करना चाहते हैं ।
   आकर्षण का मतलब, यह  कभी नहीं होता कि आप उनके साथ दुर्व्यवहार करें या उसका चरित्र अच्छा नहीं हैं ।  आप भी चाहते होंगे कि मैं लड़कियों के सामने अच्छा दिखुँ। वैसे वे भी चाहती होगी,  इसमें तार्किक रूप से कोई बुराई नहीं हैं । वो हमें कैसी लगती हैं यह अपना-अपना नजरिया हैं लेकिन एक बात तो साफ हैं कि हवस छोटे या आधे कपड़ों के आधार पर पैदा नहीं होती , वो उत्पन्न होती हैं छोटी सोच से, अपूर्ण संस्कारों से और हमारी विचारात्मक पशुता से। यही पूर्ण सत्य हैं । इसमें महिलाओं को दोष देने के बजाय हमें खुद की बेतुकी मान्यताओं और ओछे विचारों को त्यागकर नारी का , नारी की जायज आजादी का सम्मान करना होगा अन्यथा परिणाम अत्यंत घातक होंगे ।।जय नारी शक्ति ।।
                                          * छगन चहेता
                       
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Friday, 1 December 2017

छगन चहेता की कविता "जिन्दगी, ,,,,,,,,,"

कभी यहाँ, कभी वहाँ भटकाती हैं जिंदगी
कभी अच्छी, कभी बुरी खबर सुनाती हैं जिंदगी
कभी मीठा, कभी कड़वा स्वाद चखाती हैं जिंदगी
कभी पाठ ,कभी सबक सिखाती हैं जिंदगी
कभी हम पर हँसती, कभी हमको हँसाती हैं जिंदगी
कभी खुशी , कभी गम में बितती हैं जिंदगी
कभी इश्क, कभी नफरत में जलाती हैं जिंदगी
कभी गुनगुनाती, कभी चिल्लाती हैं जिंदगी
बचपन में जवानी के सपने दिखाती हैं जिंदगी
बुढ़ापे में बचपन की यादें दिलाती हैं जिंदगी
कभी बैठकर सोचना यारो
चुनौतियाँ देकर भी कितना प्यार बरसाती हैं जिंदगी
कभी सपने दिखाती, कभी सपने तोड़ती हैं जिंदगी
कभी ना मुँह मोड़ो जिंदगी से
सब कुछ बुझाकर भी
"आशा" की एक लौ जलाए रखती हैं जिंदगी ।

                                 *छगन चहेता

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डायरी : 2 October 2020

कुछ समय से मुलाकातें टलती रही या टाल दी गई लेकिन कल फोन आया तो यूँ ही मैं निकल गया मिलने। किसी चीज़ को जीने में मजा तब आता है जब उसको पाने ...