Saturday, 3 October 2020

डायरी : 2 October 2020


कुछ समय से मुलाकातें टलती रही या टाल दी गई लेकिन कल फोन आया तो यूँ ही मैं निकल गया मिलने।

किसी चीज़ को जीने में मजा तब आता है जब उसको पाने के लिए आपने कुछ दिया हो और मैं तो दोपहर की नींद और पैदल चलने की ऊर्जा दोनों देकर आया था।

   भौगोलिक परिस्थिति के दायरों में सिमटे लोग जहाँ सुस्ता रहे थे वहाँ एक ओर हम किसी गुजरी शाम को लेकर बैठ गये।

कुछ इन दिनों की बातें और बीते वक्त की  ग़ज़लों ने चाय की टपरी से होते हुए जैसलमेर रोड़ के ओवरब्रिज की सीढ़ियों पर पटक दिया।

"अभिजीत चाय पीते हुए  कह रहा है कि अच्छा लग रहा है इन दिनों ये सब"

  लेकिन मैं सोच रहा होता हूँ कि सच में प्यार का पैमाना त्याग है तो अभिजीत का प्यार मेरे प्रेम से बड़ा है क्योंकि अभिजीत आमतौर पर चाय नहीं पीते, और मुझे नही लगता कि मैं कभी दोस्ती में अपने लंग्स ख़राब करूँगा ।

ख़ैर,  चाय बहुत अच्छी बनी थी और इसी अच्छी चीज़ के खत्म होने के साथ हमारी मुलाकात भी खत्म हो गई ....।


 

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डायरी : 2 October 2020

कुछ समय से मुलाकातें टलती रही या टाल दी गई लेकिन कल फोन आया तो यूँ ही मैं निकल गया मिलने। किसी चीज़ को जीने में मजा तब आता है जब उसको पाने ...