Monday, 18 December 2017

सफ़र -महिला की मजबूती :: आदमी(PK) की मजबूरी

आज मैं अपने होमटाउन से लोकल बस में सवार होके नजदीकी की जगह पर जा रहा था।  छोटा ही था पर सफर, सफर होता है। मुंबई की लोकल ट्रेन और पश्चिमी राजस्थान की लोकल बस की सवारी का मजा ही कुछ और होता है । अपनी पहचान के अनुरूप आज भी बस में क्षमता से ज्यादा सवारी,  सवार थी । जो कि गैरकानूनी हैं, पर कानून का क्या?    कानून तो सिर्फ प्रतियोगी परीक्षार्थीयों की परेशानियां और वकीलों की चालाकी को बढ़ाने के लिए ही तो बनते हैं। उसका आम आदमी से क्या लेना-देना ।

 मैं अकेला था मतलब कोई दोस्त वगैरह मेरे साथ नहीं थे,  इतनी भीड़ में पैर रखने की जगह नहीं थी तो  Mobile चलाने की सोच भी नहीं सकते । तो खड़े-खड़े बस के  आन्तरिक कार्यक्रम को देखने के अलावा कोई चारा नहीं था ; मेरे पास , तो आन्तरिक परिदृश्य इस प्रकार से हैं -
  मैं जैसे तैसे कर भीड़ को हटाता हुआ बस में दाखिल हुआ । सब लोग अपनी अपनी गप्पों में मगन थे,  कोई सुख दुःख बाँट रहा था । इतने में एक गंध मेरे नाक से टक्कराई जो शायद एल्कोहल की थी । फिर मेरी नजरों ने ढुँढ़ लिया कि शराब का सेवन किस महाशय ने किया हैं । मुझे गंध से तकलीफ जरूर हो रही थी पर कर ही क्या सकता था। तभी बस रूकती हैं कुछ लोग चढ़ते हैं कुछ उतरते हैं । जिससे एक सीट रिक्त होती है जिस पर वह ऐल्कोहोलीक महाशय(PK) बैठ गये । तभी एक फकीर  का प्रवेश होता हैं । वह सीट देने की अपील करता हैं तो वह pk महाशय अपनी सीट पर थोड़ी जगह कर , फकीर को बैठने को कहता है । तभी उस सीट से संलग्न सीट पर बैठी औरत दोनों में से किसी एक को उठने को कहती हैं क्योंकि वह सिर्फ दो लोगों की सीट थी तो हो सकता है तीन बैठे और कोई हालात का गलत फायदा उठा उस महिला को परेशान करें । फिर भी दोनों बैठने लगते हैं तभी महिला अपनी आवाज में कठोरता लाती हैं जिसकी शायद किसी को उम्मीद भी नहीं होगी ।
उस महिला की मजबूती देख कर मुझे जायरा के साथ हुई घटना की याद आती है । इस भीड़ वाली लोकल बस में महिला अपनी सुरक्षा के लिए इतनी सक्षम है तो जायरा के साथ  उस व्यक्ति ने छेड़छाड़ की कोशिश की तो उसने विरोध क्यों नहीं किया ? वहाँ तो सुरक्षा भी होती है । उनकी माँ भी साथ थी,  उन्होंने  भी विरोध क्यों नहीं किया ? सोशल साइट पर भी घटना का जिक्र करते हुए  रो  रही थी।
 किसी सुनसान जगह पर  आदमी ऐसा करें तो हो सकता है कि महिला की आवाज को पुरुष दबा भी दे लेकिन सार्वजनिक जगह पर तो ज्यादती का विरोध करना ही चाहिए ।   यदि इतनी सक्षम महिला भी,  इतनी सुरक्षित स्थान पर ज्यादती का विरोध नहीं कर पाती है तो आम महिलाओं का मनोबल गिरता हैं ।

मेरे हिसाब से जायरा को भी उस बस वाली औरत की तरह कड़क व्यवहार से उस व्यक्ति का विरोध  ऑन द स्पॉट करना चाहिए  ताकि सभी के  सामने उदाहरण पेश होता कि महिला चुपचाप ज्यादती सहन करने वाली नहीं हैं । उनमें भी आवाज उठाने की क्षमता हैं ।
 तो बस यह एक उदाहरण था कि महिलाएँ खुद हीअपनी सुरक्षा कर सकती है और उन्हें अपनी सुरक्षा खुद करनी ही होगी । भले ही जायरा उस घटना का विरोध ना कर सकी पर महिलाएँ सबल हो रही हैं तो तथाकथित मर्दो खुद पर संयम करना सीख लो ।
इस घटना के जिक्र का एक और कारण की जायरा से हुईं घटना से किसी महिला का मनोबल गिरा हैं तो फिर से बढ़ जाएँ  और कहावत है ना कि "तरबूज को देख, तरबूज रंग बदलता हैं " तो हो सकता है कि उस महिला की मजबूती देख किसी और महिला में भी हिम्मत आ जाए गलत को रोकने की।।

चलो वापस बस के अन्दर,,,,,
  महिला की प्रतिक्रिया सुन फकीर सीट छोड़ देता हैं,  कुछ भगवान के नाम पर, ,,बोले तो शाप / बद्दुआ जैसा कुछ, ,,, फिर शराबी और फकीर के मध्य नोंक - झोंक शुरू हो जाती हैं । तभी पता नहीं एक महाशय और टपकते हैं बीच में,  pk से मारपीट करने लगते हैं । क्यों?  कारण कि शराबी ने गाली दी , शराबी ने दी या नहीं स्पष्ट नहीं था । लेकिन क्या मारपीट के लिए यह कारण जायज था क्योंकि मारपीट के समय मेरे आस पास के ना जाने कितने ही लोगों ने गाली दी होगी उस pk को , फकीर ने भी बद्दुआ दी वो भी तो गाली ही तो हैं क्योंकि गाली का मतलब होता हैं अप्रिय शब्द । यह कहाँ का न्याय,  फकीर व उन लोगों की गाली कोई ना , pk की गाली,  गाली । कुछ ने तो महिला से अभ्द्रता का भी आरोप लगाया । मारपीट में शराबी के गाल से खुन भी निकल आया और अगले बस स्टाप पर पुलिस के पास ले जाने का कहकर उसको बस से पहले ही उतार दिया,  उसके गंतव्य से पहले ।
      सही मानो तो उस बिचारे को सिर्फ इसी लिए मारा क्योंकि उसने शराब पी रखी थी जिसका पता सिर्फ उसके मुँह की गंध से चलता हैं अन्यथा नहीं । तो क्या शराब पीना गुनाह हैं,  व्यक्तिगत या धार्मिक कारणों से हो सकता है पर कानून तौर पर नहीं  और हमारा देश कानूनों पर चलाता हैं किसी धर्म या व्यक्ति के नियमों पर नहीं ।
  वैसे राजस्थान की बात करें तो यहाँ कि बोली में गाली आम हैं ।
फिर उसको क्यों मारा , आसमान में उड़ने वाले हवाई जहाजों में तो शराब बड़े अदब के साथ पीया जाता है । हमारे देश में महँगा -महँगा शराब पीने की होड़ मची हैं । इसे VIP टैग माना जाता है तो क्या PK को इसलिए मारा की वह देशी दारू पीकर लाचार था वह मानसिक शक्ति के साथ शारीरिक शक्ति कमजोर कर बैठा था।
नहीं उसको सिर्फ इसीलिए मारा क्योंकि वह व्यक्ति अपने शारीरिक बल को प्रदर्शित करना चाहता था । निजी जिन्दगी का गुस्सा किसी निर्बल पर उतार दिया । अपनी तथाकथित अच्छाई दिखाने की कोशिश में मानसिक नपूसंकता दिखा दी। वह अकेला नहीं था ऐसे किस्से रोज दिखते है जिसमें इंसान का पशुता गुण प्रदर्शित होता हैं ।
 क्यों हम सरकार को कोसते हैं ? हम भी तो हमेशा कमजोर,  मजबूर का फायदा उठाते हैं ना । बड़े - बड़े माॅल में हम MRP से ही सामान लेते हैं कभी भाव ताव नहीं करते क्योंकि हम जानते हैं कि इनको हमारी गर्ज नहीं हैं पर कभी ठेले पर सब्जी लेते हैं तो हम पुरजोर कोशिश करते हैं कि ये हमें कम भाव पर ही सामान दे क्योंकि कि हमारा नेचर ही ऐसा हो गया हैं कमजोर की मजबूरी का फायदा उठाओ ।

  मेरा मकसद कहीं शराब के सेवन को बढ़ावा देना नहीं हैं । मैं खुद शराब के सेवन व निर्माण का घौर विरोधी हुँ । हमें कोशिश करनी चाहिए कि शराबबन्दी हो , सरकार पर दबाव देना होगा कि शराबबन्दी करें ।
  मेरा मकसद,  इस घटनाक्रम के जिक्र के पीछे यही था कि वास्तव में इन्सान पशु , शौतान बनता जा रहा हैं ।
अपनी इंसानियत , संयम,  समझ खो रहा हैं । इंसान सब कुछ अपने हिसाब से चाहता हैं,  हर कोई दुनिया के नियमों को खुद के मुताबिक बनाना चाहता हैं,  इंसान समझने की कोशिश ही नही करता कि दुनिया तर्कसंगत बातों पर ही चलती है ।
 इंसान हिंसक होकर बार - बार पशुता प्रदर्शित कर रहा हैं लेकिन हमारे बुध्दिजीवियों का ध्यान सिर्फ राजनीति पर हैं ।
जिन्हें समाज को सुधारने का काम सौंपा था वह गुरुजी,  ट्युशन नामक रोग के रोगी हो गये । शिक्षण संस्थान सिर्फ मशीनें बनाने की होड़ में हैं ।  माता - पिता हमेशा बच्चों को सुख- सुविधा देने की कोशिश में संस्कार देने भूल रहे हैं ।
धार्मिक कहानीयाँ सुनाने वाले; दादा - दादी,  नाना - नानी वृद्धाश्रम में बैठे हैं तो संस्कार कहाँ से आयेगा । विद्यालय में दौड़कर नहीं; सहयोगी को गिराकर जीतना सिखाया जाता है ।
 अगर आप भी चाहते हैं कि PK जैसा किसी के साथ ना हो तो कोशिश कीजिए कि हमारा शिक्षा तंत्र सुधरे; इनका मकसद सिर्फ जानवरों की तरह पेट भरने की कुशलता सीखाना ना हो बल्कि इंसान ;वह इंसान जो समाज को बेहतरीन बनाने का प्रयास करें । अरे! बेहतरीन जाए भाड़ में कम से कम समाज को खराब ना करें । बाकी समाज को बेहतरीन बनाने वालों की कमी नहीं हैं । कुछ लोग अभी भी हैं जो निःस्वार्थ भाव से समाज में अच्छाइयों को फैला रहे हैं जैसे मैंने किसी न्यूज में पढ़ा 'वाॅर अगेंस्ट रेलवे राउडी' यह एक समूह है जो लोकल ट्रेनों में लड़कीयों से छेड़छाड़ करने वाले लड़कों का विडियो बनाकर,  सबूत के रूप में महिलाओं; पुलिस की मदद करती हैं ।।जय मानवता ।।


मैंने आज एक बन्दर को गौर देखा तो मुझे किसी भी कोण से नहीं लगा कि वे इंसानों के पूर्वज थे।
पर आज जब इंसान को देखता तो वाकई में यकीन आता हैं कि इंसान पहले बंदर ही था जिसके लक्षण अभी भी दिखाई देते हैं, व्यवहार में ।।

चलो! इंसानियत जिन्दा रखिए,  मैं भी कोशिश करूँगा ।।
शायद हमारी कोशिश रंग जरूर लाएगी, ,,इसी आशा के साथ, ,,आज की बात पर विराम ।।
फिर मिलेंगे किसी और रचना के साथ;  इंसानियत के साथ तो हम से कभी भी मिल सकते हो।।। मैं हमेशा इसी कोशिश में रहता हूँ ।।
             
                                         * छगन चहेता

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