जाने क्यों ऐसी चीजें मुझे ही दिखाई देती?
मैंने एक वाकया देखा, मैं सड़क मार्ग से कहीं जा रहा था साथ में कुछ और लोग भी थे मिलने वाले । रोड पर जा रही आर्मी वाहन में बैठे सिपाही को किनारे खड़ी तकरीबन 10-12 साल की लड़की ने हाथ हिलाकर अभिवादन किया तो हम में से किसी ने टिप्पणी की "इनसे से कुछ नहीं मिलेगा " फिर सबकी अश्लील हंसी से साबित हो गया कि "कुछ" का मतलब किससे था। मन तो किया कि कुछ सुना दूं फिर संयम रखकर चुप रहा कुछ मजबूरी थी खास ।
यह ही नहीं ऐसे कई दृश्य देखने को मिलते हैं आम जिंदगी में जिससेे साबित होता है कि अधिकतर पुरुषों की सोच नारी के प्रति की घिनौनी ही होती है। हो सकता है वह बालिका देश भक्ति के नाते उनको अभिवादन कर रही हो क्योंकि ग्रामीण परिवेश के मासूमों के लिए Armey वाले किसी सेलिब्रिटी के समान होते हैं।
मुझे समझ नहीं आ रहा है कि पुरुष ऐसे क्यों होते है?
क्या उनके अंदर नारी के प्रति शारीरिक संबंध के अलावा कोई भावनात्मक संबंध नहीं होता हैं?
वे नारी के भावनाओं का सम्मान क्यों नहीं करते ?
10-12 साल की लड़की के प्रति ऐसी दृष्टि है तो युवा के प्रति कैसी होगी?
क्या किसी लड़की/औरत को हक नहीं कि वह अपने खून के रिश्तेदारों के अलावा किसी विपरीत लिंगी से बात करें / मिले या किसी भी प्रकार का रिश्ता रखें?
हम बात-बात पर उनके रिश्ते का मतलब निकालते हैं क्या यह सही है?
और आप होते कौन हो किसी की जिंदगी में दखलअंदाजी करने वाले?
नहीं, नहीं आप साबित क्या करना चाहते हैं?
क्या हर लड़की के बारे में ऐसा ही सोचते हो ?
क्या कभी हमारी सोच नारी के शरीर से ऊपर उठकर, उनकेे इंसान रुपी व्यक्तित्व पर जाएगी?
नारी के इंसान होने की बात, पुरुष क्या कभी स्वीकार करेगा?
नहीं,
तो एक दिन खुद को इंसान के रूप में स्वीकार करते शर्म आएगी।
क्या कभी ऐसा दिन आएगा कि सर्वप्रथम लड़की की आजादी, उनकी स्वेच्छा को समान दिया जाएगा?
क्या हमें इंसान होकर शोभा देता है कि हम राह चलती लड़की/नारी पर अश्लील टिप्पणी करें ?
जाने क्यों आजकल लड़कपन के सुनहरे समय में लड़के अन-अपेक्षित इच्छाएँ पालने लगे जब उम्र है बस सपने बुनने की ?
लेना न देना किसी की दोस्ती/रिश्ते का मतलब निकाले ।
हम कैसे सोच लेते हैं कि लड़की सिर्फ एक मतलब से ही किसी से दोस्ती करती / मिलती है?
यदि ऐसा सोचते हो तो आपको अपनी मां को मां और अपनी बहन को बहन कहने का कोई हक नहीं। उनको भी आपको बेटा/भाई कहने से शर्म आनी चाहिए क्योंकि वह भी सबसे पहले एक स्त्री है।
हालांकि नारी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं /क्या टिप्पणी करते हैं । उनको पता है कि "कुछ लोगों का काम है कहना कुछ लोग तो कहेंगे"। उस व्यक्ति ने, उस बालिका पर टिप्पणी की, उससे बालिका को क्या फर्क पड़ा लेकिन मेरी नजर में टिप्पणी करने वाले की इज्जत का फालूदा हो गया ना ।
यह सुनकर किसी महाशय ने मुझसे कहा कि तो क्या हम ब्रहमचारी हो जाए ? यह तो पुरुष की स्वाभाविक मानसिकता है कि लड़की को देखने पर उनकी भावनाएं उत्तेजित हो जाती है । उनके ख्याली घोड़े दौड़ने लगते हैं। सही भी है, यह प्राकृतिक हैं, ऐसा हर सजीव में होता है। लड़के और लड़कीयों दोनों के जीवन में एक ऐसा समय आता हैं जब उनको किसी हमसफर के ख्वाब आते हैं, वो विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षित होते हैं । इसमें कोई दौराय नहीं हैं , ये अलग बात है कि ना जाने क्युँ आज कल समलैंगिकता का प्रचलन बढ़ रहा हैं, समान लिंगी विवाह जैसे पवित्र बंधन में बंधकर प्रकृति के विपरीत जा रहे हैं। खैर अपने मुद्दे पर लौटते है,,,,,
सच यह हैं कि हम कुछ ज्यादा ही भावनाओं में बह जाते हैं और संयम नामक शब्द का प्रयोग जीवन में कहीं करते ही नहीं । आप , जो यह तथाकथित हिरो बनकर, लड़कीयों पर फिल्मी टिप्पणी करते हो ना यह छिछोरापंथी कहलाती हैं। कानून के लिए अपराध ।
Flirting (मतलब छेडखानी से नहीं है, इम्प्रेस जैसा कुछ) दो प्रकार की होतीं हैं good & bad और मेरे हिसाब से हम अच्छे -बुरे में भेद जानते ही हैं, तो जो आप कर रहे हो ना , ये bad flirting कहलाती हैं । इसलिए आपको टोका क्योंकि कम से कम इंसान नामक प्राणियों को यह शोभा नहीं देता । बाकी
मैं यह नहीं कहता कि किसी लड़की को मत देखो, ख्याली घोड़ों को मत दौड़ाओ लेकिन उनकी लगाम अपने हाथ में रखो।
जहां तक मेरा मानना है स्वभाविकता और अश्लीलता में फर्क होता है । हमें हमारी युवा मन को दबाना नहीं चाहिए लेकिन अपनी स्वभाविकता नहीं खोनी चाहिए । मैं आपसे ब्रहमचारी होने की अपील नहीं कर रहा हूँ। स्वभाविकता में आने की बात कर रहा हूँ और अश्लीलता को दूर रखने की बात कर रहा हूँ ।
प्रेम कहानी तो सीता - राम, राधा - कृष्ण, संयोगीता - पृथ्वीराज चौहान की भी थी क्या निराली प्रेमकथाएँ हैं । लैला मँजनू , ढौला मारू, ,,,,,,,
जो आप अपनी छिछोरापंथी को प्रेम कहानी कहते हो ना
तो किसी दिन महफिल में किसी ने चाहा आपकी प्रेम कहानी सुनना तो क्या सुनाओगे कि हम जवानी में नुक्कड़ पे लड़कीयों को छेड़ते थे, या किस किस से चप्पल खाये । ये सुनाओगे, ,,,,,
मुझे नहीं लगता कि ये लड़कपन हैं, ,,लड़कपन को सुनहरा बनाओ, ,,,अपने व्यक्तित्व को कृष्ण सा बनाओ राधा मिल ही जाएगी । अपने व्यक्तित्व को रूक्मणी सा बनाओ कृष्ण मिल ही जाएगा ।। सच में यही लड़कपन होता हैं, ,,,,,,
रावण बनकर सीता को पाने की कोशिश मत करो , राम बनो; सीता मिल जाएगी ।
हमारी मोहब्बत में अफसाने होने चाहिए, मुकदमे नहीं....
बस खोजते रहो अपने सपनों का हमसफर पर सराफत मत खोना, याद रखना हमारी आशिकी किसी भी कोण से अभ्द्रता, अश्लीलता में नहीं बदलना चाहिए ।
कहते हैं न कि खुदा ने बनाया होगा हर किसी के लिए किसी न किसी को,,,,,,,,तो अपनी खोज जारी रखो, ,,,,उसने आपकी मोहब्बत को ठुकराया तो किसी और का इन्तजार कीजिए, ,,,क्योंकि सब्र का फल मिठा होता हैं, हो सकता है बहुत खुबसूरत भी हो दिल से और चेहरे से भी, ,,,,,,,अरे! चिंता क्यों करते हो, ,उम्मीद पर दुनिया कायम हैं ।।।
नहीं तो आगे की,,,,,,,,
कभी किसी के बारे में बुरा सोचने से पहले एक बार यह सोच लेना कि जिस प्रकार आपके कोई माँ, बहन, बेटी है वैसे ही वह भी किसी की माँ, बहन, बेटी होगी और एक बात बिल्कुल सत्य हैं कि प्रकृति बदला कभी नहीं छोड़ती।
आप जैसे किसी के साथ बुरा कर रहे हैं । वैसा, खुदा न खास्ता आपके किसी परिजन के साथ हो जाए तो,,,,,,,,,, सोच कर चोटी से एड़ी तक हिल गए ना, तो सोचो जिनके साथ बुरा कर रहे हो । वह भी तो किसी की प्रिय होगी ना ।
सो प्लीज लड़कियों को इंसान समझे ।
नहीं समझोगे तो एक दिन खुद को पुरुष कहने के लायक समझ , नहीं पाओगे।
राह चलती लड़कियों का सम्मान नहीं करोंगे , उन पर लैंगिक /अश्लील टिप्पणियाँ करोगे तो,,,,, याद रखना कि आप अपनी बुरी सोच को फैला रहे हो और कहते हैं ना कि अमुमन ऐसा ही होता है कि जो गड्डा खोदता है , वही उसमें गिरता है।
याद रखना अपनी बुरी सोच फैलेगी तो आपकी लिए ही बुरा होगा क्योंकि आपके परिवार की लड़कियाँ / औरतें सबकी सगी नहीं है। वह भी तो घर से बाहर निकलती है।
सो प्लीज,,,, प्लीज,,,, अपने परिवार की ही लड़कियों/ औरतों के लिए ही सही महिलाओं के प्रति अपना दृष्टिकोण सकारात्मक रखिए।
और रही बात कि यह सब मैं क्यों कर रहा हूँ ?
सही है कोई ठेका तो नहीं ले रखा देश सुधारने का , इससे अच्छा कोई और काम करूँ, मेरी लाईफ सुधरेगी
( ऐसा सब सोचते तो,,,,,,,, महात्मा गाँधी ,भगत सिंह हो जाता देश आजाद, ,,अरे सोचो तो सोचो किसी को कहकर अपनी नंपुसकता प्रदर्शित तो मत करो)
लेकिन जब अपने आप को भारतीय कहता हूँ और मेरे ही देश में ऐसी घटनाएं होती हे तो मुझे टीस देती है। कल को किसी के साथ खुदा ना खस्ता ऐसी घटना हो जाए तो आप सब देश की व्यवस्था को दोष ठहराओगे,कोई नई बात नहीं हैं सदीयो से यही परम्परा हैं कि हर बुरी घटना का ठिकरा सरकार के ही सर फूटेगा।
आप सरकार के सामने हिंसक होकर अपराध पर अन्कुश लगाने की रट लगाओगे और न जाने रेलवे स्टेशन , बस स्टैंड किस - किस पर भीड़ का गुस्सा फुटेगा। तो इससे अच्छा है कि पहले से ही अपराधी को नहीं, अपराधी सोच को ही खत्म किया जाए । कहावत तो सुनी होगी -"रोग के उपचार से रोकथाम बेहतर हैं ।
शायद मैं सही हूँ, ,,,
अपने आप में सब सही होते हैं यह मिथ्या हैं ।।।
but______ मेरा मकसद सही हैं,,,,,
, ,,,बस राह पर अकेला हूँ इसलिए गलत लग रहा हूँ ।
सही में गलत नहीं थोड़ा सा अलग हूँ, ,,,,,,,
अगर आप चलो हाथ मिलाकर साथ, तो शायद दुनिया को भी सही लगे, ,,
चलोगे ना?
बस यूँ ही,सोचा कोई मिल जाए तो राह थोड़ी जल्दी कटेगी बाकी संघर्ष तो उतना ही करना पड़ेगा ।
उम्मीद मुझे खुद की कोशिशें से है कि भले ही कोई साथ दे न दे पर , नारी को समाज में जायज हक दिलाने की मेरी कोशिश सफल जरूर होगी । कहते हैं न कि उम्मीदों पर दुनिया कायम हैं, ,,,,,,किसीके क्या, बहुतो के साथ की उम्मीद भी हैं,मुझे ,,,,,,
,,,नहीं, तो अकेले चल ही रहे हैं , दुनिया की परवाह की ही नही कभी।
दुनिया की परवाह तब तक नहीं करते जब तक सही हैं ।
कोई ना, साथ न चल सको तो बस राहो के किनारों से ही हुटिंग कर देना ताकि पार कर दूँ इस पड़ाव को तो फिर ना चलना पड़े किसी और को इन मुश्किल राहो पर।।
आत्मविश्वास है मेरा दोस्तों कि मेरी कोशिश सफल हो गई , तो यह मेरी उजड़ पगडंडी एक दिन विशाल रास्ता बनेगी जिस पर चलने वालों की भीड़ होगी और ना जाने कितने लोगों की चलने की ख्वाहिश होगी ।
"दुनिया की सोच बदल ना सकुँगा तो क्या यह मलाल तो नहीं रहेगा कि कोशिश करता तो शायद दुनिया बदल देता ।"
मैं अपनी राह पर अकेला हूँ क्योंकि यह सच की राह है जो कठिन हैं बहुत ही कठिन, ,,,
(I am alone on my way because it is the path of truth which is difficult, very difficult.)
*छगन चहेता
मैंने एक वाकया देखा, मैं सड़क मार्ग से कहीं जा रहा था साथ में कुछ और लोग भी थे मिलने वाले । रोड पर जा रही आर्मी वाहन में बैठे सिपाही को किनारे खड़ी तकरीबन 10-12 साल की लड़की ने हाथ हिलाकर अभिवादन किया तो हम में से किसी ने टिप्पणी की "इनसे से कुछ नहीं मिलेगा " फिर सबकी अश्लील हंसी से साबित हो गया कि "कुछ" का मतलब किससे था। मन तो किया कि कुछ सुना दूं फिर संयम रखकर चुप रहा कुछ मजबूरी थी खास ।
यह ही नहीं ऐसे कई दृश्य देखने को मिलते हैं आम जिंदगी में जिससेे साबित होता है कि अधिकतर पुरुषों की सोच नारी के प्रति की घिनौनी ही होती है। हो सकता है वह बालिका देश भक्ति के नाते उनको अभिवादन कर रही हो क्योंकि ग्रामीण परिवेश के मासूमों के लिए Armey वाले किसी सेलिब्रिटी के समान होते हैं।
मुझे समझ नहीं आ रहा है कि पुरुष ऐसे क्यों होते है?
क्या उनके अंदर नारी के प्रति शारीरिक संबंध के अलावा कोई भावनात्मक संबंध नहीं होता हैं?
वे नारी के भावनाओं का सम्मान क्यों नहीं करते ?
10-12 साल की लड़की के प्रति ऐसी दृष्टि है तो युवा के प्रति कैसी होगी?
क्या किसी लड़की/औरत को हक नहीं कि वह अपने खून के रिश्तेदारों के अलावा किसी विपरीत लिंगी से बात करें / मिले या किसी भी प्रकार का रिश्ता रखें?
हम बात-बात पर उनके रिश्ते का मतलब निकालते हैं क्या यह सही है?
और आप होते कौन हो किसी की जिंदगी में दखलअंदाजी करने वाले?
नहीं, नहीं आप साबित क्या करना चाहते हैं?
क्या हर लड़की के बारे में ऐसा ही सोचते हो ?
क्या कभी हमारी सोच नारी के शरीर से ऊपर उठकर, उनकेे इंसान रुपी व्यक्तित्व पर जाएगी?
नारी के इंसान होने की बात, पुरुष क्या कभी स्वीकार करेगा?
नहीं,
तो एक दिन खुद को इंसान के रूप में स्वीकार करते शर्म आएगी।
क्या कभी ऐसा दिन आएगा कि सर्वप्रथम लड़की की आजादी, उनकी स्वेच्छा को समान दिया जाएगा?
क्या हमें इंसान होकर शोभा देता है कि हम राह चलती लड़की/नारी पर अश्लील टिप्पणी करें ?
जाने क्यों आजकल लड़कपन के सुनहरे समय में लड़के अन-अपेक्षित इच्छाएँ पालने लगे जब उम्र है बस सपने बुनने की ?
लेना न देना किसी की दोस्ती/रिश्ते का मतलब निकाले ।
हम कैसे सोच लेते हैं कि लड़की सिर्फ एक मतलब से ही किसी से दोस्ती करती / मिलती है?
यदि ऐसा सोचते हो तो आपको अपनी मां को मां और अपनी बहन को बहन कहने का कोई हक नहीं। उनको भी आपको बेटा/भाई कहने से शर्म आनी चाहिए क्योंकि वह भी सबसे पहले एक स्त्री है।
हालांकि नारी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं /क्या टिप्पणी करते हैं । उनको पता है कि "कुछ लोगों का काम है कहना कुछ लोग तो कहेंगे"। उस व्यक्ति ने, उस बालिका पर टिप्पणी की, उससे बालिका को क्या फर्क पड़ा लेकिन मेरी नजर में टिप्पणी करने वाले की इज्जत का फालूदा हो गया ना ।
यह सुनकर किसी महाशय ने मुझसे कहा कि तो क्या हम ब्रहमचारी हो जाए ? यह तो पुरुष की स्वाभाविक मानसिकता है कि लड़की को देखने पर उनकी भावनाएं उत्तेजित हो जाती है । उनके ख्याली घोड़े दौड़ने लगते हैं। सही भी है, यह प्राकृतिक हैं, ऐसा हर सजीव में होता है। लड़के और लड़कीयों दोनों के जीवन में एक ऐसा समय आता हैं जब उनको किसी हमसफर के ख्वाब आते हैं, वो विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षित होते हैं । इसमें कोई दौराय नहीं हैं , ये अलग बात है कि ना जाने क्युँ आज कल समलैंगिकता का प्रचलन बढ़ रहा हैं, समान लिंगी विवाह जैसे पवित्र बंधन में बंधकर प्रकृति के विपरीत जा रहे हैं। खैर अपने मुद्दे पर लौटते है,,,,,
सच यह हैं कि हम कुछ ज्यादा ही भावनाओं में बह जाते हैं और संयम नामक शब्द का प्रयोग जीवन में कहीं करते ही नहीं । आप , जो यह तथाकथित हिरो बनकर, लड़कीयों पर फिल्मी टिप्पणी करते हो ना यह छिछोरापंथी कहलाती हैं। कानून के लिए अपराध ।
Flirting (मतलब छेडखानी से नहीं है, इम्प्रेस जैसा कुछ) दो प्रकार की होतीं हैं good & bad और मेरे हिसाब से हम अच्छे -बुरे में भेद जानते ही हैं, तो जो आप कर रहे हो ना , ये bad flirting कहलाती हैं । इसलिए आपको टोका क्योंकि कम से कम इंसान नामक प्राणियों को यह शोभा नहीं देता । बाकी
मैं यह नहीं कहता कि किसी लड़की को मत देखो, ख्याली घोड़ों को मत दौड़ाओ लेकिन उनकी लगाम अपने हाथ में रखो।
जहां तक मेरा मानना है स्वभाविकता और अश्लीलता में फर्क होता है । हमें हमारी युवा मन को दबाना नहीं चाहिए लेकिन अपनी स्वभाविकता नहीं खोनी चाहिए । मैं आपसे ब्रहमचारी होने की अपील नहीं कर रहा हूँ। स्वभाविकता में आने की बात कर रहा हूँ और अश्लीलता को दूर रखने की बात कर रहा हूँ ।
प्रेम कहानी तो सीता - राम, राधा - कृष्ण, संयोगीता - पृथ्वीराज चौहान की भी थी क्या निराली प्रेमकथाएँ हैं । लैला मँजनू , ढौला मारू, ,,,,,,,
जो आप अपनी छिछोरापंथी को प्रेम कहानी कहते हो ना
तो किसी दिन महफिल में किसी ने चाहा आपकी प्रेम कहानी सुनना तो क्या सुनाओगे कि हम जवानी में नुक्कड़ पे लड़कीयों को छेड़ते थे, या किस किस से चप्पल खाये । ये सुनाओगे, ,,,,,
मुझे नहीं लगता कि ये लड़कपन हैं, ,,लड़कपन को सुनहरा बनाओ, ,,,अपने व्यक्तित्व को कृष्ण सा बनाओ राधा मिल ही जाएगी । अपने व्यक्तित्व को रूक्मणी सा बनाओ कृष्ण मिल ही जाएगा ।। सच में यही लड़कपन होता हैं, ,,,,,,
रावण बनकर सीता को पाने की कोशिश मत करो , राम बनो; सीता मिल जाएगी ।
हमारी मोहब्बत में अफसाने होने चाहिए, मुकदमे नहीं....
बस खोजते रहो अपने सपनों का हमसफर पर सराफत मत खोना, याद रखना हमारी आशिकी किसी भी कोण से अभ्द्रता, अश्लीलता में नहीं बदलना चाहिए ।
कहते हैं न कि खुदा ने बनाया होगा हर किसी के लिए किसी न किसी को,,,,,,,,तो अपनी खोज जारी रखो, ,,,,उसने आपकी मोहब्बत को ठुकराया तो किसी और का इन्तजार कीजिए, ,,,क्योंकि सब्र का फल मिठा होता हैं, हो सकता है बहुत खुबसूरत भी हो दिल से और चेहरे से भी, ,,,,,,,अरे! चिंता क्यों करते हो, ,उम्मीद पर दुनिया कायम हैं ।।।
नहीं तो आगे की,,,,,,,,
कभी किसी के बारे में बुरा सोचने से पहले एक बार यह सोच लेना कि जिस प्रकार आपके कोई माँ, बहन, बेटी है वैसे ही वह भी किसी की माँ, बहन, बेटी होगी और एक बात बिल्कुल सत्य हैं कि प्रकृति बदला कभी नहीं छोड़ती।
आप जैसे किसी के साथ बुरा कर रहे हैं । वैसा, खुदा न खास्ता आपके किसी परिजन के साथ हो जाए तो,,,,,,,,,, सोच कर चोटी से एड़ी तक हिल गए ना, तो सोचो जिनके साथ बुरा कर रहे हो । वह भी तो किसी की प्रिय होगी ना ।
सो प्लीज लड़कियों को इंसान समझे ।
नहीं समझोगे तो एक दिन खुद को पुरुष कहने के लायक समझ , नहीं पाओगे।
राह चलती लड़कियों का सम्मान नहीं करोंगे , उन पर लैंगिक /अश्लील टिप्पणियाँ करोगे तो,,,,, याद रखना कि आप अपनी बुरी सोच को फैला रहे हो और कहते हैं ना कि अमुमन ऐसा ही होता है कि जो गड्डा खोदता है , वही उसमें गिरता है।
याद रखना अपनी बुरी सोच फैलेगी तो आपकी लिए ही बुरा होगा क्योंकि आपके परिवार की लड़कियाँ / औरतें सबकी सगी नहीं है। वह भी तो घर से बाहर निकलती है।
सो प्लीज,,,, प्लीज,,,, अपने परिवार की ही लड़कियों/ औरतों के लिए ही सही महिलाओं के प्रति अपना दृष्टिकोण सकारात्मक रखिए।
और रही बात कि यह सब मैं क्यों कर रहा हूँ ?
सही है कोई ठेका तो नहीं ले रखा देश सुधारने का , इससे अच्छा कोई और काम करूँ, मेरी लाईफ सुधरेगी
( ऐसा सब सोचते तो,,,,,,,, महात्मा गाँधी ,भगत सिंह हो जाता देश आजाद, ,,अरे सोचो तो सोचो किसी को कहकर अपनी नंपुसकता प्रदर्शित तो मत करो)
लेकिन जब अपने आप को भारतीय कहता हूँ और मेरे ही देश में ऐसी घटनाएं होती हे तो मुझे टीस देती है। कल को किसी के साथ खुदा ना खस्ता ऐसी घटना हो जाए तो आप सब देश की व्यवस्था को दोष ठहराओगे,कोई नई बात नहीं हैं सदीयो से यही परम्परा हैं कि हर बुरी घटना का ठिकरा सरकार के ही सर फूटेगा।
आप सरकार के सामने हिंसक होकर अपराध पर अन्कुश लगाने की रट लगाओगे और न जाने रेलवे स्टेशन , बस स्टैंड किस - किस पर भीड़ का गुस्सा फुटेगा। तो इससे अच्छा है कि पहले से ही अपराधी को नहीं, अपराधी सोच को ही खत्म किया जाए । कहावत तो सुनी होगी -"रोग के उपचार से रोकथाम बेहतर हैं ।
शायद मैं सही हूँ, ,,,
अपने आप में सब सही होते हैं यह मिथ्या हैं ।।।
but______ मेरा मकसद सही हैं,,,,,
, ,,,बस राह पर अकेला हूँ इसलिए गलत लग रहा हूँ ।
सही में गलत नहीं थोड़ा सा अलग हूँ, ,,,,,,,
अगर आप चलो हाथ मिलाकर साथ, तो शायद दुनिया को भी सही लगे, ,,
चलोगे ना?
बस यूँ ही,सोचा कोई मिल जाए तो राह थोड़ी जल्दी कटेगी बाकी संघर्ष तो उतना ही करना पड़ेगा ।
उम्मीद मुझे खुद की कोशिशें से है कि भले ही कोई साथ दे न दे पर , नारी को समाज में जायज हक दिलाने की मेरी कोशिश सफल जरूर होगी । कहते हैं न कि उम्मीदों पर दुनिया कायम हैं, ,,,,,,किसीके क्या, बहुतो के साथ की उम्मीद भी हैं,मुझे ,,,,,,
,,,नहीं, तो अकेले चल ही रहे हैं , दुनिया की परवाह की ही नही कभी।
दुनिया की परवाह तब तक नहीं करते जब तक सही हैं ।
कोई ना, साथ न चल सको तो बस राहो के किनारों से ही हुटिंग कर देना ताकि पार कर दूँ इस पड़ाव को तो फिर ना चलना पड़े किसी और को इन मुश्किल राहो पर।।
आत्मविश्वास है मेरा दोस्तों कि मेरी कोशिश सफल हो गई , तो यह मेरी उजड़ पगडंडी एक दिन विशाल रास्ता बनेगी जिस पर चलने वालों की भीड़ होगी और ना जाने कितने लोगों की चलने की ख्वाहिश होगी ।
"दुनिया की सोच बदल ना सकुँगा तो क्या यह मलाल तो नहीं रहेगा कि कोशिश करता तो शायद दुनिया बदल देता ।"
मैं अपनी राह पर अकेला हूँ क्योंकि यह सच की राह है जो कठिन हैं बहुत ही कठिन, ,,,
(I am alone on my way because it is the path of truth which is difficult, very difficult.)
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