Friday, 1 December 2017

छगन चहेता की कविता "जिन्दगी, ,,,,,,,,,"

कभी यहाँ, कभी वहाँ भटकाती हैं जिंदगी
कभी अच्छी, कभी बुरी खबर सुनाती हैं जिंदगी
कभी मीठा, कभी कड़वा स्वाद चखाती हैं जिंदगी
कभी पाठ ,कभी सबक सिखाती हैं जिंदगी
कभी हम पर हँसती, कभी हमको हँसाती हैं जिंदगी
कभी खुशी , कभी गम में बितती हैं जिंदगी
कभी इश्क, कभी नफरत में जलाती हैं जिंदगी
कभी गुनगुनाती, कभी चिल्लाती हैं जिंदगी
बचपन में जवानी के सपने दिखाती हैं जिंदगी
बुढ़ापे में बचपन की यादें दिलाती हैं जिंदगी
कभी बैठकर सोचना यारो
चुनौतियाँ देकर भी कितना प्यार बरसाती हैं जिंदगी
कभी सपने दिखाती, कभी सपने तोड़ती हैं जिंदगी
कभी ना मुँह मोड़ो जिंदगी से
सब कुछ बुझाकर भी
"आशा" की एक लौ जलाए रखती हैं जिंदगी ।

                                 *छगन चहेता

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