आज हर तरफ पदमावती फिल्म का विरोध हो रहा हैं कारण बता रहें हैं कि फिल्म में हमारे गौरवशाली इतिहास के साथ छेड़ -छाड़ की जा रही हैं । यदि यह बात सत्य हैं तो जमकर विरोध होना चाहिए क्योंकि हमारे पास गर्व करने के लिए सिर्फ गौरवशाली इतिहास ही हैं ।बाकी जिस प्रकार हम चल रहें हैं उस हिसाब से हमारा वर्तमान और भविष्य दोनों के हालात ठीक नहीं दिख रहें हैं ।
मैं यह नहीं कहता कि विरोध जायज हैं या नहीं बल्कि मेरा मुद्दा हैं कि क्या हम विरोध करने के लायक हैं? आज हम उस महिला के लिए लड़ रहें हैं जिसने खुद की इज्जत अपने अद्मय साहस से बचा ली थीं । हमें आज हो रहें, महिलाओं के साथ बलात्कार, छेड़छाड़ जैसे घिनौने अपराधों पर चिंता नहीं हैं । दिल्ली के दामिनी हत्या के अलावा शायद ही ऐसी कोई घटना होगी जिसका फिल्म की तरह विरोध हुआ । दामिनी के उस दरिंदे को कम उम्र का बेतुका तर्क देकर छोड़ दिया किसी ने विरोध नहीं किया, क्यों?
हमें चिंता हैं इतिहास की जिसका लौहा दुनिया मान चुकी हैं । किसी 2:00 घण्टे के चलचित्र(film) के आधार पर उस अमर इतिहास पर लांचल नहीं आएगा । चिंता करो हमारे भारत के भविष्य की जो गर्त में जा रहा हैं । महिलाओं के साथ सरेआम, रोज कई अनेपक्षित घटनाएँ हो रही हैं । लड़कीयों का सड़कों पर निकलना दुभर हो रहा हैं तब क्या हमारे इतिहास, संस्कृति का मान बढ़ता हैं? मुझे समझ नहीं आ रहा हैं कि मेरे रंगीले राजस्थान को क्या हो गया, वर्तमान और भविष्य की चिंता छोड़ इतिहास खंखाल रहा हैं ।
शायद इतना विरोध हम नारी के होते अपराधों का करते तो आज हमारे देश की तस्वीर कुछ और होती। हम बस राजनीति, दिखावा करने की कोशिश कर रहें हैं हमें इतिहास, वर्तमान और भविष्य से कोई ताल्लुकात ही नहीं हैं । जो भी व्यक्ति इतिहास के साथ छेड़छाड़ का विरोध कर रहा हैं वो एक बार जरूर सोचे क्या हमारा वर्तमान सही जा रहा हैं ?क्या, रोज समाचारों में मिलने वाली नारी अपराधों की घटनाओं का हमने कभी विरोध किया । यदि नहीं तो पहले यह संकल्प ले कि हम हमारे आस - पास होने वाली हर उस घटना का विरोध करेंगे जो नारी के सम्मान को ठेस पहुँचाती हैं । फिर आपको लगता हैं कि कोई अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत फायदा उठा रहा हैं, ये फिल्म हमारे गौरवशाली इतिहास का अपमान कर रही हैं तो अहिंसा, संयम, शांति के साथ जमकर विरोध करो, हक से विरोध करो।
क्योंकि अपणे मारवाड़ी मो एक कहावत हैं न कि "पेल पगो बळती बुझाणी पछे डुगर बळती जोणी ।" समझ्या के।।
।।जय राणी पदमावती ।। जय नारी शक्ति ।।जय राजस्थान ।।
* छगन चहेता
स्वतंत्र लेखक व कवि
मैं यह नहीं कहता कि विरोध जायज हैं या नहीं बल्कि मेरा मुद्दा हैं कि क्या हम विरोध करने के लायक हैं? आज हम उस महिला के लिए लड़ रहें हैं जिसने खुद की इज्जत अपने अद्मय साहस से बचा ली थीं । हमें आज हो रहें, महिलाओं के साथ बलात्कार, छेड़छाड़ जैसे घिनौने अपराधों पर चिंता नहीं हैं । दिल्ली के दामिनी हत्या के अलावा शायद ही ऐसी कोई घटना होगी जिसका फिल्म की तरह विरोध हुआ । दामिनी के उस दरिंदे को कम उम्र का बेतुका तर्क देकर छोड़ दिया किसी ने विरोध नहीं किया, क्यों?
हमें चिंता हैं इतिहास की जिसका लौहा दुनिया मान चुकी हैं । किसी 2:00 घण्टे के चलचित्र(film) के आधार पर उस अमर इतिहास पर लांचल नहीं आएगा । चिंता करो हमारे भारत के भविष्य की जो गर्त में जा रहा हैं । महिलाओं के साथ सरेआम, रोज कई अनेपक्षित घटनाएँ हो रही हैं । लड़कीयों का सड़कों पर निकलना दुभर हो रहा हैं तब क्या हमारे इतिहास, संस्कृति का मान बढ़ता हैं? मुझे समझ नहीं आ रहा हैं कि मेरे रंगीले राजस्थान को क्या हो गया, वर्तमान और भविष्य की चिंता छोड़ इतिहास खंखाल रहा हैं ।
शायद इतना विरोध हम नारी के होते अपराधों का करते तो आज हमारे देश की तस्वीर कुछ और होती। हम बस राजनीति, दिखावा करने की कोशिश कर रहें हैं हमें इतिहास, वर्तमान और भविष्य से कोई ताल्लुकात ही नहीं हैं । जो भी व्यक्ति इतिहास के साथ छेड़छाड़ का विरोध कर रहा हैं वो एक बार जरूर सोचे क्या हमारा वर्तमान सही जा रहा हैं ?क्या, रोज समाचारों में मिलने वाली नारी अपराधों की घटनाओं का हमने कभी विरोध किया । यदि नहीं तो पहले यह संकल्प ले कि हम हमारे आस - पास होने वाली हर उस घटना का विरोध करेंगे जो नारी के सम्मान को ठेस पहुँचाती हैं । फिर आपको लगता हैं कि कोई अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत फायदा उठा रहा हैं, ये फिल्म हमारे गौरवशाली इतिहास का अपमान कर रही हैं तो अहिंसा, संयम, शांति के साथ जमकर विरोध करो, हक से विरोध करो।
क्योंकि अपणे मारवाड़ी मो एक कहावत हैं न कि "पेल पगो बळती बुझाणी पछे डुगर बळती जोणी ।" समझ्या के।।
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