Tuesday, 5 December 2017

छोटे कपड़े या हमारी सोच, ,,,,,,,,?

हमारे देश के एक राजनेता ने कुछ समय पहले एक घटना के संदर्भ में कहा था कि लड़कियाँ छोटे कपड़े पहनती हैं इसलिए उनके साथ दुष्कर्म होता हैं । एक और मामला था रेप & मर्डर, उसमें गैटमैन ने एक महिला के साथ रेप कर उसका मर्डर कर दिया था। उस आरोपी के वकील ने बचाव के लिए दलील दी कि महिला नाईट गाउन में थी ,जिसे देख आरोपी उत्तेजित हो गया जो की नेचुरल हैं । इसी कारण उसने उत्तेजनावश रेप कर दिया एवं डर के मारे हत्या कर दी।
  ऐसे मामले सीधा - सीधा संकेत करना चाहते हैं कि महिलाओं के साथ होने वाले दुष्कर्मों का कारण उनके कपड़े ही है ,पुरुष का कोई दोष नहीं हैं । वे बिचारे अपनी इन्द्रीयों के लाचार हैं । But. ....
हमारे देश में हजारों ऐसे मामले होते हैं । जिसमें पाँच साल से भी कम उम्र की मासूमो के साथ दुष्कर्म होता हैं । वहाँ भी आप अल्पवस्त्रों की दलीले दोगें क्या? विदेशों में तो ऐसा नहीं होता,  वहाँ तो अति अल्पवस्त्र पहने जाते है ना। फिर भी,,,आप यह दावा कर सकते हैं कि भारतीय परिधान पहने नारी के साथ कभी बलात्कार नहीं होता ?
  मुझे तो यही लगता हैं कि कपड़ों से ज्यादा छोटी हमारी यानी पुरुष की सोच हो गई है । "हमारी भारतीय संस्कृति परिधान आधारित नहीं हैं,  ये सोच आधारित हैं ।" वैसे भी हमारा ये मारवाड़ी परिधान भी पुर्णरूपेण देशी नहीं हैं,  ये मुगलो से प्रेरित हैं   । वैसे भी मनुष्यों को कपड़ों की आवश्यकता शर्म से बचाव के लिए नहीं; सर्दी , गर्मी, वर्षा आदि से बचाव के लिए हुईं हैं ।
       हम किसी के स्कर्ट की लम्बाई से उसका चरित्र नहीं माप सकते हैं । यदि हम ऐसा करते हैं तो यह हमारी सोच का ओछापन हैं ।
    यदि आपने सुना हो तो लक्ष्मण को सुवर्णंपंखा ने विवाह का प्रस्ताव दिया था तथा लक्ष्मण को रिझाने की सर्वसंभव कोशिशें की थीं । कहा जाता हैं कि सुवर्णंपंखा बेहद खुबसुरत  व मनमोहक स्त्री थीं । फिर भी लक्ष्मण ने प्रस्ताव ठुकरा दिया । उनका तो मन नहीं डोला । वह भी तो मर्द थे  (सच में हमसे कहीं ज्यादा ।)।
   हमें महिलाओं पर दोष देने की बजाय स्वयं की सोच को, संस्कृति को, चरित्र को पवित्र रखना होगा ।[इस मुद्दे पर बनी #हिन्दी_फिल्म_पिंक बहुत ही खुबसुरत हैं ।]
  मेरी अपने काॅलेज के दोस्तों के साथ इस मुद्दे पर बहस हुईं थी जिसमें अधिकतर का मानना हैं कि लड़कियाँ, लड़कों को आकर्षित करने के लिए ऐसे वस्त्र पहनती हैं । लेकिन सुना हैं सबसे सुन्दर व आकर्षक दिखने का प्रयास शादी-विवाहो में किया जाता हैं । वहाँ तो ज्यादातर परम्परागत परिधान में ही स्त्रियाँ आती हैं । बेशक ज्यादा सुन्दर भी लगती हैं ।
      कपड़े दिखने - दिखाने के हिसाब से नहीं । अपनी सहुलियत व आरामदायकता के अनुसार पहने जाते है । हमारी यही समस्या हैं कि हम एक तरफा फैसला लेते हैं यानी जैसा हमें अच्छा लगता हैं वैसी धारणा बना लेते हैं ।
  यदि वे आकर्षण के लिए भी ऐसे वस्त्र पहनती हैं तो इसमें बुराई क्या हैं?  प्रकृति का नियम हैं ( physics, chemistry का); विपरीत - विपरीत हमेशा एक - दूसरे को आकर्षित करना चाहते हैं ।
   आकर्षण का मतलब, यह  कभी नहीं होता कि आप उनके साथ दुर्व्यवहार करें या उसका चरित्र अच्छा नहीं हैं ।  आप भी चाहते होंगे कि मैं लड़कियों के सामने अच्छा दिखुँ। वैसे वे भी चाहती होगी,  इसमें तार्किक रूप से कोई बुराई नहीं हैं । वो हमें कैसी लगती हैं यह अपना-अपना नजरिया हैं लेकिन एक बात तो साफ हैं कि हवस छोटे या आधे कपड़ों के आधार पर पैदा नहीं होती , वो उत्पन्न होती हैं छोटी सोच से, अपूर्ण संस्कारों से और हमारी विचारात्मक पशुता से। यही पूर्ण सत्य हैं । इसमें महिलाओं को दोष देने के बजाय हमें खुद की बेतुकी मान्यताओं और ओछे विचारों को त्यागकर नारी का , नारी की जायज आजादी का सम्मान करना होगा अन्यथा परिणाम अत्यंत घातक होंगे ।।जय नारी शक्ति ।।
                                          * छगन चहेता
                       
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