वो अपनी जुल्फे संवारें बैठी थी । मुझ पर अपनी मोहब्बत बरसाना चाहती थी । अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हर संभव प्रयास किये जा रखी थी। दूसरी तरफ मैं था जो बस कामुकता की ओर बढ़े जा रहा था ।उसकी मनोहरमता को नजरअंदाज कर भौतिकता की ओर बढ़ रहा था ।
मेरे दिल में भी उसके लिए प्रेम था मगर फिर भी ना जाने क्यों? उससे मुख मोड़ रहा था और मुझे सिर्फ मादकता खिंच रही थी वो मादकता जो मेरी सच्ची महबूबा की सजावट को नष्ट कर रही थी।
मैं मादकता, कामुकता के तले चुप था , महबूबा मेरे लिए अभी भी अपना प्यार लिए बैठी थी फिर भी मेरी मादकता की आग उसकी सजावट जलाए जा रही थी। वो मोहब्बत की आस में अपनी मोहब्बत लुटाए जा रही थी, मैं लालच से लबरेज़ हो उसे लुटता ही जा रहा था । भौतिकता के सुख भोगने के ख़ातिर ।
अब पूरी तरह से भौतिकता पर आ गया था , उसे पाने की आस में अपनी महबूबा पर घात करना तक शुरू कर दिया । बोल दिया कि भौतिकता के होते तेरी जरूरत क्या?
लेकिन कुछ वक़्त बाद उसे भोगते- भोगते मुझे अहसास होने लगा कि सिर्फ बाहरी खुशी मिल रही है अन्दर ही अन्दर उदासी छा रही है । भौतिकता मेरा दुरूपयोग करने लगी है, बेवफाई करने लगी है । हमारे संबंध हथकड़ी बनने लगे हैं । उसका विस्तृत संसार जेल सा लग रहा है । मानो सांसें उखड़ने लगी हैं । प्रेम की प्यास के मारे हलक़ सूखा जा रहा था और भौतिकता मेरी अपने से प्यार करने की बेवकूफी पर हँस रही थी,,,अपने सीधे - उल्टे तर्क दिये जा रही थी । जो भी हो रहा था मुझे ही अपराधी ठहराया जा रहा था ।
फिर जब हताश, निराश सांसें थमने लगी तब अपनी पहले की महबूबा की ओर आस लगाई,,, लगा कि वो मेरी हालत पर ठहाका लगाएगी, लेकिन नहीं वो आज भी अपनी मोहब्बत लिए खड़ी थी।
हाँ, वो मेरी मादकता के तले उजड़ चुकी थी , भौतिकता के उत्पात के कारण । फिर भी मेरा रूख़ अपनी ओर देख वो खिल उठी थी , स्वागत को थाल लिए खड़ी थी, झुलसी सजावट संवारने लगी थी , उसकी जवानी लौटने लगी थी ।
वो मेरी बेवफाई के ताने देने के बजाय मेरे लौट आने की खुशी में झूमने लगी थी ।
वो मेरी महबूबा " प्रकृति " ही है जो बस मेरा प्रेम चाहती है और कुछ नही । बदले में खुशी, शांति और सौन्दर्य का दीदार कराना चाहती है ,,,, अब बस प्रकृति के साथ खुश हूँ । इससे मुझे असीम प्यार मिलता है जो कभी खत्म नहीं होगा,,,,,,,,,,
वैसे भौतिकता से नफ़रत नहीं पाले रखी है,, उसे भी दोस्त बना रखी है ।
।।प्रकृति।।
- छगन चहेता
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मेरे दिल में भी उसके लिए प्रेम था मगर फिर भी ना जाने क्यों? उससे मुख मोड़ रहा था और मुझे सिर्फ मादकता खिंच रही थी वो मादकता जो मेरी सच्ची महबूबा की सजावट को नष्ट कर रही थी।
मैं मादकता, कामुकता के तले चुप था , महबूबा मेरे लिए अभी भी अपना प्यार लिए बैठी थी फिर भी मेरी मादकता की आग उसकी सजावट जलाए जा रही थी। वो मोहब्बत की आस में अपनी मोहब्बत लुटाए जा रही थी, मैं लालच से लबरेज़ हो उसे लुटता ही जा रहा था । भौतिकता के सुख भोगने के ख़ातिर ।
अब पूरी तरह से भौतिकता पर आ गया था , उसे पाने की आस में अपनी महबूबा पर घात करना तक शुरू कर दिया । बोल दिया कि भौतिकता के होते तेरी जरूरत क्या?
लेकिन कुछ वक़्त बाद उसे भोगते- भोगते मुझे अहसास होने लगा कि सिर्फ बाहरी खुशी मिल रही है अन्दर ही अन्दर उदासी छा रही है । भौतिकता मेरा दुरूपयोग करने लगी है, बेवफाई करने लगी है । हमारे संबंध हथकड़ी बनने लगे हैं । उसका विस्तृत संसार जेल सा लग रहा है । मानो सांसें उखड़ने लगी हैं । प्रेम की प्यास के मारे हलक़ सूखा जा रहा था और भौतिकता मेरी अपने से प्यार करने की बेवकूफी पर हँस रही थी,,,अपने सीधे - उल्टे तर्क दिये जा रही थी । जो भी हो रहा था मुझे ही अपराधी ठहराया जा रहा था ।
फिर जब हताश, निराश सांसें थमने लगी तब अपनी पहले की महबूबा की ओर आस लगाई,,, लगा कि वो मेरी हालत पर ठहाका लगाएगी, लेकिन नहीं वो आज भी अपनी मोहब्बत लिए खड़ी थी।
हाँ, वो मेरी मादकता के तले उजड़ चुकी थी , भौतिकता के उत्पात के कारण । फिर भी मेरा रूख़ अपनी ओर देख वो खिल उठी थी , स्वागत को थाल लिए खड़ी थी, झुलसी सजावट संवारने लगी थी , उसकी जवानी लौटने लगी थी ।
वो मेरी बेवफाई के ताने देने के बजाय मेरे लौट आने की खुशी में झूमने लगी थी ।
वो मेरी महबूबा " प्रकृति " ही है जो बस मेरा प्रेम चाहती है और कुछ नही । बदले में खुशी, शांति और सौन्दर्य का दीदार कराना चाहती है ,,,, अब बस प्रकृति के साथ खुश हूँ । इससे मुझे असीम प्यार मिलता है जो कभी खत्म नहीं होगा,,,,,,,,,,
वैसे भौतिकता से नफ़रत नहीं पाले रखी है,, उसे भी दोस्त बना रखी है ।
।।प्रकृति।।
- छगन चहेता
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