वो अचानक झिझक कर उठा । लगा कोई स्वप्न देखा होगा, किशोर अवस्था में है, वैसा ही कुछ देखा होगा । ठीक से याद तो नही लेकिन चंचल मन की ख्वाहिश का कोई महल धड़ाम से गिरा हो ऐसा लगा ।
सोचा मुँह धो लें, बाल सँवार लें मगर अचानक जागने की वजह से बैचैनी हो रही थी । फ्रिज से पानी की बाॅटल निकाली और घर के सामने बनी मकान की नींव पर बैठ गया । वह नींव भी महल खड़ा करना चाहती थी लेकिन उसे अभी पकने के लिए छोड़ा गया था । महल का सुख लम्बे समय तक भोगने के लिए । उसे क़ाबिल होना होगा भार सहने के लिए ।
सूरज ढलने लगा था। हवा अपनी गति मंद कर , बदन को हौले से सहलाने लगी थी ।
वह सपने की बात भूल कहीं और ही जाने लगा था । किशोर मन युवा होने लगा था । महल बनाना चाहता तो था मगर पकाने के लिए रखी नींव देख उसकी तंरगे संयमित होने लगी थी ।
उसे लगने लगा कि कहने से पहले सुन लेना चाहिए ।
सपने हल्के नहीं होते , रिश्ते बेभार नहीं होते । उसे देर तक टिके रहने के लिए नींव का मज़बूत होना जरूरी है ।
"नींव के बहने से ज्यादा महल के ढ़हने से गम होता है ।"
आसमान में बादलों को देख आस लगाई । बरस जाये तो सुखे रेगिस्तान की प्यास भी बुझे और नींव भी पके ।
अब तक वो बाॅटल का सारा पानी पी चुका था जिसने उठ रही किशोर आकांक्षाओं को शीतलता प्रदान की । पानी ने आग को बुझाया नहीं बल्कि वो काम किया जो उफनते दूध पर पानी के छींटे करते हैं । दूध को स्वादिष्ट खीर बनने तक उफान को रोक , पकना ही होगा,,,, अब तक वो घर के अंदर जा चूका था । बाहर निकला जो किशोर, अब युवा समझ लिए जा रहा था ।
- छगन चहेता
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सोचा मुँह धो लें, बाल सँवार लें मगर अचानक जागने की वजह से बैचैनी हो रही थी । फ्रिज से पानी की बाॅटल निकाली और घर के सामने बनी मकान की नींव पर बैठ गया । वह नींव भी महल खड़ा करना चाहती थी लेकिन उसे अभी पकने के लिए छोड़ा गया था । महल का सुख लम्बे समय तक भोगने के लिए । उसे क़ाबिल होना होगा भार सहने के लिए ।
सूरज ढलने लगा था। हवा अपनी गति मंद कर , बदन को हौले से सहलाने लगी थी ।
वह सपने की बात भूल कहीं और ही जाने लगा था । किशोर मन युवा होने लगा था । महल बनाना चाहता तो था मगर पकाने के लिए रखी नींव देख उसकी तंरगे संयमित होने लगी थी ।
उसे लगने लगा कि कहने से पहले सुन लेना चाहिए ।
सपने हल्के नहीं होते , रिश्ते बेभार नहीं होते । उसे देर तक टिके रहने के लिए नींव का मज़बूत होना जरूरी है ।
"नींव के बहने से ज्यादा महल के ढ़हने से गम होता है ।"
आसमान में बादलों को देख आस लगाई । बरस जाये तो सुखे रेगिस्तान की प्यास भी बुझे और नींव भी पके ।
अब तक वो बाॅटल का सारा पानी पी चुका था जिसने उठ रही किशोर आकांक्षाओं को शीतलता प्रदान की । पानी ने आग को बुझाया नहीं बल्कि वो काम किया जो उफनते दूध पर पानी के छींटे करते हैं । दूध को स्वादिष्ट खीर बनने तक उफान को रोक , पकना ही होगा,,,, अब तक वो घर के अंदर जा चूका था । बाहर निकला जो किशोर, अब युवा समझ लिए जा रहा था ।
- छगन चहेता
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