वो एक कोने में चुपचाप खड़ी थी ।
बोला गुमसुम सी क्यों हो ?
बताओं तुम कौन हो?
मोहब्बत हूँ , जनाब ।
उसे गौर से देखा ,
विश्वास न हुआ ।
बोला क्यों फिरकी लेती हो ?
तुम मोहब्बत हो ही नहीं सकती।
तुम सादी-सिम्पल ,
ना जिस्मानी नूर ।
फिर कैसे मोहब्बत हो सकती हो ।
हो सकता है तुम्हें मैं बच्चा दिखता हूँ
मगर कच्चा न समझो ।
फिल्में भी देखी है ,
कहानियाँ भी सुन रखी हैं ।
मोहब्बत होती है
गुलाबी गाल , गोरी कलाईया
कजरारे नैन, सुनहरे बाल
बताओं तुममे इसमें से
एक भी है बात ।
बोली तुम भी नासमझ निकले ।
एक दिन ये रंग उड़ जाएगा ,
तब क्या मोहब्बत मर जाएगी ।
रंग, चाल - ढाल ना जाने
तुम कहाँ से लायें ?
आँखों में इज्ज़त ,
दिल में प्रेम हो जिसके
उसी की हो जाती हूँ ।
सच कहती हूँ ,
मोहब्बत हूँ ।
ब्यूटी पार्लर में नहीं ,
दिल में सजती हूँ ।।
- छगन चहेता
चित्र-
[https://www.deviantart.com/nhienan/art/lonely-526665523]
No comments:
Post a Comment