विज्ञान कहती है कि आँधी वायु दाब की असमानता के कारण आती है तो मैं ठहरा विज्ञान का विद्यार्थी, तेरे अहसास को भी प्रकृति से जोड़ने लगा , उस के जैसा मानने लगा ।
जैसे तीन रोज पहले आँधी शुरू हुई थी थार नगरी में । उसी तरह किसी रोज तुम भी आई थी मेरे अहसास, दिल , दिमाग, विचार में ।
जिस तरह आँधी वातावरण को रेतमय कर देती है वैसे ही मेरे विचार- अहसास तुममय हो गये थे ।
सोचा यह अजीब सा अहसास भी प्रकृति जैसा होगा । आँधी के बाद बादल आयेंगे, बरसात आयेंगी..... सूखी धरा पर बूँदों के पड़ते ही सौंधी खुशबु फुट पड़ेगी जो मेरे जीवन को मद्यमय कर देगी फिर जो हरियाली ऊपजेगी वो सतत्, अटल होगी जिसका अहसास कभी ज़ेहन से उतर ना पाएगा ।
लेकिन मेरा एक ही पहलू पर ध्यान देना गलत निकला .... भूल गया कि आँधी कुछ ज्यादा हो वो तूफ़ान कहलाता है । बरसात तो होगी मगर वो खुशबु से पहले ही धरती का उपजाऊपन बहा ले जाती है और पीछे रहता है बंजर , निर्जन मैदान जिससे ना महक आती है ना ही हरियाली । फिर से उसे उपजाऊ होने में कई साल, जीवन लग जाते हैं ।
दोष तुम्हारा नहीं, तुम भी हवा की तरह निर्दोष हो । हवा कहाँ आँधी बनना चाहती है, दाब उसे मजबूर करता है, गर्मी उसे उकसाती है वैसे तुम्हें, तुम्हारे अहसास को भी किसी ने दबाया था ,, तुम भी मजबूर थे।
हर आँधी तूफ़ान ना बनती , हर बारिश में बाढ़ ना आती ,,, लौट आओ,,,फिर लौट आओ,,,, नये तेज के साथ
किसी रोज फिर लौट आओ आँधी की तरह बरसात लेकर । भींगो दो इस सूखे रेगिस्तान को ...
उससे पहले कि कोई यूरिया डाल, ,, ज़मीन को हरा कर दे,,,, निर्जन देख अपना हक जमा दे,,,,तुम लौट आओ ।
लौट आओ, प्राकृतिक खाद डाल हरा कर दो ,,,,
आँधी, वर्षा, भीनी खुशबू, हरियाली भर दो,,,,तुम लौट आओ,,,
राजस्थान की आँधी बनके ,,, समुद्र की लहर बनके,,,, नदी की तरंग बनके ,,, किसी जाड़े के रोज की ठण्डी हवा का झोंका बनके,,, तुम लौट आओ ,,,,
किसी रोज तुम लौट आओ खुद के उजाड़े चमन में,,,,,,
- छगन चहेता