सभ्य होने के दिखावे सेबेहतर रहेगा कि सभ्य होने का प्रयास करें ।
वेश्या, धंधेवाली... ऐसे नाम सुनकर अक्सर हम गंभीर होने के बजाय मुस्कुराते हैं ना ।
क्यों ? यह बताना आवश्यक नहीं है ।
केवल पुरूषों की बात नहीं हैं महिलाएं भी । क्योंकि वो सभ्य समाज के लिए आनंद का ही तो साधन है ना ।
वेश्यावृत्ति में ये क्यों आती हैं ? कौन लाता है? ये प्राथमिक सवाल नहीं हैं ।
प्राथमिक सवाल यह है कि ये वेश्यावृत्ति है, क्यों?
इसकी वजह क्या है कि ये चाहकर भी इससे बाहर नहीं निकलना चाहती ?
ये विषय इतना हास्यास्पद क्यों है?
हमारे लिए जो चीज़ अनमोल है, जिसे गैर के छुने तक से , हम सबकुछ खोने के समान समझते हैं "इज्ज़त"
उसे वो चंद नोटों के बदले, चाहे उसे देने को राजी कैसे हो जाती है बल्कि इसके लिए तत्पर रहती है ।
ऐसा क्यों ? नहीं पता ना ,, क्योंकि कभी ऐसी बातों पर हँसने-मुस्कराने के अलावा गंभीरता से सोचा भी नहीं ।
वेश्यावृत्ति आज से नहीं बल्कि प्राचीन युगों से ही इसके होने की पुष्टि होती हैं ।
सुनने को मिलता है कि पुरुष अपने तनाव को दूर करने के लिए इन तक जाते हैं लेकिन मुझे पुरुषत्व की चरम तक पहुँचने के बाद तक ऐसा नहीं लगता कि ये तनाव निवारक हो सकता है । यह सिर्फ अविकसित मानसिकता का अनैतिक विचार है ।
इनके वेश्यावृत्ति में लिप्त होने का कारण चाहे कुछ भी हो । घरवालों द्वारा बेचा गया, अपहरण किया गया या ये खुद अपनी किसी मजबूरी / धोखे से आई हो लेकिन इसके बाद ये स्वेच्छा से इसी कार्य में लिप्त रहतीं हैं । कोशिश की जाए तो भी छोङना नहीं चाहतीं । क्यों ?
मैं ऐसी ही किसी महिला का इंटरव्यू देख रहा था उसमें वो किसी प्रश्न के जवाब में कहती है "हमें नंगा होने से नहीं, इज्ज़त से डर लगता है ।"
उनकी ऐसी मानसिकता की वजह क्या है ?
हम सब , हमारी सोच ।
हम यही सोचते हैं न कि
इनको धन (रू) चाहिए । जिस्म के बदले धन और कुछ नहीं ।
प्यार, मोहब्बत और इज्ज़त जैसी भावनाओं से, ये कोसों दूर है । इनका यही काम है और यही धंधा है ।
हमारी इस सोच से , ये वाकिफ़ हैं इसी कारण वेश्यावृत्ति को छोङना नहीं चाहतीं ।
उन्हें मालूम है कि जब मैं इससे बाहर निकलुंगी तो कोई अपनाने को तैयार नहीं होगा । सार्वजनिक तौर पर सब मुझसे दूर, घृणित होने का दिखावा करेंगे ।
मैं किसी से मोहब्बत कर भी लूं तो सामने वाले की मोहब्बत मेरे जिस्म तक ही रहेगी ।
सरेआम कौन मेरी मोहब्बत को मानेगा ।
इन सबसे बेहतर मानती है कि इन तथाकथित सभ्य लोगों की समाज में खुद को लाकर जलील करने के बजाय खुद से लोगों के बीच ही रहूँ तो अच्छा है । लोगों की नज़र चुभेगी तो नहीं । पता तो रहेगा कि ये आया ही जिस्म से खेलने, कोई दिल से तो ना खेलेगा ।
"कोई महिला चाहकर भी वेश्यावृत्ति से नहीं निकलना चाहती है तो उसकी दोषी हैं, तुम्हारी वो अश्लील हँसी , वो तिरछी नजरें । जो वाकई में तो उसकी जिस्म पर हैं लेकिन सरेआम घृणा से भरी है ।"
आशा करता हूँ कि कोई अगर ऐसे मंज़र से निकल आयी हैं तो उसे सम्मान , सहयोग देंगे । वो सब - कुछ भुलाना चाहती है तो अपनी हरकतों, व्यवहार से उन्हें याद दिलाने की कोशिश नहीं करेंगे । आपकी नजरें उसके नारिय जिस्म के बजाय इंसानी स्वरूप पर पड़ेगी ।
क्यों ? यह बताना आवश्यक नहीं है ।
केवल पुरूषों की बात नहीं हैं महिलाएं भी । क्योंकि वो सभ्य समाज के लिए आनंद का ही तो साधन है ना ।
वेश्यावृत्ति में ये क्यों आती हैं ? कौन लाता है? ये प्राथमिक सवाल नहीं हैं ।
प्राथमिक सवाल यह है कि ये वेश्यावृत्ति है, क्यों?
इसकी वजह क्या है कि ये चाहकर भी इससे बाहर नहीं निकलना चाहती ?
ये विषय इतना हास्यास्पद क्यों है?
हमारे लिए जो चीज़ अनमोल है, जिसे गैर के छुने तक से , हम सबकुछ खोने के समान समझते हैं "इज्ज़त"
उसे वो चंद नोटों के बदले, चाहे उसे देने को राजी कैसे हो जाती है बल्कि इसके लिए तत्पर रहती है ।
ऐसा क्यों ? नहीं पता ना ,, क्योंकि कभी ऐसी बातों पर हँसने-मुस्कराने के अलावा गंभीरता से सोचा भी नहीं ।
वेश्यावृत्ति आज से नहीं बल्कि प्राचीन युगों से ही इसके होने की पुष्टि होती हैं ।
सुनने को मिलता है कि पुरुष अपने तनाव को दूर करने के लिए इन तक जाते हैं लेकिन मुझे पुरुषत्व की चरम तक पहुँचने के बाद तक ऐसा नहीं लगता कि ये तनाव निवारक हो सकता है । यह सिर्फ अविकसित मानसिकता का अनैतिक विचार है ।
इनके वेश्यावृत्ति में लिप्त होने का कारण चाहे कुछ भी हो । घरवालों द्वारा बेचा गया, अपहरण किया गया या ये खुद अपनी किसी मजबूरी / धोखे से आई हो लेकिन इसके बाद ये स्वेच्छा से इसी कार्य में लिप्त रहतीं हैं । कोशिश की जाए तो भी छोङना नहीं चाहतीं । क्यों ?
मैं ऐसी ही किसी महिला का इंटरव्यू देख रहा था उसमें वो किसी प्रश्न के जवाब में कहती है "हमें नंगा होने से नहीं, इज्ज़त से डर लगता है ।"
उनकी ऐसी मानसिकता की वजह क्या है ?
हम सब , हमारी सोच ।
हम यही सोचते हैं न कि
इनको धन (रू) चाहिए । जिस्म के बदले धन और कुछ नहीं ।
प्यार, मोहब्बत और इज्ज़त जैसी भावनाओं से, ये कोसों दूर है । इनका यही काम है और यही धंधा है ।
हमारी इस सोच से , ये वाकिफ़ हैं इसी कारण वेश्यावृत्ति को छोङना नहीं चाहतीं ।
उन्हें मालूम है कि जब मैं इससे बाहर निकलुंगी तो कोई अपनाने को तैयार नहीं होगा । सार्वजनिक तौर पर सब मुझसे दूर, घृणित होने का दिखावा करेंगे ।
मैं किसी से मोहब्बत कर भी लूं तो सामने वाले की मोहब्बत मेरे जिस्म तक ही रहेगी ।
सरेआम कौन मेरी मोहब्बत को मानेगा ।
इन सबसे बेहतर मानती है कि इन तथाकथित सभ्य लोगों की समाज में खुद को लाकर जलील करने के बजाय खुद से लोगों के बीच ही रहूँ तो अच्छा है । लोगों की नज़र चुभेगी तो नहीं । पता तो रहेगा कि ये आया ही जिस्म से खेलने, कोई दिल से तो ना खेलेगा ।
"कोई महिला चाहकर भी वेश्यावृत्ति से नहीं निकलना चाहती है तो उसकी दोषी हैं, तुम्हारी वो अश्लील हँसी , वो तिरछी नजरें । जो वाकई में तो उसकी जिस्म पर हैं लेकिन सरेआम घृणा से भरी है ।"
आशा करता हूँ कि कोई अगर ऐसे मंज़र से निकल आयी हैं तो उसे सम्मान , सहयोग देंगे । वो सब - कुछ भुलाना चाहती है तो अपनी हरकतों, व्यवहार से उन्हें याद दिलाने की कोशिश नहीं करेंगे । आपकी नजरें उसके नारिय जिस्म के बजाय इंसानी स्वरूप पर पड़ेगी ।
चलता हूँ ,,, आप पर आशाओं का बोझ डालकर ।।
चलता हूँ,,,खुद की आशाओं का बोझ हल्का करने ।।
।। नारीत्व ।।
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