Sunday, 18 March 2018

कहानी : typing... (टाईपिंग...)

कहानी प्यार, मोहब्बत की नहीं हैं मगर शायद कुछ वैसी ही हैं ।
 वो मेरे स्कूल में साथ पढ़ती थी मगर अलग - अलग वर्ग थे । पता नहीं दोस्ती कहा हुईं शायद स्कूली बस में,  दोनों साथ जो आते थे  ।
दोस्ती बस मुस्कुराहट से शुरू होती और मुस्कुराहट पर खत्म । बीच में चंद पलों के फासले के सिवाय कुछ ना । हाँ,  कभी -  कभार चाॅकलेट , बिस्किट ले - दे दिया करते थे ।
  फिर लगभग दो सालों के बाद इत्तेफाक से  वो भी जिस कोचिंग संस्थान में ; मैं जाता था उसी में एडमिशन लेती है मतलब फिर से सहपाठी हो जाते हैं । इतने समय बाद मिलने पर भी सिर्फ वही पहले वाली मुस्कुराहट,  बस मुस्कुराहट ।
 " अरे!  तुम यहाँ । हाँ,  तुम भी?  जी , मैं भी ।
  कक्षा में सबसे पीछे बैठने वाली लड़की । अब आगे वाली बैंच पर बैठती हैं । मेरे वाली बैंच पर , स्कूल का जिक्र करके कारण पूछा तो बताया कि पीछे से दिखता नहीं हैं बोर्ड पर । पर उस दिन जब मैं पहली कालांश में नहीं गया था । लेट गया था  तब वो सबसे पीछे बैठी थी । आगे वाली बैंच भी खाली थी...... ।
"वैसे मुझे हमेशा से ही आगे बैठने का शौक है । बस यूँ ही । बाकी कक्षा में बैठने के स्थान से शिक्षा ग्रहण करने की क्षमता का , हमें ज्ञान ना हैं । "
ना जाने क्यों?  जब हम क्लास से छुटते तो वो पीछे से आवाज लगाती और कहती - "रुक , कुछ काम था।"
" हाँ,  बोल।"
फिर लम्बी सी चुप्पी ।
मानो कुछ कहना चाह रही हो पर कह नही पा रही है।
फिर हड़बड़ी से ; "हाँ,  वो कल आते वक्त केमिस्ट्री की बुक लेते आना ।"
 ऐसा कई दफ़ा हुआ और हर बार नये बहाने से बात टाल देती ।
वहाँ हम एक साल साथ पढ़ें ।
 यूँ ही,  एक साल और साथ में बिता,  मुस्कुराहट और मुस्कुराहट से, ,, कुछ दबी - दबी ख्वाहिशों में ...।

 फिर दो साल बाद सुबह - सुबह किसी नये नम्बरों से फोन आता है ।
सामने से " हैलो ! " युवकती की आवाज थी।
हैलो!  हाँ,  जी ..... हैलो , हैलो!
सामने से कोई प्रत्युत्तर नहीं,  सोचा तकनीकी खराबी होगी ।
मैंने काॅल बैक किया लेकिन कोई उत्तर नहीं, ,,। मेरे जेहन में आया कि हो न हो ये वही है ।
शायद वो मुस्करा रही होगी और मुस्कुराहट आवाज नहीं करती।
 जवाब में,  मैंने भी मुस्करा कर फोन रख दिया ।
तभी वाट्सएप पर उसी नम्बरों से मैसेज आता हैं, ,, स्माईली(☺) । मैंने भी जवाब में स्माईली(☺) भेजी ।
 दोपहर में फेसबुक देखी तो उनकी फ्रेंड रिक्वेस्ट आयी हुईं थी, ,,, मैंने स्वीकार कर ली ।
  कुछेक महीनों बाद उनकी फेजबुक आईडी पर इन्गेजमेंट
अपडेट थी । मैंने टिप्पणी में " बधाई हो " लिखा ।
उनकी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया के रूप में 😃(हा हा ) था ।
 उस दिन न जाने क्यों?  मुझे अजीब सा महसूस होने लगा । हमारे स्कूल,  ट्यूशन वाले दिन याद आने लगे, ,, उनका यकायक आगे बैठना , उनका मुझे ट्यूशन से छूटते वक्त रोकना ,,, उनकी मुस्कुराहट, ,, फोन पर उनका अन्दाजा लगाना,,,, फिर मुस्कराना, ,,मानो सब कुछ ......जो उससे व मुझसे जुड़ा था।

मैं शायद उसे समझने लगा था मगर अब ......?

कल रात,  मैं जब वाट्सएप देख रहा था तो उनके नाम के नीचे typing... लिखा आ रहा था लेकिन बहुत देर तक कोई मैसेज ना आया ।
Suman is typing...

  शायद वो कुछ कहना चाह रही हैं मगर कह नही पा रही है । नहीं,  नहीं अब वो कहना जरूरी नहीं मानती होगी । फिर भी सोच रही होगी, ,, कहूँ या नहीं, ,,, कहूँ तो क्या?  इसी उहापोह में , वो मोबाइल का कीबोर्ड निकाल कुछ लिखती होगी या कुछ लिखना चाहती होगी या लिख कर कुछ मिटाती होगी ।
पर मुझ तक कुछ ना पहुँचाना चाह रही होगी या पहुँचा नहीं पा रही होगी ।
 ना जाने क्यों?  अब मैं भी कीबोर्ड निकाल कर उसे कुछ लिखना चाहता हूँ लेकिन कुछ लिख नहीं पा रहा हूँ या कहूँ लिखना जरूरी नहीं मान रहा हूँ ।।
वो भी मेरे नाम के नीचे typing... लिखा देख मैसेज का इन्तजार करती होगी , शायद ..।
 chhagan is typing...
     
                                       * छगन चहेता
 
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