Saturday, 10 March 2018

दहलीज़

मैंने इस ब्लाग का नाम " दहलीज़ " रखा है ......

दहलीज़ अर्थात सीमा, ,,।  हमारे मारवाड़ में घर के आंगन के छोर पर 4-5 इंच ऊँची दीवार होती है उसे घर की "दहलीज़" कहते हैं ।  मारवाड़ी में  "पेटली" कहते हैं ।

आजकल हमारे शहरों में "दहलीज़" कहाँ होती है बस "चौखट" होती है ।

दहलीज़ का मतलब हद भी होता है।

 लेकिन यहाँ मेरा अभिप्राय सीमा से हैं । मेरी मानसिक प्रवृत्ति के अनुसार में पक्ष,  विपक्ष ;  भूत, भविष्य की ; अच्छे , बुरे की दहलीज़ पर हूँ यानी पूरी तरह से कोई सच,सच नहीं होता ना ही कोई झूठ , पूरी तरह से झूठ होता हैं ।

किसी के पक्ष में हूँ मतलब यह नहीं कि विपक्ष को नकार ले। कोई बुरा है तो उसका भी कारण होगा उसे भी सुनना जरुरी हैं। भविष्य की दौड़ में भूत को  भूल नहीं सकते ।

थोड़ा अपनों का , थोड़ा गैरों का भी..।

मेरी उम्र के पड़ावनुसार,  मैं मोहब्बत की दहलीज़ पर हूँ।

 समुंद्र में उतरना भी चाहता हूँ मगर उतर नहीं सकता तो उसकी दहलीज़  पर बैठे-बैठे इसकी दरिया में डूबते , तैरते आशिकों को देख रहा हूँ।

समाज की दहलीज़ पर बैठे-बैठे अपने,पराए; झूठे, सच्चे लोगों को महसूस कर रहा हूँ।

 इस दौर में मुझे यहीअच्छा लगता है ।

हाँ,  अगर आपने मुझे सही तरह से नहीं समझा है तो मैं आपको दहलीज़ पर न दिखकर किसी एक तरफ ही नजर आऊँगा ।

वैसे तो मैं इस दहलीज से उतना नहीं चाहता क्योंकि यह दहलीज़,  मेरे गांव वाले घर के आंगन की दहलीज जितनी नहीं है।  जिसे पार किया जा सके या  वापस चढ़ा जा सके।
 यह एक तरह से मेरे गांव के घर की दहलीज़ जैसी भी है जिसमें एक बार जाने पर वहीं के होकर रह  जाते है।

 दुनिया में देख रहा हूँ कि बड़े कद के लोग, इस दहलीज़ को आसानी से पार कर रहे हैं।  इधर से उधर जा रहें हैं । मुझे डर हैं, कहीं यह इधर से उधर जाने के चक्कर में मुझे ठोकर देकर गिरा न दे । मेरा कद  दुनिया में इतना ऊँचा नहीं कि इस दहलीज़ को पार कर सकूँ या वापस चढ़ जाऊँ ।

यह इत्तेफाक ही होगा कि वह मुझे किस तरफ गिराते  है ।  जिस भी तरफ गिरूंगा,  उस दिन से दुनिया के लिए तो एक जाना - पहचाना किरदारा  बन जाऊंगा मगर खुद के , इंसानियत (इंसान के रूप में)  और साहित्य के लिए(साहित्यकार के रूप में ) कहीं खो जाऊंगा । कहीं अनन्त में चला जाऊंगा । तब शायद तुम मुझे बहुत प्यार से बुलाओगे।  तुम दहलीज़  पर चढ़कर ,  अपना हाथ देकर ;  मुझे वापस खींचने की कोशिश करोगे  तब शायद,  मैं भी ना आना चाहूँ ।

             * छगन चहेता
[ मजेे की बात यह हैं कि मेरे प्रिय गाना भी  "दहलीज़ पर मेरे दिल की ,,,,,,, " ( जीना जी) है ]

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