Thursday, 1 March 2018

लोचा आरक्षण का ...

सर्वप्रथम, मैं हमारे देश की वैचारिक प्रवृत्ति को देखते हुए स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मैं अपने देश के संविधान सहित तमाम संविधान निर्माताओं का पूरे दिल से सम्मान व आदर करता हूँ ।
  शुरुआत एक उदाहरण से करते है । दो विद्यार्थी हैं ।एक आरक्षित वर्ग से है तथा दूसरा सामान्य वर्ग से । आरक्षित वर्ग वाला लड़का शहर की अच्छी काॅलोनी में रहता है अर्थात छुआछूत,  दलित मानकर प्रताड़ित करना जैसा कुछ नहीं मतलब किसी भी प्रकार से  पिछड़ा हुआ नहीं माना जा सकता।
   दोनों में से सामान्य वर्ग वाले लड़के के बाहरवीं कक्षा  का परिणाम आरक्षित वर्ग वाले लड़के से 20 प्रतिशत अधिक रहता है। दोनों शहर के एकमात्र Govt. कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए apply करते हैं। आरक्षण की वजह से एक का सेलेक्शन हो जाता है लेकिन दूसरे का नहीं होता है तो बताइए उस बच्चे पर क्या बीतेगी  आप कुछ भी कहो, सविधान  समानता का अधिकार देता है मगर सच में है नहीं । हां देश में ऐसा वैसा कुछ भी होता हो मगर जो उस बच्चे के भविष्य के साथ हुआ उसका जवाब कौन देगा?
 मैं आरक्षण को सपोर्ट वालों से पूछना भी नहीं चाहता । क्यों पूछना?  वह संविधान के प्रवक्ता नहीं है?  मेरा सवाल उस संविधान से हैं जिसने वादा किया था कि वह हर नागरिक को  राजतंत्र से , अच्छा एक तंत्र देगा । मेरा सवाल उस संविधान से हैं । संविधान जब तक , हर एक अधिकार को बिना किसी किंतु परंतु के नहीं देगा तब तक वह आदर्श नहीं कहलाएगा।
 हमारे संविधान दोहरी नीति हटनी चाहिए ।
जवाब ।जवाब ।जवाब।
किसी के साथ अन्याय करके किसी को न्याय देना कहाँ तक सही हैं ।
अब उसेे कॉलेज में प्रवेश नहीं मिला तो सीधी सी बात है उसके सामने रोजगार की समस्या पैदा होगी । अब उसके पास मानसिक शक्ति है तो वह शारीरिक शक्ति का प्रयोग करके रोजगार करने में शायद ही रुचि  ले ।जाहिर सी बात है। उसके मन में नफरत फैलेगी सिस्टम के प्रति , तो वह अपराध की और बढेगा जिसकी पुष्टि अपराध जगत में बढ़ते पढ़े लिखे "लोगों की संख्या" की रिपोर्ट हैं ।
मुझे बचपन से सुनने को मिला है कि IAS लेवल के A ग्रेड के अधिकारी बहुत इंटेलिजेंट होते हैं मगर यह बात समझ नहीं आती फिर क्यों अपराधी पकड़ में नहीं आते ?
अब समझ में आया कि आरक्षण की वजह से जो भाई साहब 55% के साथ पुलिस अधिकारी बन गया और सामान्य वर्ग का  80% वाला बंदा निक्कमा बैठा।  जब वह अपराध जगत में जाएगा तो...?
"पेट की आग इंसानियत , धर्म कुछ नहीं देखती"
 तो  जब 80 प्रतिशत वाला बंदा अपराध करेगा तो वह 55% वाला कुछ ना कर सकेगा। उनके मानसिक क्षमता में इतना ज्यादा अन्तर है ।
 यही कारण अपराध बढ़ रहे हैं अपराधी पकड़ से बाहर हैं।
 यह सच है सच है,,,।
आप अन्यथा में ना ले। मैं यह नहीं कह रहा कि दलित मानसिक रुप से कमजोर होते हैं तथा सामान्य वर्ग वाले मजबूत होते हैं। सामान्य वर्ग के जो लोग इस पद के लायक नहीं है। वह तो वैसे ही बाहर हो जाते हैं मगर आरक्षित वर्ग वाले संख्या में कम होने के कारण,  असक्षम लोग भी आ जाते हैं।

"मानसिक शक्ति जाति धर्म देखकर नहीं आती है"

मुझे नहीं लगता कि मौजूदा आरक्षण व्यवस्था से दलितों का उत्थान  होगा बल्कि इससे देश के हुनर , प्रतिभा का पतन होगा या पलायन होगा ।

{इसी विषय पर 1970 में टिप्पणी करते हुए पूर्व वाणिज्य सचिव और अमेरिका में राजदूत आबिद हुसैन ने कहा था प्रतिभा के नष्ट होने से बेहतर है कि वह पलायन कर जाए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आरक्षण व्यवस्था का उद्देश्य जाति पर जोर देना नहीं, जाति को खत्म करना था।}

"सक्षम लोगों की बेरोजगारी मुझे बहुत टीस देती हैं "

मेरी मानो तो आरक्षण को फिर से , एक सिरे से शुरु किया जाए। जाति आधारित नहीं,  आर्थिक आरक्षण दिया जाए। गरीबों को पढ़ने के लिए आर्थिक सहायता दी जाए ना कि उन्हें शैक्षणिक योग्यता में रियायत दी जाए ।
दलितों को मानसिक रुप से मजबूत किया जाए ताकि  उनको तथाकथित उच्च जाति वाले लोग दबा न सके । उन्हें शिक्षित करके,  उनको अधिकारों से वाकिफ कराया जाए।
हमारी संविधान में दोहरी नीतियाँ हैं ,,,, एक ओर हम जातीय व्यवस्था को खत्म करना चाहते हैं वहीं दूसरी ओर  आरक्षण को जातिगत रुप से दे रखा गया है।
 जिसके कारण सरकार आपको बाकायदा लिख कर देती है कि आप उस जाति , उस उपजाति से है ।
आप पिछड़े या दलित हो।  रंगीन पेपर लिख कर देती है भाई साहब।।
ऐसे व्यवस्था के साथ हम कभी जातिय भेदभाव को खत्म नहीं कर पायेगें । फिर भी ना जाने कैसे ? हमारे नीति - निर्माता इस विरोधाभास को साथ लेकर नामुमकिन स्वप्न देख रहे हैं ।

पता नहीं कब?  संविधान का दिया समानता का अधिकार लागू होगा,  सच्चे मायनों में ।।

देश में अशांति का कहीं न कहीं कारण आरक्षण भी हैं । जब लोगों की मेहनत को आरक्षण के नाम पर अनदेखी की जाती हैं तो उनका गुस्सा होना लाजमी हैं ।
 हम गुजरात को पटेल आरक्षण माँग में दहकता दहकता चुके हैं और गुर्जर आंदोलन से भी वाकिफ हैं ।
ऐसे देश में समय समय पर ना जाने कितने ही आन्दोलन होते रहे हैं, ,,।
    जो लोग मानते हैं कि आरक्षण दलितों का हक है तथा आरक्षण से प्रतिभा का पतन नहीं होता, , वैसे उनके पास कोई तर्क नहीं हैं,  कुतर्को के अलावा ।
अगर तर्क है तो बताओ ???
समृद्ध होकर भी पटेलों ने आरक्षण की माँग क्यों की ?
 आप मानते हो कि आरक्षण से असक्षम लोग तंत्र में नहीं आते । ठीक है मान लेता हूँ । लेकिन पहले आपको मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिए ।
यहाँ मैं यह सिद्ध करना चाहता हूँ कि वास्तव में आरक्षण से असक्षम लोग तंत्र में आ जाते हैं ।
प्रश्न : सैन्य सेवाओं में आरक्षण क्यों नहीं हैं ?
आपको याद हो तो एक बार माँग होने पर आरक्षण के आधार पर भर्ती भी हुईं थी बाकी बाद का सबको पता ही है, ,,,,,
खैर अब उत्तर पर आते हैं । उत्तर - आरक्षण कमेटी को पता था कि आरक्षण की वजह से असक्षम लोग सैन्य तंत्र में आ जाएंगे और वह इस नव आजाद देश की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहते थे इसीलिए यह एक क्षेत्र मजबूत भी हैं ।

मैं जब आरक्षण को हटाने की बात करता हूँ तो कई लोग मुझे तर्क देते हैं या कहो कि कुतर्क देते हैं ।
 मगर इसका उत्तर हैं, ,,,
 मैं जब शिक्षा नगरी कोटा गया था तब मुझे ऐसे भी लोग मिले जो IIT की तैयारी करने आये तो थे मगर बिल्कुल लापरवाह थे , पढ़ाई के प्रति । जब मैंने ऐसे दोस्तों से बात करके कारण जानना चाहा तो चौंकाने वाला था ।
  उन्होंने सीधा मगर बड़ी अदबता से उत्तर दिया -- भाई हम आरक्षण के दम पर सलेक्ट हो जायेगें ।
मैंने कहा फिर भी पढ़ लेने में क्या हर्ज हैं । देश को पढ़ें - लिखे इन्जिनियर मिलेंगे ।
वो कहते हैं भाई सच बताये,  हमें IIT जाने का कोई शौक नहीं हैं बस घर वाले चाहते है । आरक्षण हैं तो उन्हें ये भी डर नहीं कि सीट नहीं मिलेगी ।
 अब क्या करेगा चाँद?  क्या करेगी चाँदनी?
यह किसी एक का किस्सा नहीं हैं । यह हकीकत है देश की।
 इसका उत्तर चाहिए , मुझे ,,,
मगर आरक्षण प्रेमियों से उतर नहीं ।
 मुझे मेरे देश के सविधान से उत्तर चाहिए जिन्होंने वादा किया था कि राजतंत्र से बेहतर तंत्र हर  नागरिक को दूँगा।
 जवाब।।। जवाब।।।  जवाब

 अरे ! हाँ , कुछ लोग डॉक्टर की भाषा में समझाते हैं देख भाई पिछड़ापन , पोलियो के समान बीमारी है एवं आरक्षण ही इस बीमारी का टीका है । जैसे पोलियो का वायरस खत्म होने पर टीका बन्द कर दिया गया। ( फिर से शुरू कर दिया वापस ) वैसे ही दलितों का स्तर बढ़ने पर आरक्षण भी खुद-ब-खुद बंद कर देंगे।

 मगर कब ?

अब मेरा तर्क सुनो तो यह जो आरक्षण नामक टीका है ना इसके एंटीबायोटिक की तरह दुष्प्रभाव भी बहुत है । जब पिछड़ापन बीमारी  बहुत ही घातक स्तर पर  थी तब इसका इलाज यही "आरक्षण" जायज था मगर अब यह बीमारी अंश मात्र रह गई है तो यह दुष्प्रभावी दवाई  (आरक्षण) को बंद कर, किसी आयुर्वेदिक इलाज को शुरू किया जाना चाहिए ।

मैं भी अच्छी तरह जानता हूँ कि प्राचीन समय में दलितों का शोषण बहुत हुआ । कहीं - कहीं अभी भी हो रहा है और दलितों का आरक्षण भी नाजायज उम्मीदवार ले जा रहे हैं ।

मगर किसी को दयनीय मत बनाओ ।
पिछड़े वर्ग को मेहनत के बल पर आगे लाओ
खड़ा होना सिखाओ ,  लाठी सहारे कब तक खड़े रहेंगे,  पैरों पर खड़ा होना सिखाओ ।

काफी लोग जानते हैं कि आरक्षण व्यवस्था में अब बदलाव की जरूरत है मगर वो यह भी जानते हैं कि इस मुद्दे के दम पर राजनीति करके,  वो जनता का वोट नामक आशीर्वाद आसानी से प्राप्त कर सकते हैं ।
आपणे मारवाड़ मो कहावत है न कि " पाड़े,  पड़ी ऊँ की कोम,  थनो दूध ऊँ मतलब है ।"

 एक बार फिर साफ करना चाहता हूँ कि मैंने ना दलितों को कमजोर बताने की कोशिश की है । ना ही यह लेख दलित विरोधी है बल्कि मैं वास्तव में उनका उत्थान कैसे हो सकता है ? यह बताना चाहता हूँ ।
अधिक सफाई देना नहीं चाहता । यह आपकी मानसिकता है कि आप इसे किस रुप में लेते हैं।
 
      " बाकी राम राखे"

《सामाजिक सुधार की इस  रणनीति का दूसरा भाग कमपेनसेटरी डिस्क्रिमिनेशन (प्रति पूरक भेदभाव / क्षतिपूर्ति भेदभाव या सकारात्मक कार्यवाही) से संबंधित है जो निम्न लिखित प्रायोजन लागू करता है:



1. सार्वजनिक सेवा की नियुक्ति और प्रमोशन मे आरक्षण लागू करके,

2. विधायिका की सीटों मे आरक्षण लागू करके (केंद्रीय, राज्य, पंचायत राज, मुनिसिपल बॉडीस आदि),

3. शैक्षिक और प्रोफेशनल कॉलेजस की सीट मे आरक्षण लागू करके,

4. निर्धारित योग्यता मापदंडो मे छूट प्रदान करके,
<मुझे सबसे समस्या बिंदु संख्या 1,3 व 4 से हैं >
सम्पूर्ण दलित हितैषी नियमों से नहीं, ,,
 पाठकों के नाम संदेश-
                               यदि आपके पास आरक्षण के पक्ष में तर्क है तो  हमें कमेंट बॉक्स में जरुर बताए ताकि ,,,,,,।।

प्रतिक्रिया का इन्तजार ........
* छगन चहे

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