Tuesday, 27 March 2018

मोहब्बत लिख लेने दो....

कलमकार ने संगीतकार बनने की कोशिश कर रहा है बस अपने लिए, ,,, अच्छा ना तो ना सही तार तो छेड़ ही लेते हैं । click by LAKHA RAM

आप लिखते हो तो वाहवाही के साथ - साथ,  बहुत सारे सुझाव भी आते हैं । मुझे इन सब से बहुत प्यार है । ऐसे ही एक सुझाव पर मेरी प्रतिक्रिया, ,,,
 कुछ लोग कहते हैं 'जनाब कभी इश्क, मोहब्बत से भी उठकर लिखा किजिए ।'
  जरूर लिखेगें मगर अब तो मोहब्बत लिख लेने दो, जो कह रहा वक्त, उसकी तो सुन लेने दो ।
 जब चेहरे पर सख्त बाल होंगे । उनसे सफेदी झांकने लगेगी तब जरूर दर्शनशास्त्र झाड़ेगे ।
मगर अब तो लड़कपन के सपनों को संवारने दो , जो हैं हकीकत उससे दो - दो हाथ कर लेने दो ।
 जब लगेंगे कमाने, बढ़ेगी जरूरतें तब जोर - शोर से लिखेगें, महँगाई पर ।
 जब घर जाने की जल्दी होगी,  सड़कों पर ट्रेफिक सतायेगा । तब लिखेगें ना शहर की माली हालात पर लेकिन अब मस्त - मौला हैं । जल्दी का ना कोई सिलसिला हैं । शोर - शराबे में भी , मन किसी और धुन में रमा हैं तो क्यों ना इसे ही जीने दो ?
  आयेगा समय जब रेड लाईट होने से पहले निकले की कोशिश करेंगे मगर अब ट्रेफिक लाईट पर रूक अपनी बेपरवाह जिंदगी को लिख लेने दो ।
  रातों में उबासीयाँ आयेगी,  नींदे आँखों पे पहरा लगाएगी मगर फिक्र सोने नहीं देगी तब लिखेगें हर समस्या को ।
 अब महब्बूबा की यादों तले , नींदे हवा हैं,  रातों में भी जागने में मजा है तो महसूस कर लेने दो इस अद्भुत आनंद को ।
  जो वक्त हर किसी के जीवन से बस यूँ ही गुजर जाता है तो किसी एक को , भरपूर जी लेने दो ।
  तरस हमें भी आता हैं । भूखे - प्यासे बच्चों और बिलखती जनता पर । विश्वास दिलाता हूँ कि मेरी कलम उनकी हमसफ़र बनेगी,  उनकी समस्या के लिए तलवार बनेगी लेकिन बस चंद पलों के लिए कंघी बन हमसफ़र की जुल्फ़े संवारने दो । तन्हा गुजर रही जिनकी रातें,  उनके ख्वाबों को पर लगाने दो ।

 जो यह शिक्षा व्यवस्था की बिगड़ी हालत हैं । सुधारने की पुरजोर कोशिश करेंगे मगर अभी तो काॅलेज के सुनहरे मौके को भुनाने दो ।

 मोहब्बत का पड़ाव है इस पड़ाव में जी भरके ठहरने दो ।

  बहुत हैं जमाने में गिराने वाले,  एक हाथ है जो थामना चाहता हैं मुझे । बस उसे खोज लेने दो ।
 हाँ,  आईना धुँधला है । फिर भी एक चेहरा दिख रहा है उसे दिल भर के निहारने दो ।
    जब तक पतंग की डोर मात - पिता के हाथ में है तब तक हवा के विपरीत उड़ लेने दो । डोर कटने के बाद तो हवा के रूख के साथ उड़ना ही हैं ।
 
    मैं तो कहता हूँ कि आप भी....
     उम्र ढ़ल गई तो क्या ?   बालों से सफेदी झाँकने लगी तो क्या?   दौर गुजर गया तो क्या ?   फिर से दिल हरा करके तो देखो ।
     मुझे नहीं पता आपका मोहब्बत,  प्रेम से क्या अभिप्राय हैं ? मोहब्बत खुद से , खुद की जिंदगी से भी तो की जा सकती है,  जिससे थी कभी हमें , वापस उससे भी तो की जा सकती है ।
  प्रेम भौतिक सुख से परे आत्मीय सुख है जिसे बस महसूस किया जा सकता है, भोगा नहीं जा सकता ।


 जब हम समस्याओं के बारे में लिखेंगे तो उसमें बातें होगी हिंसा, अपराध और द्वेष की जो यूँ ही पढ़ने को बहुत मिल जाता है ।
 समस्याओं के समाधान के लिए किसी एक पक्ष में उतर जाना पड़ेगा। वह हमें मंजूर नहीं ।
 मोहब्बत हैं बेपक्ष ; इधर भी हैं, उधर भी हैं । इसके,  उसके ...हरेक के सीने में है । बस हालफिलहाल उसे लिख लेने दो।
कभी वक्त निकालकर सोचना कि सब प्रेम,  मोहब्बत से सरोबार हो जाये तो कितना मजा आए इस जमाने को जीने में ।
 जिसे जोड़ दिया बस तन की हवस से , उसे बिन हवस के महसूस किया जाए तो कितनी खुशी होगी जीने में ।
 शायद यही वो मोहब्बत हैं,  जो मैं आजकल महसूस करता हूँ,  जिस के लिए लिखता हूँ, , जिनमें ना गम , ना बिछड़न । बस मोहब्बत,  मोहब्बत और मोहब्बत ।
प्यार,  प्यार हर किसी का प्यार ; हर किसी से प्यार ।।

जिसका कोई अन्त नहीं, ,, बस सतत्,  निरन्तर । बिना रुके ,,,,जो ख्वाब नहीं,  ख्याल नहीं , हकीकत है । हर किसी को दिखती नहीं,  हमें सच को देखने की आदत जो नहीं हैं ।

 खुद की हकीकत , खुद में ही हैं ।

दिल में झांक कर देखों,  तुम्हारी हकीकत भी प्यार ही है ।
हर किसी की हकीकत है बस प्यार,  मोहब्बत,  प्रेम या ऐसा ही कुछ ।  नहीं,  नहीं यही, ,, प्रेम, आलौकिक प्रेम,  निश्छल प्रेम ।
बस हर किसी से प्रेम । हर चीज से प्रेम । हकीकत से प्रेम ।।
बस प्रेम,  प्रेम और प्रेम, ,,,और कुछ भी नहीं .....

                    * छगन चहेता

Sunday, 18 March 2018

कहानी : typing... (टाईपिंग...)

कहानी प्यार, मोहब्बत की नहीं हैं मगर शायद कुछ वैसी ही हैं ।
 वो मेरे स्कूल में साथ पढ़ती थी मगर अलग - अलग वर्ग थे । पता नहीं दोस्ती कहा हुईं शायद स्कूली बस में,  दोनों साथ जो आते थे  ।
दोस्ती बस मुस्कुराहट से शुरू होती और मुस्कुराहट पर खत्म । बीच में चंद पलों के फासले के सिवाय कुछ ना । हाँ,  कभी -  कभार चाॅकलेट , बिस्किट ले - दे दिया करते थे ।
  फिर लगभग दो सालों के बाद इत्तेफाक से  वो भी जिस कोचिंग संस्थान में ; मैं जाता था उसी में एडमिशन लेती है मतलब फिर से सहपाठी हो जाते हैं । इतने समय बाद मिलने पर भी सिर्फ वही पहले वाली मुस्कुराहट,  बस मुस्कुराहट ।
 " अरे!  तुम यहाँ । हाँ,  तुम भी?  जी , मैं भी ।
  कक्षा में सबसे पीछे बैठने वाली लड़की । अब आगे वाली बैंच पर बैठती हैं । मेरे वाली बैंच पर , स्कूल का जिक्र करके कारण पूछा तो बताया कि पीछे से दिखता नहीं हैं बोर्ड पर । पर उस दिन जब मैं पहली कालांश में नहीं गया था । लेट गया था  तब वो सबसे पीछे बैठी थी । आगे वाली बैंच भी खाली थी...... ।
"वैसे मुझे हमेशा से ही आगे बैठने का शौक है । बस यूँ ही । बाकी कक्षा में बैठने के स्थान से शिक्षा ग्रहण करने की क्षमता का , हमें ज्ञान ना हैं । "
ना जाने क्यों?  जब हम क्लास से छुटते तो वो पीछे से आवाज लगाती और कहती - "रुक , कुछ काम था।"
" हाँ,  बोल।"
फिर लम्बी सी चुप्पी ।
मानो कुछ कहना चाह रही हो पर कह नही पा रही है।
फिर हड़बड़ी से ; "हाँ,  वो कल आते वक्त केमिस्ट्री की बुक लेते आना ।"
 ऐसा कई दफ़ा हुआ और हर बार नये बहाने से बात टाल देती ।
वहाँ हम एक साल साथ पढ़ें ।
 यूँ ही,  एक साल और साथ में बिता,  मुस्कुराहट और मुस्कुराहट से, ,, कुछ दबी - दबी ख्वाहिशों में ...।

 फिर दो साल बाद सुबह - सुबह किसी नये नम्बरों से फोन आता है ।
सामने से " हैलो ! " युवकती की आवाज थी।
हैलो!  हाँ,  जी ..... हैलो , हैलो!
सामने से कोई प्रत्युत्तर नहीं,  सोचा तकनीकी खराबी होगी ।
मैंने काॅल बैक किया लेकिन कोई उत्तर नहीं, ,,। मेरे जेहन में आया कि हो न हो ये वही है ।
शायद वो मुस्करा रही होगी और मुस्कुराहट आवाज नहीं करती।
 जवाब में,  मैंने भी मुस्करा कर फोन रख दिया ।
तभी वाट्सएप पर उसी नम्बरों से मैसेज आता हैं, ,, स्माईली(☺) । मैंने भी जवाब में स्माईली(☺) भेजी ।
 दोपहर में फेसबुक देखी तो उनकी फ्रेंड रिक्वेस्ट आयी हुईं थी, ,,, मैंने स्वीकार कर ली ।
  कुछेक महीनों बाद उनकी फेजबुक आईडी पर इन्गेजमेंट
अपडेट थी । मैंने टिप्पणी में " बधाई हो " लिखा ।
उनकी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया के रूप में 😃(हा हा ) था ।
 उस दिन न जाने क्यों?  मुझे अजीब सा महसूस होने लगा । हमारे स्कूल,  ट्यूशन वाले दिन याद आने लगे, ,, उनका यकायक आगे बैठना , उनका मुझे ट्यूशन से छूटते वक्त रोकना ,,, उनकी मुस्कुराहट, ,, फोन पर उनका अन्दाजा लगाना,,,, फिर मुस्कराना, ,,मानो सब कुछ ......जो उससे व मुझसे जुड़ा था।

मैं शायद उसे समझने लगा था मगर अब ......?

कल रात,  मैं जब वाट्सएप देख रहा था तो उनके नाम के नीचे typing... लिखा आ रहा था लेकिन बहुत देर तक कोई मैसेज ना आया ।
Suman is typing...

  शायद वो कुछ कहना चाह रही हैं मगर कह नही पा रही है । नहीं,  नहीं अब वो कहना जरूरी नहीं मानती होगी । फिर भी सोच रही होगी, ,, कहूँ या नहीं, ,,, कहूँ तो क्या?  इसी उहापोह में , वो मोबाइल का कीबोर्ड निकाल कुछ लिखती होगी या कुछ लिखना चाहती होगी या लिख कर कुछ मिटाती होगी ।
पर मुझ तक कुछ ना पहुँचाना चाह रही होगी या पहुँचा नहीं पा रही होगी ।
 ना जाने क्यों?  अब मैं भी कीबोर्ड निकाल कर उसे कुछ लिखना चाहता हूँ लेकिन कुछ लिख नहीं पा रहा हूँ या कहूँ लिखना जरूरी नहीं मान रहा हूँ ।।
वो भी मेरे नाम के नीचे typing... लिखा देख मैसेज का इन्तजार करती होगी , शायद ..।
 chhagan is typing...
     
                                       * छगन चहेता
 
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Saturday, 10 March 2018

दहलीज़

मैंने इस ब्लाग का नाम " दहलीज़ " रखा है ......

दहलीज़ अर्थात सीमा, ,,।  हमारे मारवाड़ में घर के आंगन के छोर पर 4-5 इंच ऊँची दीवार होती है उसे घर की "दहलीज़" कहते हैं ।  मारवाड़ी में  "पेटली" कहते हैं ।

आजकल हमारे शहरों में "दहलीज़" कहाँ होती है बस "चौखट" होती है ।

दहलीज़ का मतलब हद भी होता है।

 लेकिन यहाँ मेरा अभिप्राय सीमा से हैं । मेरी मानसिक प्रवृत्ति के अनुसार में पक्ष,  विपक्ष ;  भूत, भविष्य की ; अच्छे , बुरे की दहलीज़ पर हूँ यानी पूरी तरह से कोई सच,सच नहीं होता ना ही कोई झूठ , पूरी तरह से झूठ होता हैं ।

किसी के पक्ष में हूँ मतलब यह नहीं कि विपक्ष को नकार ले। कोई बुरा है तो उसका भी कारण होगा उसे भी सुनना जरुरी हैं। भविष्य की दौड़ में भूत को  भूल नहीं सकते ।

थोड़ा अपनों का , थोड़ा गैरों का भी..।

मेरी उम्र के पड़ावनुसार,  मैं मोहब्बत की दहलीज़ पर हूँ।

 समुंद्र में उतरना भी चाहता हूँ मगर उतर नहीं सकता तो उसकी दहलीज़  पर बैठे-बैठे इसकी दरिया में डूबते , तैरते आशिकों को देख रहा हूँ।

समाज की दहलीज़ पर बैठे-बैठे अपने,पराए; झूठे, सच्चे लोगों को महसूस कर रहा हूँ।

 इस दौर में मुझे यहीअच्छा लगता है ।

हाँ,  अगर आपने मुझे सही तरह से नहीं समझा है तो मैं आपको दहलीज़ पर न दिखकर किसी एक तरफ ही नजर आऊँगा ।

वैसे तो मैं इस दहलीज से उतना नहीं चाहता क्योंकि यह दहलीज़,  मेरे गांव वाले घर के आंगन की दहलीज जितनी नहीं है।  जिसे पार किया जा सके या  वापस चढ़ा जा सके।
 यह एक तरह से मेरे गांव के घर की दहलीज़ जैसी भी है जिसमें एक बार जाने पर वहीं के होकर रह  जाते है।

 दुनिया में देख रहा हूँ कि बड़े कद के लोग, इस दहलीज़ को आसानी से पार कर रहे हैं।  इधर से उधर जा रहें हैं । मुझे डर हैं, कहीं यह इधर से उधर जाने के चक्कर में मुझे ठोकर देकर गिरा न दे । मेरा कद  दुनिया में इतना ऊँचा नहीं कि इस दहलीज़ को पार कर सकूँ या वापस चढ़ जाऊँ ।

यह इत्तेफाक ही होगा कि वह मुझे किस तरफ गिराते  है ।  जिस भी तरफ गिरूंगा,  उस दिन से दुनिया के लिए तो एक जाना - पहचाना किरदारा  बन जाऊंगा मगर खुद के , इंसानियत (इंसान के रूप में)  और साहित्य के लिए(साहित्यकार के रूप में ) कहीं खो जाऊंगा । कहीं अनन्त में चला जाऊंगा । तब शायद तुम मुझे बहुत प्यार से बुलाओगे।  तुम दहलीज़  पर चढ़कर ,  अपना हाथ देकर ;  मुझे वापस खींचने की कोशिश करोगे  तब शायद,  मैं भी ना आना चाहूँ ।

             * छगन चहेता
[ मजेे की बात यह हैं कि मेरे प्रिय गाना भी  "दहलीज़ पर मेरे दिल की ,,,,,,, " ( जीना जी) है ]

Thursday, 1 March 2018

लोचा आरक्षण का ...

सर्वप्रथम, मैं हमारे देश की वैचारिक प्रवृत्ति को देखते हुए स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मैं अपने देश के संविधान सहित तमाम संविधान निर्माताओं का पूरे दिल से सम्मान व आदर करता हूँ ।
  शुरुआत एक उदाहरण से करते है । दो विद्यार्थी हैं ।एक आरक्षित वर्ग से है तथा दूसरा सामान्य वर्ग से । आरक्षित वर्ग वाला लड़का शहर की अच्छी काॅलोनी में रहता है अर्थात छुआछूत,  दलित मानकर प्रताड़ित करना जैसा कुछ नहीं मतलब किसी भी प्रकार से  पिछड़ा हुआ नहीं माना जा सकता।
   दोनों में से सामान्य वर्ग वाले लड़के के बाहरवीं कक्षा  का परिणाम आरक्षित वर्ग वाले लड़के से 20 प्रतिशत अधिक रहता है। दोनों शहर के एकमात्र Govt. कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए apply करते हैं। आरक्षण की वजह से एक का सेलेक्शन हो जाता है लेकिन दूसरे का नहीं होता है तो बताइए उस बच्चे पर क्या बीतेगी  आप कुछ भी कहो, सविधान  समानता का अधिकार देता है मगर सच में है नहीं । हां देश में ऐसा वैसा कुछ भी होता हो मगर जो उस बच्चे के भविष्य के साथ हुआ उसका जवाब कौन देगा?
 मैं आरक्षण को सपोर्ट वालों से पूछना भी नहीं चाहता । क्यों पूछना?  वह संविधान के प्रवक्ता नहीं है?  मेरा सवाल उस संविधान से हैं जिसने वादा किया था कि वह हर नागरिक को  राजतंत्र से , अच्छा एक तंत्र देगा । मेरा सवाल उस संविधान से हैं । संविधान जब तक , हर एक अधिकार को बिना किसी किंतु परंतु के नहीं देगा तब तक वह आदर्श नहीं कहलाएगा।
 हमारे संविधान दोहरी नीति हटनी चाहिए ।
जवाब ।जवाब ।जवाब।
किसी के साथ अन्याय करके किसी को न्याय देना कहाँ तक सही हैं ।
अब उसेे कॉलेज में प्रवेश नहीं मिला तो सीधी सी बात है उसके सामने रोजगार की समस्या पैदा होगी । अब उसके पास मानसिक शक्ति है तो वह शारीरिक शक्ति का प्रयोग करके रोजगार करने में शायद ही रुचि  ले ।जाहिर सी बात है। उसके मन में नफरत फैलेगी सिस्टम के प्रति , तो वह अपराध की और बढेगा जिसकी पुष्टि अपराध जगत में बढ़ते पढ़े लिखे "लोगों की संख्या" की रिपोर्ट हैं ।
मुझे बचपन से सुनने को मिला है कि IAS लेवल के A ग्रेड के अधिकारी बहुत इंटेलिजेंट होते हैं मगर यह बात समझ नहीं आती फिर क्यों अपराधी पकड़ में नहीं आते ?
अब समझ में आया कि आरक्षण की वजह से जो भाई साहब 55% के साथ पुलिस अधिकारी बन गया और सामान्य वर्ग का  80% वाला बंदा निक्कमा बैठा।  जब वह अपराध जगत में जाएगा तो...?
"पेट की आग इंसानियत , धर्म कुछ नहीं देखती"
 तो  जब 80 प्रतिशत वाला बंदा अपराध करेगा तो वह 55% वाला कुछ ना कर सकेगा। उनके मानसिक क्षमता में इतना ज्यादा अन्तर है ।
 यही कारण अपराध बढ़ रहे हैं अपराधी पकड़ से बाहर हैं।
 यह सच है सच है,,,।
आप अन्यथा में ना ले। मैं यह नहीं कह रहा कि दलित मानसिक रुप से कमजोर होते हैं तथा सामान्य वर्ग वाले मजबूत होते हैं। सामान्य वर्ग के जो लोग इस पद के लायक नहीं है। वह तो वैसे ही बाहर हो जाते हैं मगर आरक्षित वर्ग वाले संख्या में कम होने के कारण,  असक्षम लोग भी आ जाते हैं।

"मानसिक शक्ति जाति धर्म देखकर नहीं आती है"

मुझे नहीं लगता कि मौजूदा आरक्षण व्यवस्था से दलितों का उत्थान  होगा बल्कि इससे देश के हुनर , प्रतिभा का पतन होगा या पलायन होगा ।

{इसी विषय पर 1970 में टिप्पणी करते हुए पूर्व वाणिज्य सचिव और अमेरिका में राजदूत आबिद हुसैन ने कहा था प्रतिभा के नष्ट होने से बेहतर है कि वह पलायन कर जाए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आरक्षण व्यवस्था का उद्देश्य जाति पर जोर देना नहीं, जाति को खत्म करना था।}

"सक्षम लोगों की बेरोजगारी मुझे बहुत टीस देती हैं "

मेरी मानो तो आरक्षण को फिर से , एक सिरे से शुरु किया जाए। जाति आधारित नहीं,  आर्थिक आरक्षण दिया जाए। गरीबों को पढ़ने के लिए आर्थिक सहायता दी जाए ना कि उन्हें शैक्षणिक योग्यता में रियायत दी जाए ।
दलितों को मानसिक रुप से मजबूत किया जाए ताकि  उनको तथाकथित उच्च जाति वाले लोग दबा न सके । उन्हें शिक्षित करके,  उनको अधिकारों से वाकिफ कराया जाए।
हमारी संविधान में दोहरी नीतियाँ हैं ,,,, एक ओर हम जातीय व्यवस्था को खत्म करना चाहते हैं वहीं दूसरी ओर  आरक्षण को जातिगत रुप से दे रखा गया है।
 जिसके कारण सरकार आपको बाकायदा लिख कर देती है कि आप उस जाति , उस उपजाति से है ।
आप पिछड़े या दलित हो।  रंगीन पेपर लिख कर देती है भाई साहब।।
ऐसे व्यवस्था के साथ हम कभी जातिय भेदभाव को खत्म नहीं कर पायेगें । फिर भी ना जाने कैसे ? हमारे नीति - निर्माता इस विरोधाभास को साथ लेकर नामुमकिन स्वप्न देख रहे हैं ।

पता नहीं कब?  संविधान का दिया समानता का अधिकार लागू होगा,  सच्चे मायनों में ।।

देश में अशांति का कहीं न कहीं कारण आरक्षण भी हैं । जब लोगों की मेहनत को आरक्षण के नाम पर अनदेखी की जाती हैं तो उनका गुस्सा होना लाजमी हैं ।
 हम गुजरात को पटेल आरक्षण माँग में दहकता दहकता चुके हैं और गुर्जर आंदोलन से भी वाकिफ हैं ।
ऐसे देश में समय समय पर ना जाने कितने ही आन्दोलन होते रहे हैं, ,,।
    जो लोग मानते हैं कि आरक्षण दलितों का हक है तथा आरक्षण से प्रतिभा का पतन नहीं होता, , वैसे उनके पास कोई तर्क नहीं हैं,  कुतर्को के अलावा ।
अगर तर्क है तो बताओ ???
समृद्ध होकर भी पटेलों ने आरक्षण की माँग क्यों की ?
 आप मानते हो कि आरक्षण से असक्षम लोग तंत्र में नहीं आते । ठीक है मान लेता हूँ । लेकिन पहले आपको मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिए ।
यहाँ मैं यह सिद्ध करना चाहता हूँ कि वास्तव में आरक्षण से असक्षम लोग तंत्र में आ जाते हैं ।
प्रश्न : सैन्य सेवाओं में आरक्षण क्यों नहीं हैं ?
आपको याद हो तो एक बार माँग होने पर आरक्षण के आधार पर भर्ती भी हुईं थी बाकी बाद का सबको पता ही है, ,,,,,
खैर अब उत्तर पर आते हैं । उत्तर - आरक्षण कमेटी को पता था कि आरक्षण की वजह से असक्षम लोग सैन्य तंत्र में आ जाएंगे और वह इस नव आजाद देश की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहते थे इसीलिए यह एक क्षेत्र मजबूत भी हैं ।

मैं जब आरक्षण को हटाने की बात करता हूँ तो कई लोग मुझे तर्क देते हैं या कहो कि कुतर्क देते हैं ।
 मगर इसका उत्तर हैं, ,,,
 मैं जब शिक्षा नगरी कोटा गया था तब मुझे ऐसे भी लोग मिले जो IIT की तैयारी करने आये तो थे मगर बिल्कुल लापरवाह थे , पढ़ाई के प्रति । जब मैंने ऐसे दोस्तों से बात करके कारण जानना चाहा तो चौंकाने वाला था ।
  उन्होंने सीधा मगर बड़ी अदबता से उत्तर दिया -- भाई हम आरक्षण के दम पर सलेक्ट हो जायेगें ।
मैंने कहा फिर भी पढ़ लेने में क्या हर्ज हैं । देश को पढ़ें - लिखे इन्जिनियर मिलेंगे ।
वो कहते हैं भाई सच बताये,  हमें IIT जाने का कोई शौक नहीं हैं बस घर वाले चाहते है । आरक्षण हैं तो उन्हें ये भी डर नहीं कि सीट नहीं मिलेगी ।
 अब क्या करेगा चाँद?  क्या करेगी चाँदनी?
यह किसी एक का किस्सा नहीं हैं । यह हकीकत है देश की।
 इसका उत्तर चाहिए , मुझे ,,,
मगर आरक्षण प्रेमियों से उतर नहीं ।
 मुझे मेरे देश के सविधान से उत्तर चाहिए जिन्होंने वादा किया था कि राजतंत्र से बेहतर तंत्र हर  नागरिक को दूँगा।
 जवाब।।। जवाब।।।  जवाब

 अरे ! हाँ , कुछ लोग डॉक्टर की भाषा में समझाते हैं देख भाई पिछड़ापन , पोलियो के समान बीमारी है एवं आरक्षण ही इस बीमारी का टीका है । जैसे पोलियो का वायरस खत्म होने पर टीका बन्द कर दिया गया। ( फिर से शुरू कर दिया वापस ) वैसे ही दलितों का स्तर बढ़ने पर आरक्षण भी खुद-ब-खुद बंद कर देंगे।

 मगर कब ?

अब मेरा तर्क सुनो तो यह जो आरक्षण नामक टीका है ना इसके एंटीबायोटिक की तरह दुष्प्रभाव भी बहुत है । जब पिछड़ापन बीमारी  बहुत ही घातक स्तर पर  थी तब इसका इलाज यही "आरक्षण" जायज था मगर अब यह बीमारी अंश मात्र रह गई है तो यह दुष्प्रभावी दवाई  (आरक्षण) को बंद कर, किसी आयुर्वेदिक इलाज को शुरू किया जाना चाहिए ।

मैं भी अच्छी तरह जानता हूँ कि प्राचीन समय में दलितों का शोषण बहुत हुआ । कहीं - कहीं अभी भी हो रहा है और दलितों का आरक्षण भी नाजायज उम्मीदवार ले जा रहे हैं ।

मगर किसी को दयनीय मत बनाओ ।
पिछड़े वर्ग को मेहनत के बल पर आगे लाओ
खड़ा होना सिखाओ ,  लाठी सहारे कब तक खड़े रहेंगे,  पैरों पर खड़ा होना सिखाओ ।

काफी लोग जानते हैं कि आरक्षण व्यवस्था में अब बदलाव की जरूरत है मगर वो यह भी जानते हैं कि इस मुद्दे के दम पर राजनीति करके,  वो जनता का वोट नामक आशीर्वाद आसानी से प्राप्त कर सकते हैं ।
आपणे मारवाड़ मो कहावत है न कि " पाड़े,  पड़ी ऊँ की कोम,  थनो दूध ऊँ मतलब है ।"

 एक बार फिर साफ करना चाहता हूँ कि मैंने ना दलितों को कमजोर बताने की कोशिश की है । ना ही यह लेख दलित विरोधी है बल्कि मैं वास्तव में उनका उत्थान कैसे हो सकता है ? यह बताना चाहता हूँ ।
अधिक सफाई देना नहीं चाहता । यह आपकी मानसिकता है कि आप इसे किस रुप में लेते हैं।
 
      " बाकी राम राखे"

《सामाजिक सुधार की इस  रणनीति का दूसरा भाग कमपेनसेटरी डिस्क्रिमिनेशन (प्रति पूरक भेदभाव / क्षतिपूर्ति भेदभाव या सकारात्मक कार्यवाही) से संबंधित है जो निम्न लिखित प्रायोजन लागू करता है:



1. सार्वजनिक सेवा की नियुक्ति और प्रमोशन मे आरक्षण लागू करके,

2. विधायिका की सीटों मे आरक्षण लागू करके (केंद्रीय, राज्य, पंचायत राज, मुनिसिपल बॉडीस आदि),

3. शैक्षिक और प्रोफेशनल कॉलेजस की सीट मे आरक्षण लागू करके,

4. निर्धारित योग्यता मापदंडो मे छूट प्रदान करके,
<मुझे सबसे समस्या बिंदु संख्या 1,3 व 4 से हैं >
सम्पूर्ण दलित हितैषी नियमों से नहीं, ,,
 पाठकों के नाम संदेश-
                               यदि आपके पास आरक्षण के पक्ष में तर्क है तो  हमें कमेंट बॉक्स में जरुर बताए ताकि ,,,,,,।।

प्रतिक्रिया का इन्तजार ........
* छगन चहे

डायरी : 2 October 2020

कुछ समय से मुलाकातें टलती रही या टाल दी गई लेकिन कल फोन आया तो यूँ ही मैं निकल गया मिलने। किसी चीज़ को जीने में मजा तब आता है जब उसको पाने ...