Tuesday, 9 January 2018

अपनी असलियत, ,,कविताओं से,,,छगन चहेता की कविता;;;;

                           (1)
नहीं ढूंढता अपनी मोहब्बत ऊंचे ऊंचे बंगलो में  ,
हो सकता है वह रहती हो किसी शहर के छोटे से कोने में।

 नहीं ढूंढता अपनी मोहब्बत महंगी महंगी गाडी में ,
हो सकता है वह मिल जाए किसी गांव की पगड़ड़ी में।

 नहीं ढूंढता अपनी मोहब्बत हर एक हसीन चहरे में ,
 हो सकता है वह छुपी हो किसी खूबसूरत से दिल वाली लड़की में।।
                                * छगन चहेता

 
                        (2)
की होगी तारीफे न जाने कितनों ने तुम्हारे हुस्न की,
 किये होंगे वादे तेरे लिए चांद तारे लाने के,
 ताज के ख्वाब भी दिखाए होंगे ,
जान देने को भी तैयार होंगे बहुत सारे।
 पर मेरा वादा है इन सब से ऊपर ,
रहे ना किसी दिन ये नूरानी चेहरा, हुस्न की जवानी,
 तब तेरे चेहरे की झुर्रियों से भी रहेगी मेरी दीवानगी।।
         
                                 * छगन चहेता
 
                          (3)
जब मिली नहीं वजह मुस्कुराने की तो सीख लिया ,
बस यूं ही मुस्कुराना ,बस यूं ही गुनगुनाना ।
मत जलना मुझसे दुनिया वालों कि यह कैसे बिन मतलब के मुस्कुरा लेता है।
 आसान नहीं है यारों,  बस यूं ही मुस्कुराना ;
इसके लिए खुद को पागल की संज्ञा देनी पड़ती है।
   पागलपन  के  ताने भी सहने पड़ते हैं ।।

                                   * छगन चहेता

¤ कुछ चीजें ना छुपाई जाए तो बेहतर हैं ।
 वैसे मुझे गम के सिवाय कुछ भी छुपाने का शौक नहीं हैं, कभी कभी तो अपनों के सामने गम भी नहीं छुपा पाता हूँ ।
 
                                * छगन चहेता 

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