::कविता ::
हो गई हैं मंजिले जुदा यारों
राहो में ही बिछड़ गये ।
अब वो हर बात तो होगी
पर वो जज्बात कहाँ ।
अब भी महफिले जमेगी
गजलें भी बनेगी
पर यारों, आप जैसा शायराना अंदाज कहाँ ।
टीचर भी होंगे, किताबें भी होगी
पर पढ़ने का वो माहौल कहाँ ।
दोस्त भी होंगे, दोस्ती भी होगी
पर यारों, आप जैसा याराना कहाँ ।
बातें भी होगी, यहाँ की,वहाँ की,सारे जहाँ की
पर यारों, आपके लब्जो सी आवाज कहाँ ।
बहुत याद आयेगें
वो अभि की शैतानियाँ,शायरीयाँ
वो अब्बास की उलझने
वो लाखु की नादानीयाँ
वो पूनम सी बहना(sister)
वो साहिल की biology
वो रईस की mythology
वो दिनेश(Rajpurohit)के सीरियस अंदाज वाले मजाक
वो रहीम के सपनों की बातें
बहुत सताएगी
पर क्या करें यारों, दुनिया की बताई राहो पर चलना तो पड़ता हैं
कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता हैं ।
पर नहीं था पता कि यूँ मिल के बिछड़ जायेंगे
उस खंडहर सी मंजिल की दौड़ में
जिसे पाना शौक नहीं, शान नहीं
बस मजबूरी हैं ।
कह दो तो चल भी दूँ तुम्हारी राहो पर साथ तुम्हारे
पर क्या फायदा, तुम निकल जाओगे आगे मंजिल पाने के बाद
इसलिए, मैं भी चल पड़ा हुँ अपनी राहो पर
क्योंकि सुना है कि राह नहीं मिलती
खुद कभी खुद से
पर राहे अक्सर मिल जाती हैं
इक-दुजे से चौराहे पर
इसीलिए ही,मैं भी चल दिया, अपनी राहो पर ताकि
कभी हम राहो में मिले ना मिले
चौराहों पर जरुर मिला करेंगे ।।
*छगन चहेता
For my all Bsc.Ist(bio) Friends
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