Saturday, 4 November 2017

छगन चहेता की कविता "अस्पताल में जाकर, ,,,,,,,,,,"

 अस्पताल इन्सान का आईना होता हैं, यहाँ इन्सान की सच्चाई साफ दिखती हैं ।।।।।

                 कविता

लगे कभी माँ जीवन में बोझ
तो जननी वार्ड में प्रसव पीड़ा से कहराती
किसी माँ को देख लेना ।

लगे कभी अपनों में परायापन तो
किसी मरीज के पास खड़े परिजनों को देख लेना ।

हो कभी खुदा की खैर पर शक तो
जीवन की दुआ मांगते
बीमार लोगों को देख लेना ।

हो कभी भाई के प्यार पर शक तो
अस्पताल में राखी सम्भालते किसी के भाई को देख लेना ।

हो कभी पापा के प्यार पर शक तो
डाॅक्टर से मिन्नते करते किसी के बापू को देख लेना ।

हो कभी अपनी जवानी पर गुरूर तो
किसी वार्ड में तड़पते  वृद्ध को देख लेना ।

लगे कभी की जरूरत नहीं किसी की सिवाय दौलत के तो
मृदाघर में सड़ती किसी लावारीस लाश को देख लेना ।

करनी हो औकात पता अपनी तो
किसी अस्पताल में जाकर देख लेना ।
                        *छगन चहेता 

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