Thursday, 2 November 2017

छगन चहेता की कविता, ,,"पापा, ,,,,,,,"

कुबेर तो नहीं
कुबेर सा खजाना हैं, पापा

आसमान तो नहीं
आसमान सा छत हैं, पापा

पहलवान तो नहीं
पहलवान से रक्षक हैं, पापा

खुदा तो नहीं
फिर भी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं, पापा

गौतम बुद्ध तो नहीं
फिर भी हर गलती की माफी देते हैं ,पापा

महर्षि दधिची तो नहीं
फिर भी हमारे लिए अपने सुख त्यागते हैं ,पापा

जज से हैं
फिर भी फैसला नहीं, सलाह सुनाते हैं, पापा

जेलर से हैं
फिर भी सजा से नहीं, प्यार से समझाते हैं पापा ।
                                          *छगन चहेता


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