Tuesday, 31 October 2017

छगन चहेता की कविता "माँ तू ही, ,,,,,"

अगर करूँ खाना खाने में आना -कानी ,
तो माँ तू ही हैं जो नाराज होती हैं ।

अगर हो जाए उठने में देरी ,
तो माँ तू ही हैं, जो प्यार से सिर पर हाथ फेर जगाती है।

अगर छूँ लू ऊँचाइयाँ कामयाबी की,
तो माँ तू ही हैं जो मुझ से भी ज्यादा खुश होती हैं ।

अगर हो जाए घर आने में देरी ,
तो माँ तू ही हैं जो घड़ी देख देख बैचेन होती हैं ।

अगर पा भी लुँ सारे जहाँ की दौलत ,
तो भी माँ तेरी गोदी सा चैन कहाँ पाता हूँ ।

चाह तो हैं, बड़ा आदमी बनने की,
मगर माँ तू ही हैं ,जिसके लिए हमेशा छोटा रहना चाहता हूँ ।

अगर चाहूँ ,तो पिरो भी लुँ सारे जहाँ की गाथा शब्दों में ,
मगर माँ तेरी गाथा लिखने को मेरे सारे जन्म कम पड़ जाएंगे ।

अगर मिले कहीं खुदा, तो यही बात दोहराऊँगा
कि हर जन्म में बस तेरी ही गोदी पाऊँ ,
ताकि तेरी थोड़ी गाथा इस जग को ओर बताऊँ।

करता हुँ ,तुमसे वादा माँ
तेरे ऐहसान तो नहीं चुका सकुँगा,
मगर तेरी लाठी उम्र भर मैं थामुगाँ।।

Love you ....my mother. .....so much. .....
                                   *छगन चहेता
                         

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