कमरे में स्याह अँधेरे के साथ उदासी भी छाई हुई थी । हाथ के मोबाईल फोन में सबकुछ रंगीन होकर भी फीका-फीका सा था ।
उसे घुटन सी महसूस हुई वो कमरे से निकल, छत पर आ गया । आसमान के श्याम पटल पर टिमटिमा रहे तारों को चिढ़ाता चाँद भी चाँदी बिखेर रहा था ।
उसने चाँद को निहारा जिस पर कुछ धब्बे दिखाई पड़ रहे थे । जिसके बारे में बचपन में सुना था कि वहाँ एक बुजुर्ग माँ रहती है जो अभी दही मथ रही है तथा पास में बकरी बंधी है जो सोने की पोटी(मिगणीयां) करतीं हैं । हालाँकि इस रोमांचक दृश्य को किताबों ने ख़ारिज कर दिया और उसे मात्र गड्डे कहा गया ।
कभी कभी इस ज्ञान का होना भी दुखद लगने लगता है ।
उसे लगा कि चाँद उसे पूछ रहा है कि "तुम्हें किसी से प्यार है क्या ? "
वो बगले झाँकने लगता है लेकिन चाँद का बिंब उसे फिर आकर्षित करता है और पूछता है कि "चुप क्यों हो ? "
उसे मन होता है कि वो दौड़कर नीचे चला जाए और रजाई में दुबककर सो जाए लेकिन नहीं, वह वहीं रहता है चाँद को बिना देंखे ।
दूर से श्वानों की आतीं आवाज के सिवाय वहाँ मौन और उदासी का ही पहरा था ।
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, अब तक चाँद आसमान के आग़ोश में समा चुका था अब बचा था काला आसमान और चमकदार सितारे ,,, जिन्हें देखकर वो जरा सा मुस्कराया और कहा " ओ! काले आसमान और स्वर्ण सितारों, अब मैं तुम से बतियाता हूँ ।
हाँ तो सुनों , मुझे प्यार है और बेहद ही गहरा प्यार है जिसका अहसास कुछ यूँ होता है कि वो जब साँस लेकर छोड़ती है तो उसकी ऊष्मा मानो मेरे बदन को गर्म कर देती है तभी इस सर्द रात में खुले आसमान के नीचे खड़ा हूँ ।
उसके घर की तरफ से आती हवाएँ मुझे सहलाती हुई जाती है मानो उसकी छुअन मुझे दे रही हो और साथ में महक का अहसास भी ।
हाँ, ये उसके बदौलत पाई उदासियाँ भी मेरे पहरे के लिए हैं जो मुझे अडिग रखती है,,,, भ्रम जाल में फंसी दुनिया में फंसने से रोकती है ।
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और भी कई बातें हुई,,
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चलो दोस्तों! (आसमान और सितारे) अब मुझे नींद आने लगी है यकीनन वो भी सो गई होगी और इश्क़ में यकीन के बाद शक की गुंजाइश नहीं रहती,,,, शब-ब-ख़ैर,,।
,,, वह नीचे आया और सोते वक्त सोशल मीडिया पर बैठे आनलाईन आशिकों की मण्डली पर मुस्कान फेंक कर ,,,,, रजाई में दुबक गया,,,, जाने कितने ख़्वाब इंतज़ार में होगें, उन्हें भी तो मुकम्मल करना था न ।।
छगन कुमावत "लाड़ला"©
{तस्वीर:किसी शाम मेरे द्वारा ली गयी ।}
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