Thursday, 6 December 2018

पलायन


अंजू ने अपना थैला गोद में लेकर बैठते हुए पूछा "और जनाब, आज आशिकी में इतना कैसे डूबे गये ।
मैं चौंका, किसकी आशिकी में ? नहीं तो ।
आपकी मासूका उदासी की आशिकी में और किसकी ।
नहीं, सोच रहा था कि हम आने वाली पीढ़ी को विज्ञान की तमाम उपलब्धियों के अलावा क्या देंगे । जैसे हमें राधा-कृष्ण मिलें वैसे हम उन्हें क्या देंगे ?
अरे! एक सिरे से बात बताओ यार ।
हाँ तो सुनो । आज काॅलेज में, मैंने देवा से एक लड़की के बारे में पूछा कि ये कौन है ?
देवा ने कहा "ये उस प्रीतम की 'आइटम' है तुझे नही पता क्या ? "
'आइटम' शब्द कितना ओछा है न । ऐसे लगता है कि कोई बाजारू चीज़ के बारे में बात हो रही है जिसका उपभोग मात्र ही उदेश्य रहता हो ।
हमारी भाषाओं के पास कितने खुबसूरत शब्द है । मासूका, प्रेमिका, महबूबा और भी , जिसके उच्चारण मात्र ही भावनात्मक जुड़ाव उत्पन्न होता है ।
कितना दुखद है न कि हम किसी के भाई, पुत्र होकर भी पुरूष नहीं हो पाए अब तक ।

अच्छा, अंजू तुम्हारी इन चीजों के बारे में क्या राय है ?
मेरी राय क्या होनी है, कुछ भी नहीं लेकिन ये सब अच्छा मुझे भी नहीं लगता बल्कि बहुत भद्दा महसूस होता है ।
अब चिंता को परे रखो और चाय पीकर घर को चलते हैं ।
हम पार्क के कोने की थडी पर जाकर बैठ गये और दो चाय मंगवाकर, मैंने थडी पर लगी छोटी सी टीवी के स्क्रीन पर नजरें टिका दी । जिसमें दिनभर की न्यूज बुलेटिन आ रही थी । उसकी 99 वीं खबर ने हम दोनों को चौंकाया जो यह थी " शाहरुख की फिल्म में सन्नी लियोन करेंगी 'आइटम' सॉन्ग " ।
अंजू ने घायल नजरों से मुझें देखा और उसके चेहरे पर अनजाना सा कोई भाव आ गया ।
अंजू, हमें यहाँ से पलायन करना होगा । हमें क्या हर उस इंसान को पलायन करना होगा जिसे प्यार कि ज़रूरत हो ।
आने वाली पीढ़ी को यह दुनिया देना घातक होगा, उन्हें प्यार से सरोबार दुनिया देनी होगी, ये हमारी ही जिम्मेदारी है ।
अंजू ! कितना मजेदार होगा न , यहाँ रहते हुए यहाँ से पलायन पर रहना ।
चाय के गिलास हमारे हाथों में आ चुके थे और हम ढ़लती शाम की जल्दी को छोड़ इत्मीनान से चाय की चुस्कियां ले रहे थे जैसे यहाँ से पलायन कर चुके हो ।

छगन कुमावत "लाड़ला"©

{ तस्वीर जंतर मंतर की है }
[चलना कभी तुम भी, इन तन्हा बेंचों पर बैठ कुछ वक़्त संवारेगे]

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