पिताजी, जिनसे ही इस जटिल मानव जीवन को सरलता व प्यार से लबरेज़ होकर जीना सीखा ,,, बहुत कुछ सीख रहा हूँ । |
। |
¤ कविता ¤
है गुरुवर तुम्हें प्रणाम ।
है गुरुवर तुम्हें प्रणाम ।।
अर्जुन बनकर द्रोण को प्रणाम ।
राम बनकर वशिष्ठ को प्रणाम ।।
छाँट-छाँट अवगुण भगाएँ।
उबड़-खाबड़ जीवन पथ पर
अडिगता से चलना सिखाएँ ।।
है राष्ट्र निर्माता तुम्हें प्रणाम ।
है गुरुवर तुम्हें प्रणाम ।।
चंदा-सुरज की दुनिया से
वाकिफ़ कराया ।
न जाने कितनी मेरी
उलझनों को सुलझाना ।।
है पथ प्रदर्शक तुम्हें प्रणाम ।
है गुरुवर तुम्हें प्रणाम ।।
अपने ज्ञान चक्षु से
मेरा कौशल पहचाना ।
मुझमें है सूरज छूने का
हुनर आप से जाना ।।
है जीवन दिवाकर तुम्हें प्रणाम ।
है गुरुवर तुम्हें प्रणाम ।।
वैर, बेईमानी से
दूर बनाया ।
प्राणी मात्र के प्रति
प्रेम जगाया ।।
है देव तत्त्व तुम्हें प्रणाम ।
है गुरुवर तुम्हें प्रणाम ।।
छगन चहेता ©
No comments:
Post a Comment