Tuesday, 4 September 2018

है गुरुवर तुम्हें प्रणाम ...

पिताजी,  जिनसे ही इस जटिल
 मानव जीवन को सरलता व प्यार से
लबरेज़ होकर जीना सीखा ,,,
बहुत कुछ सीख रहा हूँ ।
 ।

      ¤ कविता ¤

है गुरुवर तुम्हें प्रणाम ।
है गुरुवर तुम्हें प्रणाम ।।

अर्जुन बनकर द्रोण को प्रणाम ।
राम बनकर वशिष्ठ को प्रणाम ।।

छाँट-छाँट अवगुण भगाएँ।
उबड़-खाबड़ जीवन पथ पर
अडिगता से चलना सिखाएँ ।।

है राष्ट्र निर्माता तुम्हें प्रणाम ।
है गुरुवर तुम्हें प्रणाम ।।

चंदा-सुरज की दुनिया से
वाकिफ़ कराया ।
न जाने कितनी मेरी
उलझनों को सुलझाना ।।

है पथ प्रदर्शक तुम्हें प्रणाम ।
है गुरुवर तुम्हें प्रणाम ।।

अपने ज्ञान चक्षु से
मेरा कौशल पहचाना ।
मुझमें है सूरज छूने का
हुनर आप से जाना ।।

है जीवन दिवाकर तुम्हें प्रणाम ।
है गुरुवर तुम्हें प्रणाम ।।

वैर, बेईमानी से
दूर बनाया ।
प्राणी मात्र के प्रति
प्रेम जगाया ।।

है देव तत्त्व तुम्हें प्रणाम ।
है गुरुवर तुम्हें प्रणाम ।।


छगन चहेता ©

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