Sunday, 1 April 2018

ग़ज़ल - " वक्त " ।।छगन चहेता ।।

वक्त,  वक्त पर बदलता रहता है ।
कभी इसका,  कभी उसका होती रहता है ।।

जवानी के सपने में भी ,
मुहब्बत का दर्द देता रहता है ।।

सुनहरे बालों को सफेद करके ।
वक्त,  वक्त पर रंग बदलता रहता है ।।

हमें जिन्दगी की भूलभुलैया में फंसा ,
खुद निकलता रहता है  ।।

इंसा से सबकुछ लुटके भी ,
सरेआम, ये घूमता रहता है ।।

कहते हैं , बड़ा किमती है वक्त ,
मगर ये तो यूँ ही गुजरता रहता है ।।

माना ठहरना फितरत ना तेरी ,
मगर इंसान को क्यों भगाता रहता है ।।

कौन हैं ये ईश्वर, अल्लाह
ये वक्त ही हैं जो बनाके , बिगाड़ता रहता है ।।

चुप क्यों 'छगन' तू रहता है ।
तेरा वक्त भी तो कुछ कहता रहता है ।।
                       
                  * छगन चहेता

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