Wednesday, 22 November 2017

छगन चहेता की कविता "परिंदा, ,,,,,,,,,,,"

   "       कविता       "
  उड़ने दो इस परिंदे को,
देखने दो जहां इस परिंदे को
हैं नहीं ये परिंदा आप मतलबी
समेटेगा खुशियाँ तो तुम्हें भी बाँटेगा ।
क्यों आतुर हो पर काटने को
क्यों बेताब हो इसकी उड़ान रोकने को
लाएगा चार दाने तो तीन तुम्हें भी खिलाएगा ।
करता हैं ये परिंदा वादा
खाएगा न कभी किसी के हिस्से की
जरूरत पड़ीं तो ,आपको भी खिलाएगा खुद के हिस्से की।
करेगा दुआ कि आये ना गम कभी किसी के हिस्से में
पर आ भी जाए गम आपके हिस्से, तो ये  ले लेगा खुद के हिस्से ।
                             *छगन चहेता 

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