Friday, 24 November 2017

छगन चहेता की शायरी,,,,,,,


कैसे कहुं तन्हा खुद को
सनम तेरी बेवफाई जो साथ हैं ।

नारी - पुरुष का भेद देखा भाषा में,
बदचलन नारी को  "वेश्या" कहा
बदचलन पुरुष पर मौन धरा।

आन से, बान से, स्वाभिमान से रहना
पर किसी रोज अपनी औकात से ना निकलना ।

चला था खुद को खुदा साबित करने
पर खुदाई के इम्तहान मे खुद को इंसा भी साबित कर न सके।

दूर से ही लगा लेते होअंदाजा , हमारे बुरा होने का
खुद से फैसला कर लेते हो हमसे ना मिलने का
पर करके देखो कभी गुप्तगु हमसे
होके देखो कभी रूबरू हमसे
पछतावा ना हो अपने फैसले पर ,तो कहना ।

पढ़ी थीं जो कहानी किताबों में
वो हुआ है आज हकीकत में
जिंदगी की दौड़ में, खरगोश की चाल से,
मिलीं हार कछुए से
अफसोस हैं इस बात का
खरगोश हार कर भी सीख दे गया
मैं दौड़ कर भी जीत न पाया ।

इस मतलबी दुनिया से भर आया था मन इक दिन,
पर शुक्रगुजार हुँ खुदा का कि ,आप मिल गये उस दिन ।
                                               
                               * छगन चहेता
          

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