वो अपने काॅलेज के बगीचे में दोस्तों को कविता सुना रहा था । उसे पीछे किसी के आने का आभास हुआ । उसने मुड़कर देखा तो मीनल थी ।
वह चहका, ओह्ह! आओ मीनू ।
उसने सरककर मीनल को बैठने की जगह दी और यकायक वहाँ से उठकर चला गया ।
रीमा, उसे एवं देवा ने मीनल को देखा एवं फिर एक-दूसरे की ओर देखकर , ओठों के अन्दर हँसे । फिर गंभीरता के साथ मण्डली बिखर गईं ।
उसने घर जाकर वाट्सएप देखा तो मीनल के कई संदेश आये हुए थे ।
क्या हुआ ?
ऐसा मैंने क्या किया ?
गलती तो बताते ?
और ढ़ेर सारे "?" के चिन्ह
?
?
?
उसने देखकर (seen) छोड़ दिया, कोई उत्तर नहीं दिया । मीनल फिर उदास इमोजी, उदासी भरे गाने भेजती लेकिन वो फिर भी कोई प्रत्युतर नहीं देता ।
काॅलेज में गुड मॉर्निंग से उसका अभिवादन करता, मुस्कुराकर जवाब भी देता लेकिन फिर भी एक अलगाव सा रखने लगा । वो हमेशा कोशिश में रहता कि दोस्तों के साथ ही रहूँ ताकि मीनल से अकेले में न मिल पाए ।
सोशल मीडिया के संदेशों एवं काॅलेज में वैसे ही रवैये के बीच लगभग डेढ़ महीना बीत गया । वो मंडली में बैठा कोई कविता सुना रहा था कि पीछे से मीनल ने आवाज दी
ओ ! इधर आओ ।
कौन ? मैं ?
हाँ, तो और कौन?
मीनल के आवाज की गम्भीरता को देखकर वो चुपचाप उसकी ओर चल दिया । वह पास गया तो देखा कि मीनल की आँखों में पानी हैं ।
अरे! मीनू क्या हुआ ? आओ बैठो । तुम भी न यार ।
वो दोनों बैच पर बैठ गये ।
मीनू, ऐसा नहीं है जैसा तुम सोच रही हो । तुम मेरी सबसे प्रिय हो । लेकिन मैंने कहानियों में कही पढ़ा है कि जो चीजें हम प्यार के नीचे दबा देते है वो एक अरसे बाद फिर जाग्रत हो जाती हैं जो प्यार और इंसान दोनों को अन्दर से तोड़ देती है ।
मैं देख रहा हूँ कि तुम अब अपने दोस्तों के साथ उतना चहक कर बातें नहीं करती, मजाक नहीं करती हो । तुम सिमट सी गई हो जैसे तुम्हें लगता हो कि तुम्हारी किसी बात या रवैए से मुझें बुरा न लग जाए और मैं नहीं चाहता कि तुम खुद को खो दो, अपनी प्रकृति खो दो ।
यह सही है कि प्यार समर्पण माँगता है लेकिन त्याग भी हो जरूरी नहीं ।
बस तुम उस पवित्र भावना को अटल रखना जिसे प्यार कहते है । इतना अटल कि वो किसी भी दूसरे मैत्री भाव से डगमगाए नहीं ।
यही सब, मैं खुद को भी इतनें दिनों से समझा रहा था कि प्यार को असल में अब तक हमने समझा नहीं है । प्यार का हक है कि वो हर समस्या या उलझन में तुम्हारी और आशा, साथ कि नजरों से देखें मगर प्यार जकड़न नहीं है एक स्वच्छंद जहां है ।
वो उठकर कैन्टीन में चला जाता है और मीनल मण्डली को उसकी लिखी कविता सुनाने लगती है । घर जाते ही वो मीनल के ढ़ेरों सवालों का एक जवाब देता है ।
"प्यार हो गया है"
छगन कुमावत "लाड़ला"©
वह चहका, ओह्ह! आओ मीनू ।
उसने सरककर मीनल को बैठने की जगह दी और यकायक वहाँ से उठकर चला गया ।
रीमा, उसे एवं देवा ने मीनल को देखा एवं फिर एक-दूसरे की ओर देखकर , ओठों के अन्दर हँसे । फिर गंभीरता के साथ मण्डली बिखर गईं ।
उसने घर जाकर वाट्सएप देखा तो मीनल के कई संदेश आये हुए थे ।
क्या हुआ ?
ऐसा मैंने क्या किया ?
गलती तो बताते ?
और ढ़ेर सारे "?" के चिन्ह
?
?
?
उसने देखकर (seen) छोड़ दिया, कोई उत्तर नहीं दिया । मीनल फिर उदास इमोजी, उदासी भरे गाने भेजती लेकिन वो फिर भी कोई प्रत्युतर नहीं देता ।
काॅलेज में गुड मॉर्निंग से उसका अभिवादन करता, मुस्कुराकर जवाब भी देता लेकिन फिर भी एक अलगाव सा रखने लगा । वो हमेशा कोशिश में रहता कि दोस्तों के साथ ही रहूँ ताकि मीनल से अकेले में न मिल पाए ।
सोशल मीडिया के संदेशों एवं काॅलेज में वैसे ही रवैये के बीच लगभग डेढ़ महीना बीत गया । वो मंडली में बैठा कोई कविता सुना रहा था कि पीछे से मीनल ने आवाज दी
ओ ! इधर आओ ।
कौन ? मैं ?
हाँ, तो और कौन?
मीनल के आवाज की गम्भीरता को देखकर वो चुपचाप उसकी ओर चल दिया । वह पास गया तो देखा कि मीनल की आँखों में पानी हैं ।
अरे! मीनू क्या हुआ ? आओ बैठो । तुम भी न यार ।
वो दोनों बैच पर बैठ गये ।
मीनू, ऐसा नहीं है जैसा तुम सोच रही हो । तुम मेरी सबसे प्रिय हो । लेकिन मैंने कहानियों में कही पढ़ा है कि जो चीजें हम प्यार के नीचे दबा देते है वो एक अरसे बाद फिर जाग्रत हो जाती हैं जो प्यार और इंसान दोनों को अन्दर से तोड़ देती है ।
मैं देख रहा हूँ कि तुम अब अपने दोस्तों के साथ उतना चहक कर बातें नहीं करती, मजाक नहीं करती हो । तुम सिमट सी गई हो जैसे तुम्हें लगता हो कि तुम्हारी किसी बात या रवैए से मुझें बुरा न लग जाए और मैं नहीं चाहता कि तुम खुद को खो दो, अपनी प्रकृति खो दो ।
यह सही है कि प्यार समर्पण माँगता है लेकिन त्याग भी हो जरूरी नहीं ।
बस तुम उस पवित्र भावना को अटल रखना जिसे प्यार कहते है । इतना अटल कि वो किसी भी दूसरे मैत्री भाव से डगमगाए नहीं ।
यही सब, मैं खुद को भी इतनें दिनों से समझा रहा था कि प्यार को असल में अब तक हमने समझा नहीं है । प्यार का हक है कि वो हर समस्या या उलझन में तुम्हारी और आशा, साथ कि नजरों से देखें मगर प्यार जकड़न नहीं है एक स्वच्छंद जहां है ।
वो उठकर कैन्टीन में चला जाता है और मीनल मण्डली को उसकी लिखी कविता सुनाने लगती है । घर जाते ही वो मीनल के ढ़ेरों सवालों का एक जवाब देता है ।
"प्यार हो गया है"
छगन कुमावत "लाड़ला"©
तस्वीर: मेरे द्वारा किसी शाम ली गई । |