Tuesday, 27 November 2018

मीनल

वो अपने काॅलेज के बगीचे में दोस्तों को कविता सुना रहा था । उसे पीछे किसी के आने का आभास हुआ । उसने मुड़कर देखा तो मीनल थी ।
वह चहका, ओह्ह! आओ मीनू ।
उसने सरककर मीनल को बैठने की जगह दी और यकायक वहाँ से उठकर चला गया ।
रीमा, उसे एवं देवा ने मीनल को देखा एवं फिर एक-दूसरे की ओर देखकर , ओठों के अन्दर हँसे । फिर गंभीरता के साथ मण्डली बिखर गईं ।
उसने घर जाकर वाट्सएप देखा तो मीनल के कई संदेश आये हुए थे ।
क्या हुआ ?
ऐसा मैंने क्या किया ?
गलती तो बताते ?
और ढ़ेर सारे "?" के चिन्ह
?
?
?
उसने देखकर (seen) छोड़ दिया, कोई उत्तर नहीं दिया । मीनल फिर उदास इमोजी, उदासी भरे गाने भेजती लेकिन वो फिर भी कोई प्रत्युतर नहीं देता ।
काॅलेज में गुड मॉर्निंग से उसका अभिवादन करता, मुस्कुराकर जवाब भी देता लेकिन फिर भी एक अलगाव सा रखने लगा । वो हमेशा कोशिश में रहता कि दोस्तों के साथ ही रहूँ ताकि मीनल से अकेले में न मिल पाए ।
सोशल मीडिया के संदेशों एवं काॅलेज में वैसे ही रवैये के बीच लगभग डेढ़ महीना बीत गया । वो मंडली में बैठा कोई कविता सुना रहा था कि पीछे से मीनल ने आवाज दी
ओ ! इधर आओ ।
कौन ? मैं ?
हाँ, तो और कौन?
मीनल के आवाज की गम्भीरता को देखकर वो चुपचाप उसकी ओर चल दिया । वह पास गया तो देखा कि मीनल की आँखों में पानी हैं ।
अरे! मीनू क्या हुआ ? आओ बैठो । तुम भी न यार ।
वो दोनों बैच पर बैठ गये ।
मीनू, ऐसा नहीं है जैसा तुम सोच रही हो । तुम मेरी सबसे प्रिय हो । लेकिन मैंने कहानियों में कही पढ़ा है कि जो चीजें हम प्यार के नीचे दबा देते है वो एक अरसे बाद फिर जाग्रत हो जाती हैं जो प्यार और इंसान दोनों को अन्दर से तोड़ देती है ।
मैं देख रहा हूँ कि तुम अब अपने दोस्तों के साथ उतना चहक कर बातें नहीं करती, मजाक नहीं करती हो । तुम सिमट सी गई हो जैसे तुम्हें लगता हो कि तुम्हारी किसी बात या रवैए से मुझें बुरा न लग जाए और मैं नहीं चाहता कि तुम खुद को खो दो, अपनी प्रकृति खो दो ।
यह सही है कि प्यार समर्पण माँगता है लेकिन त्याग भी हो जरूरी नहीं ।
बस तुम उस पवित्र भावना को अटल रखना जिसे प्यार कहते है । इतना अटल कि वो किसी भी दूसरे मैत्री भाव से डगमगाए नहीं ।

यही सब, मैं खुद को भी इतनें दिनों से समझा रहा था कि प्यार को असल में अब तक हमने समझा नहीं है । प्यार का हक है कि वो हर समस्या या उलझन में तुम्हारी और आशा, साथ कि नजरों से देखें मगर प्यार जकड़न नहीं है एक स्वच्छंद जहां है ।
वो उठकर कैन्टीन में चला जाता है और मीनल मण्डली को उसकी लिखी कविता सुनाने लगती है । घर जाते ही वो मीनल के ढ़ेरों सवालों का एक जवाब देता है ।
"प्यार हो गया है"

छगन कुमावत "लाड़ला"©

तस्वीर: मेरे द्वारा किसी शाम ली गई ।


Saturday, 17 November 2018

बिखराव - प्रेम का


खुद को समेट पाना मुश्किल होता जा रहा है, जितना देखता जा रहा हूँ । उतना ही खुद को हिस्सों-हिस्सों में बांटता जा रहा हूँ और अब इस नियति में भी ढलता जा रहा हूँ ।
अच्छे-बुरे में भेद तो हो पा रहा है मगर सबसे अच्छे की पहचान खोता जा रहा हूँ ।
कहीं जाता हूँ तो खुद को थोड़ा उसके नाम भूल आता हूँ , किसी से मिलकर आऊँ तो कुछ उसका भी हो जाता हूँ । किसी को भुला नहीं पाता हूँ अपनी जिज्ञासा, तृष्णा को मिटा नहीं पाता हूँ ।
इसका आशय, शायद यह नहीं कि अपने शहर का प्यार उस शहर को दे आया ।
तुम्हारी मोहब्बत का हिस्सा उसे दे आया,,,
प्रेम जैसी किसी मानवीय भावना पर विश्वास करों तो पूर्णतः करना । ये सतत् वृद्धि करता रहता है ना कि टूटता है ।
फिर भी तुम चाहों कि नहीं, मैं बस तुम तक ही सिमट जाऊँ तो मुझे तुममें सिमट जाने से भी कोई ऐतराज नहीं ।
तुम में सिमटते-सिमटते, मैं शुन्य सा हो जाऊँगा जो गणित का होकर भी संक्रियाओं में नही आता । उसको किसी के साथ जोड़ने या घटाने से कोई फर्क नहीं आता ।
इस तन के मन के लिए जरूरी है कि सजीव-निर्जीव सबको प्यार बांटता रहें, उनके अद्भुत अहसास को महसूस करता रहें ।

मैं सिर्फ परिणामों से वाकिफ़ करवाना चाहता हूँ । ना इससे डर है ना अविश्वास ।
चीजें जान लेना जरूरी है अमल में लाना या नहीं यह स्वविवेक है ।

यह तस्वीर जयपुर के हवामहल के एक खिड़की की है । सामने की खिड़की नहीं है पार्श्व की है । कितनी नज़रों ने इसके पार का नज़ारा देखा होगा मगर मुझे इसके पार देखने से मोह सा हो गया,,, इसके पार निर्माणाधीन ब्रिज के अलावा कुछ न था फिर भी औसतन बड़ी देर तक देखता रहा, जैसे मेरा कुछ रह सा गया हो ।

छगन कुमावत "लाड़ला"©

{तस्वीर: 15 सितम्बर 2018 जयपुर भ्रमण के दौरान की }

Thursday, 8 November 2018

चंद पल,,

तस्वीरें  बस मौन बँया करती है,,
Click by LAKHA RAM 
"बिखरे ख़्यालों में न जाने कौनसा ख़्याल टीस दे जाए, न जाने कौनसा अन्दर तक गदगद कर दे ।"
वो आगे के सफ़र के लिए रेलगाड़ी के इंतजार में प्लेटफार्म पर टहल रहा था । वक्त जाया करने के जुगाड़ में कई अनजाने चेहरों से बातें भी हुईं होगी, ठहाके भी लगें होगें जिसमें से ठीक-ठीक कुछ भी याद नहीं लेकिन वो चंद पल उसे याद है जस के तस ।
वह उस लड़की के सामने से गुजरा तो वह मुस्कुराई । उसने चारों तरफ देखा कि वह उसकी ओर ही मुस्कुरा रही है । थोड़ा ठहरकर वह भी बेढ़ग सा मुस्कुराया और चेहरा झुकाकर आगे बढ़ा, काफ़ी आगे जाने के बाद मुड़कर देखा और बहुत आगे चला गया जहाँ से उसे देख भी न पाए ।
उसने चाहा क्यों नहीं कि वो उसके सामने की बेंच पर बैठ जाए, वक्त है तो ठहर जाए ।
वह वहाँ से फ़ौरन निकला क्योंकि उसे बस मुस्कुराहट अपने ज़ेहन में कैद करनी थी । चेहरा या उसकी कोई और भाव-भंगिमा को आड़े नहीं आने देना चाहता था ।
वो चंद पलों के इश्क़ को अनंत समय के लिए लेकर चला आया ....
वो भाषा, व्याकरण के परे प्यार और मोहब्बत में भिन्नता प्रदर्शित करता रहा है जिसकी बदौलत वो उस लड़की से हर इंसान की भाँति प्यार करता है और उसकी उस मुस्कुरान से मोहब्बत करता है जिससे खुद को ऊर्जावान बनाता है ।

प्यार के इतर किसी इंसान से इश्क़ करना,,, इस पर वो चुप है, मौन है मगर भावनाओं, अहसासों से बेइंतिहा मोहब्बत है जिसे यदा-कदा लिखता रहता है बेढ़गी श़ेर-ओ-शायरी में ...


छगन कुमावत "लाड़ला"©

डायरी : 2 October 2020

कुछ समय से मुलाकातें टलती रही या टाल दी गई लेकिन कल फोन आया तो यूँ ही मैं निकल गया मिलने। किसी चीज़ को जीने में मजा तब आता है जब उसको पाने ...