बहन "जमना" के लिए छोटे भाई की एक नन्हीं पेशकश,, |
नहीं पता था कि इस मासूम को कि तुम हो इस आँगन की चिडिया ,
जिसे उड़ा देंगे ये अपने ही सारे ।
रोज तुम्हें ससुराल के ताने दे देकर चिढ़ाते थे ।
पर क्या मालूम की यूँ चली जाओगी बैंड बाजों के साथ ।
जिस दिन तुम छोड़ चली हो पिया के घर , सुनी रह गई आपके बाबुल की चौखट ।
इंतजार रहता है तेरे आने का हर रक्षाबंधन पर,
पर जब तुम नहीं आती,
तो कितनी सुनी लगती है मेरी कलाई ।
जब तुम यहाँ थी तो राखी बांधना, तिलक लगाना सब दिखावा लगता था ,
अब चला पता कि ये सब कितना सुहाना होता था।
था नहीं पता कि कभी ये दिन भी आयेंगे ,
अपने बाबुल के घर कितने दिन रहना है ये पहले ही बता दिये जाएंगे ।
खैर, दुनिया के रस्मों को निभाना तो पड़ता है,
छोटे कि दुआ यही है बहना , खुश रहो संग अपने पिया ।
आये ना आफत कोई, घर तेरे बहना।
कह तो दिया पर सच कहूँ तेरी बहुत याद आती है, तेरी बहुत याद आती है ।
नहीं पता कि क्यों तुम्हें ही रस्मों की अदायगी में,
हमें छोड़ ससुराल जाना पड़ता है ।
बहन को अपने ही भाईयों से जुदा होना पड़ता है ।
गर होता पता कि एक दिन तुम ससुराल चली जाओगी तो नहीं सताते तुझे, कभी नहीं सताते तुझे,,
तुम चली गई हो घर पिया के ,,,,
बहना तेरी बहुत याद आती है,,,
हम सबको तेरी बहुत याद आती है ।।
छगन चहेता ©
[मेरी इस कविता का "युव वाणी कार्यक्रम, मालाणी रेडियो स्टेशन " पर भी वाचन हो चुका है।]