वह कुछ नहीं बोला, बस लगातार मीनल के झुमके को देखे जा रहा था । फिर खड़ा होकर , बालों में फंसे झुमके को ठीक किया और कहा 'चलो देर हो जाएगी ।'
तुम समझते क्यों नहीं मीनल ने फिर कहा मैं स्थिर होकर नही रह सकती मतलब हम स्थिर नहीं रह सकते । तुम्हें इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए । अब पूछोगे कि क्यों ? तो इसका जबाव मेरे पास नही है ।
' तुम क्या समझती हो कि भूल जाना आसान होता है ' वह जाते हुए बोला ।
मीनल भी उसके पीछे चल दी ।
लेकिन मीनल तुम फ़िक्र मत करो, मैं तुझे भूला भले न पाऊँ मगर याद करके आँसू नहीं बहाया करूँगा । अरे! मुझे कोई और मिल जाएगी यार,,,, फिर तेरी याद कौन करेगा ।
उसने यह बातें ऐसे कहीं जैसे उसकी जुबां को इसके सिवाय कुछ याद नहीं आ रहा है और कुछ कहना भी जरूरी है । फिर उसने ठहाका लगाया ताकि मीनल इस अभिनय से अनभिज्ञ रहें ।
मीनल के हाथ अब तक उसके पलकों तक आ चुके थे, वह स्पर्श पाकर एकदम चौंका तब मालूम हुआ कि आँसू निकल आए थे । उसने रूमाल निकाला मगर मीनल को आँसू पोछने दियें ।
तुम अभिनय नहीं कर सकते , मीनल ने उदासी भरी मुस्कान के साथ कहा " जुबां कितनी हमारी है जो झूठ या सच जो कहलवाना हो कह देती है जबकि आँसू है कि आपा खो बैठते हैं ।"
वो कुछ बोलने को होता है लेकिन काश!..... के आगे कुछ कह नहीं पाता है । बस रेत के उस टीले (धोरे) से उतरती मीनल को अपलक तब तक देखता रहता है जब तक वह पीछे मुड़कर मुस्कान नही फेंक देती । फिर धीरे धीरे मीनल ओझल हो जाती है और वो दोनों मुट्ठियों में रेत लेकर अपने गालों पर मल देता है मानों वो जता रहा हो कि उसके प्यार में जुदाई के आँसू नहीं आनें चाहिए थे । प्यार में जुदाई जैसे भाव गौण हो जाने चाहिए ।
इतने में कोई रेतिला बवंडर आता है जो मीनल के बैठने की जगह बनें निशान और धोरे से नीचे उतरते पद चिह्नों व उसके आँसुओ की बूंदों के निशान सहित सबकुछ मिटाकर , पहले जैसा कर देता है ।।
~ छगन कुमावत "लाड़ला"©
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आजकल __ काफी वक़्त बाद ब्लॉग लिख रहा हूँ , हालाँकि हमेशा कुछ न कुछ लिख रहा होता हूँ मगर वो कहीं खो जाता है या लिखते-लिखते असंतुष्ट भाव आते हैं जो एक अनमने छोर पर लाकर छोड़ देता है जहाँ से वापस जाना मुश्किल हो जाता है ।
{तस्वीर: जूना पतरासर बाड़मेर स्थित आशापुरा माता मंदिर के भ्रमण के समय की,,,, कैमरे में कैद की गई लाखा राम द्वारा ।}