Tuesday, 20 February 2018

अरुणाचल में न्याय हुआ या अन्याय, ,,,?

न्यूज़ अरुणाचल प्रदेश- अरुणाचल के तेजू में 5 वर्षीय
बच्ची का शव 17 फरवरी को मिला था । जिसका सिर,  धड़ से अलग था। जाँच में बच्ची के साथ दुषकर्म होना पाया गया। पकड़े गये संदिग्ध दो आरोपियों को उग्र भीड़ ने थाने से छुड़ा कर , पीट-पीटकर मार डाला ।

शायद यह खबर आपने भी पढ़ी होगी, ,,, उसके संदर्भ में


मुझे नहीं मालूम कि उन आरोपियों के साथ सही हुआ या गलत मगर उस मासूम बच्ची के साथ बहुत ही बुरा हुआ ।
  आरोपियों के साथ जो भी हुआ उसके जिम्मेदार हमारी न्यायप्रणाली व व्यवस्था तंत्र हैं ।
 बच्ची के साथ जो बुरा हुआ उसकी जिम्मेदार हमारी शिक्षा प्रणाली व आरोपियों के बेपरवाह परिजन हैं जिन्होंने मानव को शैतान बनने से रोका नहीं । अगर हमारी न्याय प्रणाली कठोर व तेज होती तो लोगों का धैर्य जवाब ना देता । भीड़ को मालूम था कि इन आरोपियों का भी वहीं होगा जो हर अपराधी का होता हैं तारीख पर तारीख और ......?
न्याय जब तक अपराधियों के लिए डरावना ना हो तब  तक अपराध पर अंकुश लगना नामुमकिन सा है ।
आप , हम कुछ लोग शांति चाहते है लेकिन हमारे शांत रहने से शांति नहीं होगी ना,,,,,
मैं नहीं कहूँगा कि आरोपियों के साथ बुरा हुआ क्योंकि जो बच्ची के साथ हुआ है , वह इंसानियत के लिए भयानक हैं ।
मेरे लिए मानवता / इंसानियत ; मेरे देश, देश के संविधान से कहीं ऊपर है ।  मैं मेरे देश , संविधान के खिलाफ हो सकता हूँ मगर कभी मानवता के खिलाफ खड़ा नहीं रहूंगा ।
 मुझे मेरे देश व संविधान पर पूर्ण विश्वास है कि मेरा देश अपनी ऐतिहासिक पहचान के अनुरूप  सदा मानवता के पक्ष में ही होगा ताकि मैं भी मेरे देश के पक्ष में खड़ा रहूँ  ।
अगर हमारी न्याय प्रणाली व व्यवस्था तंत्र सही व तीव्र होता तो आरोपियों का जो भी होता कानून के मुताबिक होता ।
कानून का टूटना देश के लिए बुरी खबर है मगर कानून ही संदेह के घेरे में हो तो.....?
 मेट्रो ट्रेन, स्मार्ट सिटीज से पहले यह आवश्यक है कि हमारे देश की शिक्षा प्रणाली सुधरे, जहाँ संस्कार सिखाया जाए । देश में महंगाई नियंत्रित हो ताकि माता-पिता कुछ वक़्त अपने बच्चों के साथ भी बिताए जिससे बच्चों को कुछ अच्छे  संस्कार दे पाएंगे ।
मेरी आशा है कि ना बच्ची के साथ हुआ, वह कभी दोहराया जाए , ना ही आरोपियों के साथ हुआ,  वह दोहराया जाए ।
आज इंसानियत मर रही है , देश का कानून टूट रहा है , न्याय न्यायालयों के बजाए सड़कों पर भीड़ कर रही है और हम शांति के लिए शांति से बैठे हैं ।
हम एक इंसान के रूप में सोचे तो आरोपियों के साथ सही हुआ मगर देश के कानून के साथ सही नहीं हुआ अगर देश की व्यवस्था तंत्र को नहीं सुधारा गया तो हमारे देश का भविष्य अंधकारमय  होगा ।
न्याय सड़कों पर होता दिखेगा । वह भी लाठी के दम पर।
 दोष सिस्टम का है। उस सिस्टम का जिसके हम भी एक हिस्सा है यानी दोषी हम भी हैं।
जब भीड़ ने  अपने देश के बारे में , संविधान के बारे में, शिक्षा प्रणाली के बारे में,व्यवस्था तंत्र के बारे में .....सोचा होगा तो उन्हें अच्छा न तो न सही मगर सही "यह ही" लगा होगा और पीड़ितों को तब तक सही लगेगा जब तक न्याय व्यवस्था सही ना होगा ।
ठीक उसी प्रकार जैसे हमें अग्रेजों की जान लेने वाले भगतसिंह का काम  सही लगता हैं एवं उन्हें अपना आदर्श मानते हैं अगर वो सही थे तो वो भीड़ गलत क्यों?
                                 * छगन चहेता
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Friday, 16 February 2018

वाकई खुशी कहीं खो गई है ? - छगन चहेता

नहीं , बस हमारा नजरिया बदल गया है और हम खुशी के लम्हों को नजरअंदाज करने लग गए हैं ।
नहीं तो देखो खुशी के कितने पल आते हैं , हमारी जिंदगी में -
☺ tv चैनल खोलते ही पसंद के सीरियल या फिल्म का आना।
☺ बाजार में घूमते कहीं बचपन के दोस्त का अचानक मिलना।
☺ बहुत देर तक लाइट नहीं है और मैच शुरु होते ही  लाइट का आना।
☺ छुट्टी वाले दिन देर से उठना ।
☺घर की सफाई में, खोई किसी प्यारी चीज का मिलना।
☺ बस स्टॉप जाते ही बस का आ जाना ।
☺संवरने के बाद दर्पण में देख कर मुस्कराना ।
☺कड़ी धूप में किसी का लिफ्ट देना।
 इन खुशियों के लम्हों की लिस्ट लंबी है ।
क्या आपकी जिंदगी में ऐसे पल नहीं आते ? आते हैं ना । फिर भी आप खुश नहीं होते क्यों , पता है? आप हमेशा बड़ी-बड़ी , बहुत बड़ी-बड़ी खुशियों की तलाश में रहते हो। जैसे बड़ा सा घर , बडी सी गाड़ी,  मोटी सी सैलरी  आदि । ये सारी खुशियाँ बड़ी मुश्किल से मिलती है और इन्हें हासिल करते-करते हमारे चेहरे पर इतनी सरवटे पड़ जाती हैं कि यह सब मिलने पर भी हमारे चेहरे की मुस्कुराहट , सलवटो में से दिखाई भी नहीं देती । किसी दार्शनिक  ने कहा था कि "छोटी-छोटी खुशियों का लुफ्त उठाइए क्योंकि जिंदगी में आगे बढ़ने पर  कभी पीछे मुड़कर देखोगे तो तुम्हें इन नन्ही - नन्ही  खुशियों का ढेर दिखाई देगा।"
 हमारे जीवन में दुख आते है, किसी को खोने पर, किसी से बिछड़ने पर । जाहिर सी बात है , दुख होगा क्योंकि हम भावनात्मक प्राणी हैं.... पर इतना भी दुख को दिलो-दिमाग पर मत चढ़ने दें कि होठों से मुस्कान ही गायब हो जाए ,  दिल के अरमान , ख्वाब सब खत्म हो जाए । कहते हैं ना कि "समय हर दर्द की दवा है।"
 राम ; सीता से बिछड़ कर भी रहे थे ना , राधा ; कृष्ण से बिछड़ कर भी जीते थे ना ।   जब हर संभव कोशिश नाकाम हो तो उसे भूलना ही बेहतर है इसी में खुशी है ।  जब सामने वाला भी आँखें चुराए तो दिल को यह समझना ही चाहिए कि यह नहीं तो और सही और नहीं तो कोई और सही ।
यह छोटी-छोटी बातें ही एक दिन खुशी का द्वार खोलेगी । किसी एक से नजर हटा कर  तो देखो दुनिया कितनी खूबसूरत हैं , कितनी प्यारी है ।
बस अकेले में हँस कर  तो देखो,
 भीड़ में मुस्कुरा कर तो देखो,
 बचपन का बचपना दोहरा कर तो देखो,
 मैं सच कहता हूँ,  यही फंडा है जीने का ।
 क्या है ना कि हम  कुएँ के मेढ़क है जो कुएँ को ही दुनिया समझते हैं , कभी बाहर निकल कर तो देखो समुंद्र भी तो है,,,,,, आ जाईये, ,,।
 चलो अब समुंदर में आ गए हैं तो क्यों ना , आज के पहले की सारी बुरी यादें , जो भगवान(वो यहाँ भगवान को दोष इसलिए दिया कि मनुष्य को दोष देकर हम किसी को नाराज नहीं करना चाहते) ने हमें तकलीफे,  दुख दिए हैं, उनको भूलकर बस खुशी के पल , थोड़े ही सही ; समेटकर अब से खुशियों का सफर शुरू करें । जिसमें हमसफर भले बदले परंतु हमेशा मुस्कुराहट  साथ हो , क्योंकि मैंने कहीं धर्म ग्रंथ में पढ़ा था कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य संपूर्ण सुखों की प्राप्ति करना ही हैं ।

                             *छगन चहेता


डायरी : 2 October 2020

कुछ समय से मुलाकातें टलती रही या टाल दी गई लेकिन कल फोन आया तो यूँ ही मैं निकल गया मिलने। किसी चीज़ को जीने में मजा तब आता है जब उसको पाने ...